याद कीजिए 2018 में जब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत आए थे, तब उनकी कुछ फोटो बहुत वायरल हुई थीं. एक फोटो में वो अपने एक बच्चे को कंधे पर बिठाए हैं, एक को कमर से चिपटाए हैं और तीसरा बेटा उनकी अंगुली पकड़े ताजमहल को निहार रहा है. उनकी पत्नी बगल में खड़ी हैं. इसके अलावा एक फोटो में ट्रूडो का पूरा परिवार केसरिया पगड़ी बांधे स्वर्ण मंदिर के प्रांगण में फोटो क्लिक करा रहा है. हवाई अड्डे पर जब वो अपनी फ्लाइट से उतरे तब भी बच्चों का क्रम ठीक ऐसा ही था. ट्रूडो की सरलता, सहजता और पारिवारिक मूल्यों ने हर भारतीय का दिल जीता. यह अलग बात है कि भारत सरकार ने उनकी वैसी आव-भगत नहीं की थी, जैसी कि किसी देश के सरकार प्रमुख की होनी चाहिए. अलबत्ता इस हैंडसम प्रधानमंत्री ने भारतीय जनता के बीच अपनी छाप छोड़ी. यह छाप एकदम राजीव गांधी जैसी थी. सुंदर, सहज और फेमिली वेल्यू वाला प्रधानमंत्री.
राजीव गांधी जैसी शख्सियत
जस्टिन ट्रूडो जब प्रधानमंत्री बने तब उनकी उम्र लगभग उतनी ही थी जितनी कि 1984 में राजीव गांधी की प्रधानमंत्री की शपथ लेने के समय थी. राजीव गांधी की मां प्रधानमंत्री रह चुकी थीं और जस्टिन ट्रूडो के पिता दो बार कनाडा के प्रधानमंत्री रहे थे लेकिन कनाडा में कोई पिता के बाद प्रधानमंत्री का पद आसानी से नहीं पा सकता. उसे संघर्ष करना पड़ता है. पार्टी में नीचे से ऊपर चढ़ना पड़ता है और अपनी सांगठनिक योग्यता दिखानी पड़ती है. जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो पहले 1968 से 1979 तक प्रधानमंत्री रहे और फिर 1980 से 1984 तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे थे. मगर उनके बेटे को प्रधानमंत्री का पद पाने के लिए करीब 31 साल तक संघर्ष करना पड़ा. वो 2015 में प्रधानमंत्री चुने गए थे. फिर 2019 के चुनावों में उन्होंने अपनी लिबरल पार्टी को जितवाया. कोविड में उनके कार्यों की खूब सराहना हुई और 2021 में उन्होंने मध्यावधि चुनाव कराए और जीत हासिल की.
NDP के सहयोग से ट्रूडो PM बन सके
हालांकि, लिबरल पार्टी को 2021 में बहुमत नहीं मिला इसलिए उन्हें जगमीत सिंह की अल्ट्रा लेफ्ट पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) से मदद लेनी पड़ी. जगमीत सिंह भारत में सिख अलगाववादी संगठनों को प्रमोट करता था. इसलिए ट्रूडो को उसके इशारों पर चलना पड़ता था. सिख आतंकवादी आंदोलन को प्रोत्साहन देने के कारण भारत से कनाडा के रिश्ते खराब हुए. इसके अलावा जस्टिन ट्रूडो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के इशारों पर चलने लगे. बाइडेन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं पसंद करते थे. शायद इसलिए भी कि नरेंद्र मोदी ने 2020 के चुनाव में ट्रंप का खुला समर्थन किया था. इसलिए बाइडेन ने खालिस्तानी आतंकवाद को बढ़ावा दिया. उन्होंने ही ट्रूडो को भारत के विरोध में कनाडा के अलगाववादी सिखों को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया होगा.
तीन तरफ अमेरिका से घिरा है कनाडा
अमेरिका कनाडा के साथ अपनी सीमा तीन तरफ से शेयर करता है. खासकर दक्षिण कनाडा से अमेरिका में आवाजाही बहुत सुगम है. कनाडा में मैन्युफैक्चरिंग नहीं के बराबर है. इसलिए कनाडा में अधिकतर उत्पाद अमेरिका से आते हैं. जबकि कच्चा तेल और फल-फ़्रूट कनाडा निर्यात करता है. जो बाइडेन से करीबी के बावजूद अमेरिका कनाडा को निर्यात टैक्स में कोई रियायत नहीं देता था. कनाडा में यूरेनियम के भंडार हैं. इसके अलावा अमेरिका कनाडा में खाने-पीने की सामग्री का भी निर्यात करता है. एक तरह से देखा जाए तो कनाडा बिना अमेरिका की मदद के लाचार हो जाता है. कनाडा का जो भी प्रधानमंत्री अमेरिका के समक्ष नहीं झुका तो अमेरिका उसकी चौतरफा घेराबंदी करता है लेकिन जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो अमेरिका के समक्ष नहीं झुके थे.
महंगाई पर काबू नहीं कर सके जस्टिन ट्रूडो
जस्टिन ट्रूडो के राज में महंगाई बेपनाह बढ़ी. कच्चे तेल का भंडार होने के बावजूद भी कनाडा में पेट्रोल करीब दो डॉलर का एक लीटर मिलता और डीजल ढाई डॉलर. मतलब भारत से भी अधिक. खाने-पीने की चीजें भी बहुत महंगी हैं. सबसे महंगे तो मकान हैं. एक मिलियन डॉलर (कोई 6 करोड़ रुपये) से कम का कोई आशियाना टोरंटो, मांट्रियाल, ऑटवा या वैंकूवर में नहीं मिल सकता. जिस कनाडा में जॉब सबसे सुलभ थीं, वहां बेरोजगारी अथाह है. नौकरियां जा रही हैं और नई नौकरियां हैं नहीं. ऊपर से जस्टिन ट्रूडो ने शरणार्थियों को कनाडा लाने में खूब उदारता दिखाई. सीरिया, फिलिस्तीन, अफगानिस्तान से आए शरणार्थी तो वहां भरे ही हैं. यूक्रेन युद्ध के दौरान यूक्रेन, पोलैंड और हंगरी से भी शरणार्थी खूब आ रहे हैं. इसके अलावा भारतीय, चीनी, बांग्लादेशी और पाकिस्तान से भी लोग आकर यहां बसे हैं.
शरणार्थियों ने भी कनाडा की आर्थिकी बिगाड़ी
शरणार्थियों को मिलने वाली सहायता राशि ने कनाडा की अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी. इसी वजह से कनाडा के नागरिक ट्रूडो से आजिज आ गए थे. पिछले साल के उप चुनावों में लिबरल पार्टी बुरी तरह हारी. लिबरल पार्टी के नेताओं को भी लग रहा था कि अगर जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्त्व में चुनाव लड़ा गया तो हार तय है. पिछले साल सितंबर में NDP ने भी ट्रूडो सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. आज की तारीख में जस्टिन ट्रूडो सरकार अल्पमत में है. अमेरिका में नवंबर के चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने उन्हें और निराश किया. वो जानते हैं कि ट्रंप उन्हें पसंद नहीं करते. ट्रंप ने जीत के बाद एक बड़ी घोषणा की कि वो कनाडा से आने वाले माल पर निर्यात कर को और बढ़ाएंगे. दूसरे उन्होंने यह भी कह दिया कि ट्रूडो तो हमारा का गवर्नर है. कनाडा अमेरिका का 51वां राज्य है.
ट्रंप के बयान पर ट्रूडो ने साध ली चुप्पी
ट्रूडो ने ट्रंप के इस बयान पर चुप्पी साध ली. मगर देश में उसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई. इन सब विवादों से निस्पृह जस्टिन ट्रूडो सभी की सहानुभूति खो चुके हैं. इसी साल वहां संसद का आम चुनाव है. ऐसे में ट्रूडो की पार्टी के कई नेता उन्हें हटने को कह चुके थे. उनकी वित्त मंत्री कृष्टिया फ्रीलैंड उन्हीं की आर्थिक नीतियों के विरोध में इस्तीफा दे चुकी हैं. इसलिए जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को प्रेस बुलाकर इस्तीफे की घोषणा कर दी. संसद को 24 मार्च तक के लिए भंग कर दिया गया है. हालांकि उन्होंने कहा है कि किसी योग्य नेता के चयन पर वो पद से हट जाएंगे. फिलहाल नये नेता के चयन तक वो प्रधानमंत्री बने रहेंगे. अपुष्ट सूत्र बता रहे हैं कि कृष्टिया फ्रीलैंड उनकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी हैं और ट्रूडो उन्हें पसंद नहीं करते. इसलिए उम्मीद यही है कि मई तक वहां आम चुनाव की घोषणा हो जाएगी.
ट्रंप से भी खतरा
20 जनवरी को अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे. मालूम हो कि अमेरिका में राष्ट्रपति के निर्वाचित हो जाने के 75 दिन बाद उसे शपथ दिलाई जाती है. इस बीच पुराना राष्ट्रपति ही वहां का कर्त्ता-धर्ता बना रहता है. चूंकि निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच रिश्तों में बहुत कड़वाहट है. इसलिए यह आशंका है कि ट्रंप हर उस शख्स को प्रताड़ित कर सकते हैं जो बाइडेन को प्रिय रहा है. खासकर यूक्रेन-रूस युद्ध में बाइडेन यूक्रेन को मदद कर रहे थे. इस वजह से अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी बिगड़ी. यूक्रेन जैसा छोटा-सा देश रूस से पिछले लगभग तीन साल से लड़ रहा है तो यह भला अमेरिका की खुली मदद के बिना कैसे संभव है. न सिर्फ अमेरिका बल्कि नाटो के सारे देश यूक्रेन की मदद कर रहे हैं. इसी मदद से कनाडा आज तबाही की कगार पर है.
यूक्रेन की मदद से तबाह हुआ कनाडा
ट्रंप इस युद्ध के विरोधी हैं. वो बार-बार इस युद्ध को बंद करने की मांग कर रहे हैं. वो न सिर्फ इस युद्ध को बंद करवाना चाहते हैं बल्कि इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध और सीरिया की अंदरूनी लड़ाई को भी तत्काल बंद करवाने के पक्षधर हैं. नाटो देशों ने इस युद्ध के कारण अपनी अर्थव्यवस्था को खूब बिगाड़ा है. आज कनाडा में जो महंगाई बढ़ रही है, उसकी एक वजह यूक्रेन युद्ध भी है. कनाडा यूक्रेन को हथियार, सैनिक और पैसा सब दे रहा है. यूक्रेन से आने वाले शरणार्थियों को संरक्षण भी. जिस कनाडा में जॉब सर्व सुलभ थी वहां अब नौकरियां नहीं हैं. भारतीय वहां पढ़ने और नौकरियों के लालच में कई सालों से जा रहे हैं लेकिन वहां शिक्षा के नाम पर घोटाला है. पता चला 50 लाख से एक करोड़ खर्च कर बच्चा वहां पढ़ाई के लिए गया लेकिन जिस स्कूल में गया, वो एक कमरे में चल रहा है.
पढ़ाई के लिए कनाडा जाने वाले बच्चे बहाल
ऐसे स्कूल से निकले स्नातकों को कौन जॉब देगा? नतीजन उन्हें चोरी-छुपे कहीं होटलों में बर्तन मंजने का काम मिलता है तो कहीं गंदगी उठाने का. ऐसे लोगों को वहां न्यूनतम मजदूरी (15.5 कनाडाई डॉलर) भी नहीं मिलती. काम के घंटे भी फिक्स नहीं हैं. ऊपर से कनाडा का हार्ड मौसम, जहां पारा जीरो से तीस डिग्री तक नीचे तो टोरंटो जैसे शहरों में चला जाता है. इसके साथ ही गांजे की बिक्री को खुली छूट मिली होने के कारण कनाडा वहां के युवा नशेड़ी होते जा रहे हैं. ट्रंप ने इस पर भी चिंता जताई है कि कनाडा से नशे का कारोबार अमेरिका में भी आ रहा है. यद्यपि कनाडा में आज भी मानवीय मूल्य यथावत हैं. वहां कोई नस्ल भेद नहीं है. अश्वेत समुदाय वहां ठाठ से रहता है. दक्षिण एशियाई समुदाय भी खूब समृद्ध है लेकिन कनाडा कब तक अपने इन मूल्यों को बचाए रख सकेगा.
ट्रूडो ने हर तरह से निराश किया
इसीलिए कनाडा के लोग जस्टिन ट्रूडो का विरोध कर रहे हैं. उनको लगता है कि जस्टिन ट्रूडो के समय कनाडा की स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ा है. कनाडा उन अमेरिकी देशों में है, जहां स्वास्थ्य सेवाएं फ्री हैं. मगर, अस्पतालों में जगह नहीं है और डॉक्टर वहां निजी क्लिनिक नहीं खोल सकते. अलबत्ता दांत के डॉक्टर वहां हर गली-मोहल्ले के बीच बने सामुदायिक केंद्रों पर बैठे मिल जाएंगे. कनाडा में सामान्य चिकित्सा नहीं मिल पाती और दवा की दुकानों पर दवाएं बिना अस्पताल की पर्ची के मिलेंगी नहीं. अस्पतालों में चीखते-चिल्लाते तड़पते मरीजों को देखकर दुःख होता है. 12वीं तक शिक्षा फ्री है लेकिन जिस तरह आबादी बढ़ रही है, उस अनुपात में स्कूल नहीं. जस्टिन ट्रूडो ने अपनी आप्रवासन नीति को उदार तो किया लेकिन आबादी को सुविधाएं देने में नाकाम रहे. इसलिए उन्हें जाना ही था.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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