मेटा ने हाल ही में अमेरिका में अपना थर्ड पार्टी फैक्ट-चेकिंग प्रोग्राम बंद करने की घोषणा की, जिससे भारत में तमाम लोगों की चिंताएं बढ़ गईं। दरअसल, पिछले कुछ सालों में देश में फैक्ट चेकर तेजी से उभरे हैं और काफी हद तक मार्क जुकरबर्ग की कंपनी की तरफ से मिलने वाली फंडिंग पर निर्भर रहे हैं।
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माना जा रहा है कि जुकरबर्ग ने खुद को अमेरिका में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने जा रहा डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के अनुरूप ढालने के लिए इस प्रोग्राम को बंद करने का फैसला किया है। फैक्ट चेकिंग से जुड़े एक संगठन के वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी ने कहा कि इससे कई फैक्ट चेकर का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।
मेटा अपना फैक्ट चेकिंग फीचर स्वतंत्र और प्रमाणित संगठनों के साथ मिलकर चलाता रहा है। इसे 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में भ्रामक जानकारियां फैलने के दावों के बाद लाया गया था। इसमें किसी पोस्ट के कंटेंट में गलत या भ्रामक जानकारी पाए जाने के बाद फेसबुक और इंस्टाग्राम के फीड में चेतावनी के साथ दिखाया जाता है। मेटा अब एक्स के कम्युनिटी नोट्स की तर्ज पर सामुदायिक स्तर पर चलने वाला सिस्टम लाने की सोच रही है। ब्यूरो
फंडिंग घटने के आसार
विशेषज्ञों के मुताबिक, हालांकि मेटा की यह पहल अभी अमेरिका तक ही सीमित है लेकिन देर-सबेर इसका असर भारत में पड़ना तय है। पहली तो कई भारतीय संस्थाएं थर्ड-पार्टी फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम का हिस्सा बनकर मेटा से फंडिंग हासिल कर रही हैं। यह स्रोत बंद हुआ तो उनकी दुकान बंद हो सकती है। दूसरी बात, ये संस्थाएं व्यूअर बढ़ाने के लिए मेटा प्लेटफॉर्म पर निर्भर हैं। वह फेसबुक और इंस्टाग्राम के जरिये ही ट्रैफिक को अपनी वेबसाइट तक ला पाते हैं। इससे उनके लिए लोगों की नजरों में बना रहना मुश्किल हो जाएगा।
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