26 दिसंबर 2004 की सुबह, इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के पश्चिम में धरती के 30 किमी नीचे इंडियन और बर्मन टेक्टोनिक प्लेट्स में तेज हलचल हुई. इस हलचल ने इतिहास के सबसे विनाशकारी भूकंपों में से एक को जन्म दिया. भूकंप की तीव्रता थी 9.1—इतनी जोरदार कि हिंद महासागर में ऊंची लहरें उठनी शुरू हो गई.
लहरें 800 किमी/घंटा की रफ्तार से तटों की ओर बढ़ रहीं थीं. जैसे ही ये तटों से टकराईं, इनकी ऊंचाई तेजी से बढ़ती गई. 57 फीट ऊंची इन लहरों ने 14 देशों में तबाही मचा दी. पानी ने शहरों और गांवों को निगल लिया, हजारों घर बर्बाद हो गए, और लाखों जिंदगियां तबाह हो गईं. 20 साल बाद भी, यह मंजर भुलाया नहीं जा सकता. ये विश्व की सबसे बड़ी त्रासदियों में गिनी जाती है.
14 देशों में 2 लाख से ज्यादा मौतें
इस सुनामी ने 2.3 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली. सबसे ज्यादा नुकसान इंडोनेशिया में हुआ, जहां 1.72 लाख लोग मारे गए. 37 हजार से ज्यादा लोग लापता हो गए. भारत में भी 16 हजार से ज्यादा लोग इस आपदा का शिकार हुए. अकेले तमिलनाडु राज्य में आठ हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. वहीं अंडमान निकोबार में 3 हजार 515 मौतें हुईं. भारत के दक्षिणी तट से सैकड़ों मछुआरे लापता हो गए थे जिनके शव बाद में समुद्र से बहकर वापस आए. श्रीलंका में लाखों लोग बेघरबार हो गए. राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी थी. सुनामी से प्रभावित होने वाले दूसरे देश थे, थाईलैंड, मलेशिया, मालदिव्स और शेचिलीस.
आखिर क्यों आई थी इतनी भयानक सुनामी?
26 मई 2017 को जर्नल साइंस में पब्लिश हुई रिसर्च में सामने आया कि 26 दिसंबर 2004 को आई इस तबाही का कारण हिमालय पर्वत था. दरअसल, सुमात्रा में आए भूकंप का केंद्र हिंद महासागर में 30 किलोमीटर की गहराई में रहा, जहां भारत की टेक्टोनिक प्लेट आस्ट्रेलिया की टेक्टोनिक प्लेट की सीमा को छूती हैं.
हजारों वर्षों से हिमालय और तिब्बती पठार से कटने वाली तलछट गंगा और अन्य नदियों के जरिए हजारों किलोमीटर तक का सफर तय कर हिंद महासागर की तली में जाकर जमा होती रही. हिंद महासागर की तली में जमा होने वाली ये तलछट प्लेटों के बॉर्डर पर भी इकट्टा हो जाती हैं, जिसे सब्डक्शन जोन भी कहते हैं, जो तबाही मचाने वाली सुनामी का कारण बनती है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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