मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल को जमकर फटकार लगाई. हाई कोर्ट ने उनके ऊपर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. न्यायालय ने कलेक्टर से पूछा कि ऐसा कौन सा कानून है जो विस्थापितों को मुआवजे के लिए कलेक्टर के पास जाकर भीख मांगने के लिए मजबूर करता है. जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने स्पष्ट किया कि कलेक्टर को लोगों के अधिकारों का शोषण करने के लिए नहीं बनाया गया है.
रीवा निवासी राजेश कुमार तिवारी ने याचिका दायर कर अपनी अधिग्रहित भूमि के लिए 2012 के संशोधित कानून के तहत मुआवजे की मांग की थी. हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान रीवा कलेक्टर को व्यक्तिगत रूप से तलब किया था. कलेक्टर ने पति की तबीयत खराब होने का हवाला देते हुए व्यक्तिगत उपस्थिति से माफी का आवेदन किया.
हाई कोर्ट ने इस माफी को खारिज कर दिया क्योंकि डॉक्टर ने कलेक्टर को केवल आराम और मालिश का परामर्श दिया था. इसके बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि कलेक्टर शाम 4 बजे तक व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित हों. आदेश का पालन करते हुए कलेक्टर अदालत में पेश हुईं. याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार और कलेक्टर ने अदालत में कहा कि याचिकाकर्ता ने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया था इसलिए याचिका खारिज की जानी चाहिए. इसके अलावा, मुआवजे में वृद्धि की मांग को लेकर 1993 में दायर एक याचिका का जिक्र किया गया, जो लंबित है.
वकील और कलेक्टर के बयान अलग
हाईकोर्ट ने पाया कि कलेक्टर और सरकारी अधिवक्ता ने मुआवजा न लेने को लेकर विरोधाभासी बयान दिए. पहले कहा गया कि याचिकाकर्ता ने मुआवजा लेने से इनकार किया, फिर कहा कि याचिकाकर्ता ने मुआवजे के लिए संपर्क नहीं किया. अदालत ने पूछा कि विस्थापितों को मुआवजे की भीख मांगने के लिए मजबूर करने का कानूनी प्रावधान कहां है?
कलेक्टर पर लगाया अर्थदंड
कलेक्टर न्यायालय को इस संबंध में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सकीं. अदालत ने कहा कि यह कलेक्टर की जिम्मेदारी है कि वह प्रभावित लोगों को उनका हक दिलाएं न कि उनके अधिकारों का उल्लंघन करें. हाई कोर्ट ने रीवा कलेक्टर को अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाही और विरोधाभासी बयानों के लिए जमकर फटकार लगाई. अदालत ने 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाते हुए कहा कि यह राशि न्यायालय के आदेशों का पालन सुनिश्चित करने में विफलता का दंड है.
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