आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस नेता राहुल गांधी
दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी बाजार गर्म हो चुका है. लोकसभा चुनाव तक इंडिया गठबंधन का हिस्सा रहने वाली आम आदमी पार्टी और कांग्रेस अब एक दूसरे के धुर विरोधी हो चुके हैं. दिल्ली की सत्ता में 10 साल से काबिज आम आदमी पार्टी के सामने सरकार बचाने की चुनौती है तो दूसरी ओर कांग्रेस जनता को शीला दीक्षित के कार्यकाल की याद दिला रही है. इन दोनों पार्टियों के बीच में बीजेपी है जो कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों को घेरने में जुटी हुई है.
बीजेपी बार-बार दिल्ली में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रही है और कांग्रेस को AAP की गोदी में बैठने वाली पार्टी बता रही है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या सत्ता सिंहासन की इस लड़ाई में कांग्रेस आम आदमी पार्टी का विजय रथ रोक पाएगी या फिर बीजेपी दिल्ली में अपना सूखा खत्म करने सफल होगी? हालांकि, इसका पता तो 8 फरवरी को ही पता चलेगा जब नतीजे सामने आएंगे.
अभी तक के चुनाव प्रचार में आम आदमी पार्टी के सामने कांग्रेस इसलिए कड़ी चुनौती पेश कर रही है क्योंकि उसके पास खोने के लिए तो कुछ नहीं है, लेकिन जनता को बताने के लिए बहुत कुछ है. यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल या फिर उनकी पार्टी के नेता जैसे ही कुछ बड़ा वादा करते हैं तो फिर कांग्रेस उसके विरोध में उतर जाती है. कांग्रेस शीला दीक्षित के कार्यकाल में हुए कामों के जरिए लगातार आम आदमी पार्टी को घेर रही है. कई मौकों पर खुद संदीप दीक्षित भी आप पर हमला करते दिखे हैं. कांग्रेस नेता यह कहते हुए पीछे नहीं हट रहे हैं कि शीला दीक्षित की सरकार में दिल्ली का जो विकास हुआ वो आज तक कोई नहीं कर पाया. इसके लिए वो मेट्रो से लेकर सड़कों और फ्लाईओवर निर्माण तक का हवाला दे रही है.
छह महीने पहले गठबंधन में, अब धुर विरोधी
दरअसल, आम आदमी पार्टी ने पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन का हिस्सा थी. दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में आम आदमी पार्टी 4 पर तो कांग्रेस 3 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. दूसरी बीजेपी सात की सात सीट पर अकेले मैदान में थी. चुनावी नतीजों में सात की सातों सीट पर बीजेपी को जीत मिली जबकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपना खाता तक नहीं खोल पाई. इस चुनाव में कांग्रेस के पास दिल्ली में गंवाने के लिए कुछ नहीं था, लेकिन आम आदमी पार्टी तो सत्ता में थी. ऐसे में इसे कांग्रेस को कम लेकिन आम आदमी पार्टी को ज्यादा बड़ा झटका माना गया.
कांग्रेस-AAP अब एक दूसरे के जानी दुश्मन
अब जब दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो AAP-कांग्रेस के रास्ते अलग-अलग हो चुके हैं. दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन हो चुके हैं. कांग्रेस लगातार आम आदमी पार्टी को 10 साल की सत्ता का याद दिला रही है और पूछ रही है कि सरकार ने क्या किया कम से कम यही बता दें? दूसरी ओर आम आदमी पार्टी जो खुद को ऐसे दिखाने का प्रयास कर रही जैसे उसकी लड़ाई कांग्रेस से है ही नहीं. पार्टी नेता भी यही दिखाने में लगे हैं कि चुनाव में उनकी लड़ाई कांग्रेस से नहीं बल्कि बीजेपी से है. कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी ऐसा जानबूझकर कर रही है ताकि चुनाव में उसे दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़े. इसके पीछे भी एक ठोस वजह है.
आम आदमी पार्टी को लेकर कहा जाता है कि दिल्ली में उसका उदय ही कांग्रेस के पतन से हुआ है. इसके लिए अन्ना आंदोलन का उदाहरण दिया जाता है. ये वो आंदोलन था जहां से केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा था. इस आंदोलन में केंद्र में कोई और पार्टी नहीं बल्कि कांग्रेस ही थी. केंद्र और दिल्ली में दोनों जगहों पर कांग्रेस का शासन था. तब दिल्ली की कमान शीला दीक्षित के हाथों में थी. आम आदमी पार्टी ने शीला दीक्षित सरकार को घेरा और फिर 2013, 2015 और 2020 के चुनाव में जो हुआ वो सबके सामने था. दिल्ली में कांग्रेस का सियासी ग्राफ दिन पर दिन गिरता चला गया और आम आदमी पार्टी उतनी ही मजबूती से उभरती चली गई.
क्या कहते हैं चुनावी आंकड़े?
दिल्ली के चुनावी आंकड़ों पर नजर डाले तो आम आदमी पार्टी के उदय के बाद से अब तक तीन बार विधानसभा के चुनाव हुए हैं. इन तीनों ही बार आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इन तीनों ही चुनाव के आंकड़े देखें तो कांग्रेस के वोट ही शिफ्ट होकर आम आदमी पार्टी के पास गए हैं. आंकड़े बताते हैं कि 2013 के चुनाव में जब आम आदमी पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा था तब उसे 28 सीटें मिली थीं जबकि वोटर शेयर 29.49 फीसदी था. दिल्ली की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस 8 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस का वोट शेयर भी धड़ाम हो गया था. 2008 के चुनाव की तुलना में कांग्रेस का वोट शेयर 40.31 से 24.55 फीसदी पर आ गया. दूसरी ओर बीजेपी को मुश्किल से 3 फीसदी वोट को नुकसान हुआ था. हालांकि, चुनाव उसे फायदा यह हुआ कि उसकी 8 सीटें बढ़कर 31 पहुंच गई.
क्या कहते हैं 2015 और 2020 के चुनावी आंकड़े?
इसके बाद 2015 में मध्यावधि चुनाव हुए. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी और मजबूती के साथ लौटी और कांग्रेस धरातल में चली गई. आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई और सीटें 67 पहुंच गईं. बीजेपी के वोट शेयर में कोई खास अंतर नजर नहीं आया और तीन सीट जीतने में भी सफल रही. इसके बाद 2020 के चुनाव में कांग्रेस को लड़ाई से पूरी तरह गायब हो गई. आम आदमी पार्टी 62 सीट जीतकर सत्ता में लौटी. दूसरी ओर से बीजेपी भी 8 सीट जीतने में सफल रही. वोट प्रतिशत की बात करें तो इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को 53.57 फीसदी वोट मिले जबकि बीजेपी का वोट शेयर 38.51 प्रतिशत रहा. इस चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत करीब 5 फीसदी पर आ गया.
इस बार के चुनाव में कांग्रेस दिल्ली में अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाने में जुटी हुई है. अगर कांग्रेस ऐसा करने में सफल रहती है तो फिर आम आदमी पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. वोट प्रतिशत और चुनाव आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि आम आदमी पार्टी अभी तक कांग्रेस के वोटों के दम पर ही जीत हासिल करती आई है. इस बार अगर कांग्रेस के पुराने वोटरों का आम आदमी पार्टी से मोहभंग हुआ तो फिर मौजूदा सरकार को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
बीजेपी क्यों मार सकती है बाजी?
वहीं, अगर बीजेपी की बात करें तो पिछले चुनाव में उसका वोट शेयर 38.51 प्रतिशत पहुंच गया था. इसलिए कांग्रेस अगर दमदारी से लड़ी और उसके पुराने वोटरों का झुकाव उसकी ओर हुआ तो फिर बीजेपी के लिए सत्ता के दरवाजे खुल सकते हैं. यही वजह है कि चुनाव में आम आदमी पार्टी कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी पर हमलावर है. ये भी कह सकते हैं कि आम आदमी पार्टी यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि उसकी लड़ाई कांग्रेस से नहीं बीजेपी से है, लेकिन चुनाव आंकड़े और वास्तविकता कुछ और ही बयां कर रहे हैं.
चुनाव में AAP के लिए चुनौती क्यों है कांग्रेस?
दिल्ली में इस बार के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए कांग्रेस चुनौती बनती जा रही है. इसके पीछे एक वजह AAP सरकार के खिलाफ एंटी इंकंबैंसी भी है. आमतौर पर कोई सरकार जब 10 साल तक राज्य में राज कर लेती है तो उसे एंटी इंकंबैंसी का सामना करना पड़ता है. दिल्ली में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. दूसरी वजह ये भी है कि कांग्रेस इस बार पूरी मजबूती के साथ मैदान में उतर रही है. अगले कुछ दिन में कांग्रेस के करीब-करीब सभी बड़े नेता दिल्ली की सड़कों पर होंगे. कांग्रेस के नेता जनता को बार-बार शीला दीक्षित सरकार की याद दिला रहे हैं ताकि वोटरों के बीच में AAP सरकार के खिलाफ माहौल बनाया जा सके. कांग्रेस यह भी कह रही है कि मौजूदा सरकार जो भी योजना चला रही है वो उनसे बेहतर तरीके से चला कर दिखाएगी. शिक्षित बेरोजगारों को हर महीने 8500 रुपए भी देगी. इसके अलावा महिलाओं को हर महीने 2500 रुपए का वादा भी किया है.
– India Samachar
.
.
Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link