हिंदी फिल्मों के मशहूर पार्श्व गायक मोहम्मद रफी को संगीत के कद्रदान मखमली आवाज के मालिक कहते हैं. देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में उनके प्रशंसक हैं और उनकी गायकी को खुदा की देन कहते हैं. गौर करें तो उनकी शख्सियत भी उनकी आवाज की तरह ही नाजुक, मखमली और क्लासिकल थी. उन्हें हिंदुस्तानी ज़बान, तहजीब और अपनी प्रसिद्धि का गौरव तो था, लेकिन गुरूर बिल्कुल नहीं. वैसे तो उन्होंने अमिताभ बच्चन के लिए कई गीत गाए हैं, लेकिन एक बार एक गाने की रिकॉर्डिंग के समय अमिताभ बच्चन से मुलाकात के दौरान कुछ ऐसा ही वाकया हुआ, जिसकी कहानी किसी के भी दिल को छू जाती है. कहानी बताती है रफी साहब महान कलाकार होकर भी कितने डाउन टू अर्थ इंसान भी थे. जितने ऊंचे दर्जे के कलाकार, उतने ही सतह के सरल इंसान.
वाकया अस्सी के दशक का है. यह सदी के सुपर सितारा अमिताभ बच्चन के जादुई करिश्मे का समय था. त्रिशूल, सुहाग, लावारिस जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों के दौर में ही साल 1981 में एक मल्टीस्टारर फिल्म आई- नसीब. इस फिल्म को मनमोहन देसाई ने डायरेक्ट किया था. इस फिल्म के सारे गाने खूब लोकप्रिय हुए थे. फिल्म में अमिताभ बच्चन के अलावा हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, ऋषि कपूर और रीना राय ने अभिनय किया था. अस्सी के दशक की यह एक क्लासिक मल्टीस्टारर फिल्म है.
तब अमिताभ बच्चन भी गा चुके थे कई गीत
इसी फिल्म का एक गीत है- चल मेरे भाई, तेरे हाथ जोड़ता हूं… हाथ जोड़ता हूं… तेरे पांव पड़ता हूं… इस गीत को अभिताभ बच्चन और ऋषि कपूर पर फिल्माया गया था. दृश्य बड़ा ही नाटकीय है. अमिताभ बच्चन शराब के नशे में चूर हैं और ऋषि कपूर उनको मना रहे हैं, घर चलने का आग्रह कर रहे हैं. इस फिल्म से पहले अमिताभ बच्चन लावारिस में मेरे अंगने में… और उससे भी पहले मि. नटवरलाल में मेरे पास आओ… जैसे गाने को अपनी आवाज दे चुके थे. यही वक्त था जब सिलसिला में भी अमिताभ बच्चन ने रंग बरसे… गाना गाया था. अमिताभ मूलत: अभिनेता हैं लेकिन उनकी गायकी उनके सुर की वजह से नहीं बल्कि विशिष्ठ आवाज की बदौलत लोकप्रिय होती थी. आगे भी उन्होंने अपने पिता की कविता मधुशाला समेत लोकधुनों पर आधारित कई फिल्मी गाने गाए हैं.
अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता की लहर और चल मेरे भाई… गीत की भरपूर नाटकीयता को देखते हुए संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी और डायरेक्टर मनमोहन देसाई ने अमिताभ बच्चन की आवाज में ही गाने को रिकॉर्ड करने का फैसला किया और ऋषि कपूर की आवाज के लिए मोहम्मद रफी को बुलाया गया. दोनों कलाकार रिकॉर्डिंग स्टूडियो पहुंचे. एक सुरों के जादूगर, दूसरे अभिनय के शहंशाह. दो दिग्गज सितारों के अनोखे महामिलन का दिन था. गाना रिकॉर्ड हुआ.
अमिताभ बच्चन के साथ गाकर खुश थे रफी
चल मेरे भाई… की रिकॉर्डिंग के बाद मोहम्मद रफी अपने घर पहुंचे. अन्य दिनों की अपेक्षा उनके चेहरे पर कहीं ज्यादा उत्साह था, काफी खुश दिख रहे थे. परिवार के सदस्य समझ नहीं पाए, रफी साहब आखिर आज इतने प्रसन्न क्यों हैं!इससे पहले वो सैकड़ों गाने रिकॉर्ड कर घर आए लेकिन आज के दिन उनके चेहरे पर कुछ अलग ही ताजगी थी. घर के सदस्यों ने इसकी वजह पूछी. उन्होंने कहा- आज मैंने एक बहुत बड़े आदमी के साथ गाने की रिकॉर्डिंग की है. घर के लोगों ने पूछा- वो कौन हैं? रफी साहब पहले तो आसानी से बताने को तैयार नहीं थे. लेकिन कुछ समय के बाद उन्होंने घर के लोगों के सामने खुलासा कर ही दिया. कहा- अमिताभ बच्चन के साथ गाकर आए हैं.
चूंकि अस्सी के दशक में अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता सातवें आसमान पर थीं. हर कोई उनसे मिलना चाहता था, हर तरफ उनकी चर्चा थी. संयोगवश जो भी उनको देख लेता या मिल लेता, खुद को धन्य समझता. लिहाजा रफी साहब के भीतर भी खुशी का ठिकाना नहीं था. उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ गाने की रिकॉर्डिंग के इस दिन को अपने लिए एक ऐतिहासिक अवसर समझा, जीवन की बड़ी उपलब्धि के तौर पर माना.
बेटे शाहिद रफी ने सुनाई दिलचस्प दास्तान
इस पूरे वाकये का खुलासा काफी सालों बाद मोहम्मद रफी के बेटे शाहिद रफी ने एक इंटरव्यू के दौरान किया था. इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा कि समझिए कि मेरे वालिद रफी साहब भी कैसे इंसान थे! जिस गायक को पूरी दुनिया खुदा की देन कहती है, जब रफी साहब फिल्मों में आए और शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे, तब अमिताभ बच्चन साहब का भी वजूद क्या रहा होगा! लेकिन आज उम्र के इस मुकाम पर अमिताभ साहब से मिलकर वो खुद को धन्य मान रहे थे, मानो उनको खुदा ही मिल गया! अमिताभ की लंबाई और स्टारडम के आगे रफी साहब अपनी ऊंचाई और प्रसिद्धि को भूल बैठे. उन्हें खुद नहीं पता कि वो कितने बड़े आदमी थे. ऐसे थे रफी साहब.
आज ये कहानी उनकी गायकी की तरह ही उनके व्यक्तित्व की सरलता का एक उदाहरण पेश करती है.
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