[ad_1]

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है…
ये अल्फाज हैं उस मशहूर शायर के जो दुनिया से जाने के बाद भी अपनी शायरियों के जरिए लोगों के जहन में जिंदा हैं. हम बात कर रहे हैं राहत इंदौरी की, जिनके चाहने वाले न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी मौजूद हैं. 1 जनवरी 1950 को जन्मे राहत कुरैशी उर्फ राहत इंदौरी का कल यानी बुधवार को 75 वा जन्मदिन है. उनकी जयंती को उनके लाखों चाहने वाले धूमधाम के साथ मनाएंगे. वही इंदौर में उनके बेटे अपने पिता की शान में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित करने जा रहे हैं.
राहत इंदौरी की शुरुआत इंदौर के परदेसी पुरा क्षेत्र से एक पेंटर के रूप में बैनर और पोस्टर बनाने से हुई थी. इसके बाद उन्होंने शायरी की शुरुआत की और देखते ही देखते इंदौर का नाम देश और दुनिया में रोशन कर दिया वहीं खुद भी राहत इंदौरी के नाम से जाने जाने लगे. उनके बेटे सतलज और फैजल राहत पिता की जयंती पर एक खास कार्यक्रम करने जा रहे हैं, जिसमें मशहूर शायर वसीम बरेलवी, नवाज़ देवबंदी , नईम अख्तर खदमी, इकबाल अशहर ,ताहिर फराज, मजहर भोपाली सहित कई शायर शिरकत करेंगे. इस दौरान कुछ शायरों ने राहत इंदौरी के ऊपर कुछ किताबें भी लिखी है जिनका विमोचन भी इस कार्यक्रम में किया जाएगा.
अगर खिलाफ है होने दो, जान थोड़ी है,
ये सब धुआं है, कोई आसमान थोड़ी है
राहत इंदौरी का जन्म इंदौर के परदेशीपुरा में हुआ इसके बाद उनका परिवार इंदौर के ही नयापुरा में रहने लगा, चूंकि आर्थिक हालत काफी कमजोर थी जिसके चलते राहत कुरैशी ने छोटे से काम से अपना सफर शुरू किया. उन्होंने पेंटर से शुरुआत की. इस दौरान उन्होंने कई बैनर पोस्टर बनाए. बताया जाता है कि राहत एक हाथ में ब्रश लेकर अलग-अलग तरह के पोस्टर बनाते थे और जब उसमें से कुछ समय निकलता तो कुछ शायरी से संबंधित पढ़ते थे इसके बाद उन्होंने खुद अपनी कुछ शायरियां लिखी, जिसे उन्होंने पोस्टर के जरिए जगह-जगह लगाया.
इसके बाद इंदौर के ही एक स्कूल में उन्होंने बच्चों को पढ़ाया, लेकिन अपनी शायरी की वजह से तब तक वो इंदौर शहर का एक बड़ा नाम बन चुके थे. धीरे-धीरे उन्हें मुशायरों में उन्हें बुलाया जाने लगा और इस तरह से उनका शायरी का सफर शुरू हुआ. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनकी शायरियों की वजह से वो विदेशों में आयोजित मुशायरों में बुलाए गए. शायरों की महफिल में वो राहत इंदौरी के नाम से मशहूर हो गए.
मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता,
यहां हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक शायरियां लिखी तो वहीं तो कुछ फिल्मों में गीत भी लिखे, वही उनके बेटे सतलज राहत का कहना है कि राहत साहब एक प्रोफेसर भी थे उन्होंने पीएचडी भी की थी. पुराने दिनों को याद करते हुए बेटे ने बताया कि उनके पिता जिस स्कूल में पढ़ाते थे, उसी स्कूल में वो भी पढ़ते थे. स्कूल के दिनों में कुछ टीचरों ने उनकी शिकायत पिता से कर दी थी कि आपका बेटा मस्ती करता जिसके चलते मैं उनसे दूरी बनाकर चलता था.
वही राहत इंदौरी का एक किस्सा सुनाते हुए सतलज राहत ने बताया कि एक रात मैं काफी देर से घर पहुंचा तो उन्होंने (राहत इंदौरी) कहा कि तुम सुबह 10:00 बजे काम पर निकलते हैं और रात को 2:00 बजे घर पहुंचते हैं तो लाखों रुपए कमाते होगे, इसके बाद उन्होंने कहा कि आप घर पर ही रहे और आप घर की ही खबर रखें. इसके बाद राहत इंदौरी का बेटा सतलज राहत भी मुशायरा करने लगे. सतलज राहत ने बताया कि उनके पिता अपने बेटे के मुशायरा करते नहीं देखना चाहते थे, उनका मानना था कि मुशायरा मतलब शराब खोरी ,रात भर जागना और घर को छोड़ना जिसके चलते उन्होंने अपने बेटे सतलज को मुशायरा नहीं करने की नसीहत दी.
बहरहाल भले ही आज ये अजीम शख्सीयत हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन शायरियों में पिरोए उनके अल्फाज हमेशा रहेंगे. भारत में जब भी
शेर-ओ-शायरी के फनकारों की बात होगी राहत इंदौरी का नाम हमेशा लिया जाएगा. राहत इंदौरी उर्दू और हिंदी शायरी का वो नायाब हीरा हैं जिन्होंने दुनिया भर में एक बड़ा मुकाम हासिल किया. आखिर में उन्हीं की लिखी एक शायरी…
अब तो ना हूं मैं और ना ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर है शहरों में फ़साने मेरे
[ad_2]
Source link