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पाकिस्तान की ताजा सियासी तस्वीर में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान घिरे नजर आ रहे हैं। इसके साथ ही अटकलें यह भी लगने लगी हैं कि उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी PTI पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। हालांकि, न इमरान ने इस तरह के कोई आशंका जताई है और न ही मौजूदा पीएम शहबाज शरीफ की अगुवाई वाली सरकार ने कोई संकेत दिए हैं। बहरहाल, यह कहा जा रहा है कि अगर ऐसा होता है, तो इमरान से ज्यादा शरीफ सरकार को ही नुकसान होने के आसार हैं।
जानकारों का कहना है कि पीटीआई को खत्म करने की कोई भी कोशिश पाकिस्तान को गहरे सियासी संकट में धकेल देगी। इमरान की गिरफ्तारी के बाद से अब तक पुलिस ने पीटीआई के 7500 से ज्यादा सदस्यों और समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया है। पूर्व पीएम की इस्लामाबाद में गिरफ्तारी के बाद से ही पाकिस्तान के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
डॉयचे वेले यानी DW से बातचीत में इस्लामाबाद की नूर फातिमा का मानना है कि पीटीआई पर बैन इमरान से ज्यादा उनके विरोधियों को नुकसान पहुंचाएगा। उन्होंने कहा कि यह समझदारी भरा फैसला नहीं होगा। उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार पीटीआई को बैन कर राजनीति में बहुलता को खत्म कर देती है, तो यह सत्तारूढ़ दलों के लोकतांत्रिक साख पर असर डालेगी और उनके वोट बैंक भी प्रभावित होंगे।’
पंजाब प्रांत के ओकारा की कार्यकर्ता सादिया का कहना है कि अगर पीटीआई को बैन किया जाता है, तो यह एक गंभीर मिसाल पेश करेगा। उन्होंने कहा, ‘हम पीटीआई की राजनीति करने के तरीके को पसंद नहीं करते, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल पर प्रतिबंध लगाने का विरोध करते हैं। ऐसा प्रतिबंध मुल्क के लोकतांत्रिक भविष्य को नुकसान पहुंचाएगा।’
कराची से राजनीतिक जानकार तौसीफ अहमद खान का कहना है, ‘यह ऐसी छवि बनाएगा कि लोकतांत्रिक दल राजनीतिक संकट से निपटने में सक्षम नहीं हैं।’ उन्होंने भी कहा कि नेताओं को पीटीआई पर बैन लगाने से बचना चाहिए।
पाकिस्तान में पहले भी बैन हुए दल
1960 के समय में जमात-ए-इस्लामी पार्टी और 1970 के आसपास वाम दल नेशनल आवामी पार्टी को अवैध घोषित कर दिया गया था। जनरल परवेज मुशर्रफ के शासन में पाकिस्तान में कई संगठनों को भी अवैध बता दिया गया था। वहीं, कराची के मुत्तहिद कौमी मूवमेंट पर भी अनौपचारिक रूप से बैन लगा दिया गया था।
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