मैं 24, अकबर रोड बोल रहा हूं…लुटियन युग का वो बंगला जो 15 जनवरी 2025 से एक इतिहास के तौर पर जाना जाएगा. अकबर रोड बंगले में कभी सर रेजिनाल्ड मैक्सवेल रहा करते थे, जो वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो की कार्यकारी परिषद के सदस्य थे. यह 1961 में एक किशोरी आंग सॉन्ग सूकी का भी घर था, जब उनकी मां को भारत में राजदूत नियुक्त किया गया था. बतौर कांग्रेस मुख्यालय 47 सालों में इसने कई उतार-चढ़ाव देखे. सात कांग्रेस अध्यक्षों के कार्यकाल का गवाह बना.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सभी दलों को लुटियन जोन से बाहर दफ्तर ले जाना था. आखिर कांग्रेस मुख्यालय भी आधुनिक सुविधाओं से लैस 9ए, कोटला मार्ग में शिफ्ट हो गया लेकिन 24, अकबर रोड से पार्टी का भावनात्मक जुड़ाव और इतिहास यादों में रहेगा ही. 1978 की जनवरी की सर्द सुबह इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली पृथक कांग्रेस 20 कार्यकर्ताओ का दल 24, अकबर रोड में आया. इसका नेतृत्व शोभन सिंह कर रहे थे. तभी से ये कांग्रेस मुख्यालय हो गया.
60 के दशक में बर्मा हाउस कहा जाता था
47 साल बाद फिर एक और सर्द जनवरी है. कांग्रेस ने अपने नए मुख्यालय का उद्घाटन किया. खास बात ये है कि दोनों वक़्त कांग्रेस विपक्ष में रहकर चुनावी चुनौतियों से दो-चार होती दिखी. तब इंदिरा गांधी के समय आपातकाल के बाद सत्ता वापसी की जद्दोजहद थी तो अब राहुल-प्रियंका के सामने सत्ता का सूखा खत्म करने की चुनौती.
24, अकबर रोड पर टाइप VII बंगला तब जी. वेंकटस्वामी को आवंटित किया गया था, जो आंध्र प्रदेश से राज्यसभा सांसद थे. उन्होंने उस समय इंदिरा गांधी का साथ देने का फैसला किया था, जब अधिकांश कांग्रेस नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया था.60 के दशक में 24 अकबर रोड को बर्मा हाउस कहा जाता था. यह नाम जवाहरलाल नेहरू ने रखा था. तब आंग सॉन्ग सूकी मां के साथ यहीं रही थीं.
1980 में कांग्रेस ने संजय गांधी को खोया
आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी का कठिन वक़्त था. मोहम्मद यूनुस ने अपना घर, 12, विलिंगडन क्रिसेंट, गांधी परिवार को उनके निजी निवास के रूप में देने की पेशकश की. इस तरह यह इंदिरा, राजीव, उनकी पत्नी सोनिया, उनके बच्चों, राहुल और प्रियंका, संजय, मेनका और पांच कुत्तों का घर बन गया, सभी यहां रहने लगे.
अब 12, विलिंगडन क्रेसेन्ट में जगह की कमी थी. इसलिए 24, अकबर रोड को नया आधिकारिक कांग्रेस मुख्यालय बनाया गया.फिर 1980 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई. 1980 में कांग्रेस ने संजय गांधी को, 1984 में इंदिरा गांधी को और 1991 में राजीव गांधी को खोया, तब मुख्यालय यहीं था.
2014 और 2019 में करारी हार भी यहीं देखी
1998 में सीताराम केसरी को हटाकर सोनिया गांधी को पार्टी प्रमुख के रूप में पदभार संभालने के नाटकीय घटनाक्रम का भी गवाह बना. सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे पर पार्टी टूटने का इतिहास भी इसी दफ्तर से जुड़ा है. बाद में सोनिया के नेतृत्व में 2004 और 2009 में लगातार लोकसभा चुनावों में जीत के साथ ही 2014 और 2019 में करारी हार भी पार्टी ने यहीं देखी.
1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार, फिर सिख दंगो के दौरान 24 अकबर रोड ही मुख्यालय था. 2004 में पहले सिख पीएम मनमोहन सिंह की ताजपोशी का गवाह भी बना.कांग्रेस के इतिहास में सबसे ज़्यादा वक़्त पार्टी अध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड भी सोनिया ने यहीं बनाया.इसी दफ़्तर में सोनिया ने ज़िम्मेदारियों का ट्रांसफर राहुल गांधी को किया लेकिन 2014 में सियासी इतिहास में 44 सीटें पाकर सबसे करारी हार भी पार्टी ने देखी.
…तो जश्न का गवाह 24 अकबर रोड बना
राहुल 2018 में अध्यक्ष भी बने लेकिन सीटें बढ़कर 52 ही पहुंच पाईं. पार्टी को विपक्ष के नेता का पद लगातार दो बार नहीं मिला. राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ा. 2024 से पहले मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष बने और इंडिया गठबन्धन बना. कांग्रेस 99 पहुंच गई. बीजेपी लगातार तीसरी बार बहुमत से दूर रह गई.
2004 में इसी दफ्तर से राजनीतिक पदार्पण करने वाले राहुल 2024 में रायबरेली से जीतकर लोकसभा में विपक्ष के नेता बन गए. 2014 के बाद 2024 में मानो 24 अकबर रोड गुलजार दिखा. इस बीच सोनिया राज्यसभा सांसद बन गईं तो राहुल की खाली की वायनाड सीट से प्रियंका गांधी ने बतौर सांसद पदार्पण किया तो भी जश्न का गवाह 24 अकबर रोड बना.
आखिर 2012 के बाद से अन्ना आंदोलन और भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते 2014 में सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुज़र कर जो उबरी थी.इससे पहले 1991 में नरसिम्हा राव युग देखा. सत्ता से दूर गांधी परिवार से मनमुटाव देखा. फिर 1996 में सीताराम केसरी युग भी यहीं घटा.
राजीव गांधी को सत्ता से बाहर जाते भी देखा
इस मुख्यालय ने 1985 में इंदिरा के निधन के बाद इतिहास की सबसे बड़ी जीत देखी तो 1989 में बोफोर्स के चलते राजीव गांधी को सत्ता से बाहर जाते भी देखा.इस घर का एक फायदा ये भी था कि इसका एक गेट इसे 10 जनपथ से जोड़ता है, जो उस समय भारतीय युवा कांग्रेस का कार्यालय था और बाद में राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी को एलॉट हुआ. इससे बतौर अध्यक्ष घर और दफ्तर में आना जाना आसान था.
आज़ादी से पहले, मोतीलाल नेहरू का इलाहाबाद स्थित आनंद भवन कांग्रेस का मुख्यालय था. 1947 के बाद पार्टी का मुख्यालय नई दिल्ली में 7 जंतर-मंतर शिफ्ट हो गया.1969 में जब कांग्रेस में विभाजन हुआ तो इंदिरा कांग्रेस ने 7 जंतर-मंतर खो दिया.इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के एमवी कृष्णप्पा के निवास पर विंडसर प्लेस में एक अस्थायी पार्टी कार्यालय बनाया.
1971 में कांग्रेस कार्यालय 5, राजेंद्र प्रसाद रोड से चला. बाद में इमरजेंसी के बाद वहां से 1978 में 24, अकबर रोड पर शिफ्ट हो गया. अब 15 जनवरी 2025 को इंदिरा गांधी भवन का उद्घाटन कांग्रेस अध्यक्ष खरगे और राहुल गांधी की उपस्थिति में सोनिया गांधी ने कर दिया है.
– India Samachar
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