बांग्लादेश में अब अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस संविधान बदलने की तैयारी कर रहे हैं. शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद छोड़ने और देश के प्लायन के बाद से मोहम्मद यूनुस लगातार बांग्लादेश की छवि बदलने की कोशिश कर रहे हैं. संविधान सुधार आयोग ने बुधवार को मोहम्मद यूनुस को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रवाद के राज्य सिद्धांतों को बदलने का प्रस्ताव रखा गया है. नए प्रस्तावों के तहत केवल एक लोकतंत्र अपरिवर्तित रहेगा. इसके साथ ही आयोग ने देश के लिए द्विसदनीय संसद और प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर दो कार्यकाल की सीमा का भी प्रस्ताव रखा है.
आयोग के अध्यक्ष अली रियाज ने एक वीडियो बयान में कहा कि हम 1971 के मुक्ति संग्राम के महान आदर्शों और 2024 के जनांदोलन के दौरान लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने के लिए पांच राज्य सिद्धांतों – समानता, मानवीय गरिमा, सामाजिक न्याय, बहुलवाद और लोकतंत्र – का प्रस्ताव कर रहे हैं.
बांग्लादेश के संविधान में अब तक 17 बार संशोधन किया जा चुका है, जब इसे 1971 में बनाया गया था. यह पाकिस्तान के खिलाफ नौ महीने के मुक्ति संग्राम के बाद स्वतंत्र बांग्लादेश के उदय के एक साल बाद हुआ था.
द्विसदनीय संसद के गठन की सिफारिश
मुख्य सलाहकार के प्रेस विंग ने एक बयान में रियाज के हवाले से कहा कि आयोग ने एक द्विसदनीय संसद के गठन की सिफारिश की है, जिसमें निचले सदन को नेशनल असेंबली और ऊपरी सदन को सीनेट नाम दिया जाएगा, जिसमें क्रमशः 105 और 400 सीटें होंगी.
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि प्रस्तावित दोनों सदनों का कार्यकाल संसद के मौजूदा पांच साल के कार्यकाल के बजाय चार साल का होगा. आयोग ने सुझाव दिया कि निचले सदन को बहुमत के प्रतिनिधित्व और ऊपरी सदन को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर बनाया जाना चाहिए.
प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर दो की सीमा का प्रस्ताव
आयोग का मानना है कि पिछले 16 वर्षों में बांग्लादेश में “निरंकुश सत्तावाद” का एक मुख्य कारण संस्थागत शक्ति संतुलन का अभाव और प्रधानमंत्री कार्यालय में शक्ति का संकेन्द्रण था. इसने प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर दो कार्यकाल की सीमा की सिफारिश की.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसने राज्य की तीन शाखाओं और दो कार्यकारी पदों – प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के बीच जांच और संतुलन की व्यवस्था स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय संवैधानिक परिषद नामक एक संवैधानिक निकाय के निर्माण का प्रस्ताव रखा है.
इस परिषद में राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता (दोनों संसद के माध्यम से चुने जाते हैं), दोनों सदनों के अध्यक्ष, विपक्ष के उप-अध्यक्ष और अन्य दलों के प्रतिनिधि शामिल होंगे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि आयोग का मानना है कि यह संस्था एक संवैधानिक निकाय के रूप में नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेगी.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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