पूर्ण विधानसभा बनने के बाद दिल्ली में अब तक 3 महिला मुख्यमंत्री बन चुकी हैं.
राजधानी दिल्ली की सियासत में आठवीं विधानसभा के लिए चुनाव प्रचार जोर पकड़ चुका है. 1993 में दिल्ली में पूर्ण विधानसभा की व्यवस्था होने के बाद अब तक दिल्ली में 6 मुख्यमंत्री हो चुके हैं. इसमें से 2 मुख्यमंत्री ऐसे भी हुए जिन्हें चुनाव से ठीक पहले सीएम पद की कमान मिली. दोनों ही अवसर पर दिल्ली को महिला मुख्यमंत्री ही मिली थीं. इनमें से एक मुख्यमंत्री वह भी रहीं जो विधानसभा का सदस्य हुए बगैर ही सीएम पद मिल गया था.
संविधान संशोधन के जरिए दिल्ली में जब पहली बार 1993 में विधानसभा चुनाव कराया गया तब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को पूर्ण बहुमत हासिल हुई और यहां पर मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बनाए गए. लेकिन खुराना का कार्यकाल (2 दिसंबर 1993 से 26 फरवरी 1996) लगातार उतार-चढ़ाव भरा रहा और 2 साल से कुछ अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने के बाद उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ गया.
प्याज की बढ़ी कीमतें बनी मुसीबत
फिर बीजेपी ने जाट नेता साहिब सिंह वर्मा को दिल्ली की कमान सौंपी. वह भी अपना कार्यकाल (26 फरवरी 1996 से 12 अक्टूबर 1998) पूरा नहीं कर सके. वह सीएम पद पर 2 साल 228 दिन तक ही बने रह सके. चुनाव से पहले पार्टी को लेकर बनी नकारात्मक छवि और देश में प्याज की लगातार बढ़ती कीमतों के बीच दिल्ली की बीजेपी सरकार के प्रति नाराजगी काफी बढ़ गई. इसे देखते हुए पार्टी ने फिर से अपना सीएम बदलने का फैसला लिया. बीजेपी ने चुनाव में उतरने से पहले सुषमा स्वराज जैसी तेजतर्रार छवि की नेता को मुख्यमंत्री बनाया.
सुषमा विधानसभा की सदस्य बने बगैर ही दिल्ली की तीसरी मुख्यमंत्री बन गईं. उन्होंने बीजेपी सरकार की छवि सुधारने की काफी कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. वह महज 52 दिन ही मुख्यमंत्री रह सकीं. दूसरे विधानसभा चुनाव में हार के बाद उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ गया.
काम न आया CM बदलने वाला दांव
बीजेपी ने जब सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया तो उनके पास करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं बचा था. प्याज की बढ़ी कीमतों से जनता खासा त्रस्त हो गई थी. पार्टी के लिए ताबड़तोड़ कोशिश करने के बाद उन्हें और उनकी पार्टी को निराशा ही हाथ लगी.
फिलहाल सुषमा स्वराज जब दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं तब वह केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार में केंद्रीय मंत्री थीं. केंद्र की राजनीति को छोड़ वह पार्टी के फैसले को स्वीकार करती हुईं दिल्ली की राजनीति में आ गईं और वह मुख्यमंत्री बनीं.
2 महीने से भी कम वक्त मिला
जिस वक्त सुषमा मुख्यमंत्री बनीं तब दिल्ली विधानसभा का पहला कार्यकाल अपने अंतिम पड़ाव की ओर था. उनके पास 2 महीने से भी कम का वक्त था. इस बीच दिल्ली में चुनावी फिजा अपने चरम पर पहुंच चुकी थी और विधानसभा का अगला सत्र बुलाया नहीं गया. चुनाव की तारीखों की घोषणा हो गई. इस वजह से वह बतौर मुख्यमंत्री दिल्ली विधानसभा में दाखिल नहीं हो सकीं.
हुआ यह कि विधानसभा का कार्यकाल अपने अंतिम साल में था. विधानसभा का 14वां सत्र 29 दिसंबर 1997 से शुरू हुआ जो 2 जनवरी 1998 तक चला. इसके बाद 15वां सत्र 23 मार्च 1998 से लेकर 3 अप्रैल 1998 तक बुलाया गया. तत्कालीन विधानसभा का अंतिम सत्र 24 सितंबर 1998 को बुलाया गया जो 30 सितंबर तक चला. इस सत्र के स्थगन के 12 दिन बाद दिल्ली में नेतृत्व बदला और सुषमा स्वराज दिल्ली की तीसरी मुख्यमंत्री बनीं.
सुषमा स्वराज से पहले चरण सिंह
सुषमा के शपथ लेने के बाद विधानसभा का अगला सत्र बुलाया नहीं जा सका. उनके पास महज 2 महीने का ही कार्यकाल था. दिसंबर 1998 में दूसरी विधानसभा के लिए चुनाव कराया गया. चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. खुद सुषमा को संघर्षपूर्ण मुकाबले में जीत मिली. हालांकि कुछ समय बाद उन्होंने विधायकी से इस्तीफा भी दे दिया था. सुषमा के अलावा सभी अन्य मुख्यमंत्री चुनाव जीतने के बाद ही मुख्यमंत्री बने थे.
अपने शानदार भाषण के लिए खास पहचान रखने वाली सुषमा स्वराज भी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की उस लिस्ट में शामिल हो गईं, जो अहम पद संभालने के बाद बतौर नेता अपने सदन में नहीं जा सकीं. सुषमा से पहले चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से 28 जुलाई 1979 को देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने, और वह अगले चुनाव होने तक करीब 6 महीने तक पद पर रहे. लेकिन वह सदन के नेता के तौर पर लोकसभा में नहीं जा सके.
23 दिन ही PM रह सके चरण सिंह
शपथ ग्रहण के बाद चौधरी चरण सिंह को लोकसभा में बहुमत साबित करना था, लेकिन इस बीच इंदिरा गांधी से उनके रिश्ते फिर बेहद खराब हो गए. कांग्रेस ने चरण सिंह के लोकसभा में फ्लोर टेस्ट से ठीक पहले अपना समर्थन वापस ले लिया. ऐसे में चरण सिंह को महज 23 दिन तक पद पर रहने के बाद 20 अगस्त 1979 को इस्तीफा देना पड़ गया.
चरण सिंह बतौर पीएम संसद की दहलीज तक नहीं पहुंच पाने वाले देश के अकेले प्रधानमंत्री बने. इस्तीफे के बाद उनकी सलाह पर राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने लोकसभा भंग कर दी. चरण सिंह अगली सरकार के अस्तित्व में आने तक जनवरी 1980 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहे.
– India Samachar
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