कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव.
दिल्ली में अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसे लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. केजरीवाल के सियासी उदय के साथ ही दिल्ली की सियासत से कांग्रेस का सफाया हो गया. शीला दीक्षित की अगुवाई में 15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस 2013 में ऐसे बाहर हुई है कि दोबारा से वापसी नहीं कर सकी. अरविंद केजरीवाल के सियासी दुर्ग को भेदने के लिए कांग्रेस ने जेपी अग्रवाल से लेकर अरविंदर सिंह लवली और सुभाष चौपड़ा तक पर दांव खेला, लेकिन कोई भी कारगर नहीं रहा.
दिल्ली की सियासत में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. 2015 और 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल सकी थी. कांग्रेस दिल्ली में अपने सियासी वनवास को खत्म करने के लिए कई प्रयोग कर चुकी है, लेकिन सियासी वेंटिलेटर से उठ नहीं पा रही है. दिल्ली कांग्रेस की कमान संभाल रहे देवेंद्र यादव के लिए 2024 का विधानसभा चुनाव किसी भी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. कांग्रेस के सामने दिल्ली में अपना खाता खोलने की चुनौती है?
ऐसे हुआ कांग्रेस का दिल्ली की सियासत से सफाया
अन्ना आंदोलन के जरिए सियासी पहचान बनाने वाले अरविंद केजरीवाल ने 2013 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी का गठन किया था. इसके बाद उन्होंने 2013 में नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित के खिलाफ लड़ा और कांग्रेस का दिल्ली की सियासत से सफाया कर दिया. इसके बाद 11 सालों में कांग्रेस ने दिल्ली में आठ प्रदेश अध्यक्ष बनाए, जिसमें से तीन प्रदेश अध्यक्षों के कार्यकाल में तीन चुनाव हुए. इनमें से एक भी सफल नहीं रहे.
आम आदमी पार्टी का गठन कर अरविंद केजरीवाल 2013 के विधानसभा चुनाव मैदान में उतरे थे तो उस समय कांग्रेस की कमान पूर्व सांसद जेपी अग्रवाल के हाथों में थी. केजरीवाल की पार्टी का यह पहला चुनाव था. इसके बाद भी कांग्रेस सिर्फ 7 सीट पर ही सिमट गई थी. कांग्रेस ने उन्हीं सीटों पर जीत दर्ज की थी, जो मुस्लिम और सिख बहुल सीटें थीं.
विधानसभा चुनाव की हार के बाद जेपी अग्रवाल ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद पार्टी की कमान दिल्ली में अरविंदर सिंह लवली को सौंपी गई थी, जो शीला सरकार में मंत्री रह चुके थे. वह सिख समुदाय से आते हैं और 2013 में केजरीवाल की लहर में भी कांग्रेस से विधायक बनने में कामयाब रहे थे. अरविंदर लवली के अध्यक्षता में 2015 का विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस को फायदा मिलने के बजाय पूरी तरह सफाया हो गया.
2015 में कांग्रेस का हुआ था सूपड़ा साफ
2015 में कांग्रेस एक भी सीट दिल्ली में नहीं जीत सकी. इसके चलते अरविंदर सिंह लवली ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और अजय माकन को प्रदेश की कमान सौंप दी गई. माकन ने 2019 के लोकसभा चुनाव के सियासी सरगर्मी के बीच 5 जनवरी 2019 को इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह शीला दीक्षित को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस खाता नहीं खोल सकी.
शीला दीक्षित के निधन के बाद कांग्रेस ने दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष की कमान तीन बार के विधायक रहे सुभाष चौपड़ा को सौंपी गई. चौपड़ा पंजाबी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं. सुभाष चौपड़ा के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए 2020 का विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी. इतना ही नहीं कांग्रेस ने अपने कई दिग्गज नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन कोई भी जीत नहीं सका. हार की जिम्मेदारी लेते हुए सुभाष चोपड़ा ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ दी. प्रदेश अध्यक्ष की कमान गुर्जर समाज से आने वाले अनिल चौधरी को सौंपी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उनकी जगह देवेंद्र यादव को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.
देवेंद्र यादव की अग्रिपरीक्षा
दिल्ली में कांग्रेस की कमान संभाल रहे देवेंद्र यादव के लिए 2024 का विधानसभा चुनाव किसी अग्रिपरीक्षा से कम नहीं है. उनके सामने कांग्रेस के खोए हुए जनाधार को वापस पाने के साथ दिल्ली की सत्ता में खाता खोलने की चुनौती है. देवेंद्र यादव प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से एक्टिव मोड में है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए देवेंद्र यादव ने सभी विधानसभा क्षेत्रों में दिल्ली न्याय यात्रा निकाली. इस तरह वेंटीलेटर पर पड़ी कांग्रेस में नई जान फूंकने की कवायद की.
चुनाव की तारीख की घोषणा से पहले ही कांग्रेस ने जिन 21 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है, उनमें संदीप दीक्षित और हारुन युसुफ जैसे दिग्गज नेता खुद भी चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. इसके अलावा अब उम्मीदवारों के साथ चुनाव में जीत की रणनीति पर चर्चा कर उन्हें जीत का मंत्र दे रहे हैं. चुनाव के लिए कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय स्तर बनाए गए वॉर रूम में प्रदेश स्तर के दो वाइस चेयरमैन को भी शामिल किया गया है.
चुनाव में जीत के लिए बनाई रणनीति
प्रदेश कांग्रेस ने अपने 21 उम्मीदवारों के साथ बैठक की. बैठक का मकसद चुनाव में जीत हासिल करने की रणनीति पर चर्चा करना था. बैठक में सभी उम्मीदवारों को पार्टी की नीतियों और मुद्दों से अवगत कराया गया. प्रदेश अध्यक्ष ने अपनी सभी प्रत्याशी से इलाके के प्रभावशाली नेता, इंफ्लूएंसर, धार्मिक गुरु आदि के नाम मांगे गए हैं, जिसके जरिए स्थानीय स्तर पर लोगों से जुड़ा जा सके और उन्हें कांग्रेस को वोट करने के लिए प्रेरित किया जा सके. इसके अलावा सभी कैंडिडेट को अपने दो इंचार्ज के नाम देने को कहा गया है ताकि उम्मीदवार से सीधा संपर्क न हो पाने की स्थिति में इंचार्ज के जरिए संदेश पहुंचाने में मदद मिल सके. इस तरह कांग्रेस दिल्ली की चुनावी जंग को फतह करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है.
– India Samachar
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