किसी देश के राष्ट्रपति और गृहमंत्री की मौजूदगी में अगर उस देश के प्रधानमंत्री के ऊपर गोलियां झोंक दी जाएं. तो इससे ज्यादा शर्मनाक और सनसनीखेज घटना भला दूसरी क्या हो सकती है? ऐसी घटना किसी भी देश की सुरक्षा, खुफिया और जांच एजेंसियों के लिए जमाने में कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ती हैं. ऐसी शर्मसार करने वाली घटना के लिए हमें-आपको किसी दूसरे देश की ओर नजर उठाकर देखने की जरूरत नहीं है. यह घटना भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ ही घटी थी.
36 साल पहले घटी उस कातिलाना हमले की घटना में, राजीव गांधी अपनी सजगता व हमलावर का निशाना चूक जाने से बाल-बाल बचे थे. बाद में इस मामले की सीबीआई जांच कराई गई. जांच के लिए हिंदुस्तानी हुकूमत ने जांच कमेटी गठित की थी. जिसकी अध्यक्षता तेज-तर्रार ब्यूरोक्रेट टीएन शेषन ने की थी. तब पता चला कि राजीव गांधी के ऊपर हुए उस हमले की घटना को रोका जा सकता था. बशर्ते देश की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के बीच अगर बेहतर सामंजस्य रहा होता.
36 साल बाद इसलिए जिक्र जरूरी है
दरअसल 36 साल पहले घटी इस सनसनीखेज घटना का अब आज गांधी जयंती के मौके पर, जिक्र करने के पीछे अहम वजह है. क्योंकि यह घटना हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली में स्थित, महात्मा गांधी के समाधि-स्थल यानि राजघाट पर 2 अक्टूबर सन् 1986 को ही घटी थी. हर साल की तरह तब उस साल भी तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह के साथ प्रधानमंत्री राजीव गांधी सुबह करीब सवा से साढ़े छह बजे के बीच, समाधि स्थल पर पहुंचे थे. साथ में राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी भी थीं. देश की तमाम सुपर पावर की मौजूदगी में प्रधानमंत्री के ऊपर हुए उस कातिलाना हमले ने, भारत की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को कटघरे में ला खड़ा किया था.
राष्ट्रपति-गृहमंत्री हमले के गवाह बने
हमलावर द्वारा डेढ़ दो घंटे के अंतराल पर दो बार में प्रधानमंत्री के ऊपर तीन गोलियां दाग दिए जाने की उस घटना के चश्मदीद बने थे, खुद भारत के राष्ट्रपति और केंद्रीय गृहमंत्री. हिंदुस्तानी एजेंसियों को लिए यह भी कम शर्मसार करने वाली बात नहीं थी. उस घटना का हमलावर 24 साल का इंजीनियरिंग स्टूडेंट करमजीत सिंह मौके से जिंदा पकड़ लिया गया था. जिसके खिलाफ सीबीआई ने जांच की. सीबीआई की पड़ताल के आधार पर करमजीत सिंह को 14 साल की सजा मुकर्रर करके, उसे तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया. यह तो बात रही प्रधानमंत्री के ऊपर हमला और फिर हमलावर को सीबीआई की जांच के आधार पर सजा दिलाने की. टीवी9 भारतवर्ष ने इस मौके पर अब 36 साल बाद तलाश करके विशेष बातचीत की उस घटना में सीबीआई की जांच टीम के सर्वे-सर्वा रहे शांतनु सेन से. वही शांतनु सेन जो सीबीआई से जॉइंट डायरेक्टर के पद से रिटायर हो चुके हैं.
वो शर्मनाक घटना रोकी जा सकती थी!
वही शांतनु सेन जिन्होंने दिल्ली के उप-राज्यपाल तेजेंद्र खन्ना विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) रहते हुए, दिल्ली पुलिस की सुस्त चाल को भी गतिमान बना डाला था. प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ऊपर हुए हमले के वक्त शांतनु सेन विदेश में थे. हमले की खबर सुनते ही वे भारत लौट आए. शांतनु सेन उन दिनों सीबीआई की पंजाब टेररिस्ट सेल के डीआईजी के पद पर तैनात थे. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जब जांच सीबीआई के हवाले की, तो वो जांच इन्हीं शांतनु सेन की टीम को मिली. बकौल शांतनु सेन, “प्राइम मिनिस्टर राजीव गांधी के ऊपर हमले की उस घटना की तफ्तीश में जुड़ा रहने के चलते मैं कह सकता हूं कि, वो शर्मनाक घटना रोकी जा सकती थी. बशर्ते, हमारे देश की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के बीच (आईबी, रॉ और दिल्ली पुलिस) के बीच बेहतर सामंजस्य-तालमेल रहा होता.”
हमलावर हमारी एजेंसियों से चतुर था
एक उलझे हुए सवाल के दो टूक और सीधे-सपाट जवाब में शांतनु सेन कहते हैं, “अगर यह कहूं कि उस घटना को अंजाम देने वाला हमलावर करमजीत सिंह, जिसे सीबीआई की इंक्वायरी के बाद 14 साल की सजा हुई थी, हमारी एजेंसियों से कहीं ज्यादा चतुर, सजग और समझदार था. वो अपनी रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब रहा. यह उसकी बदकिस्मती रही कि निशाना चूक गया और प्रधानमंत्री उसकी गोलियों का शिकार बनने से बच गए.”
“हां, 24 साल के एक उस हमलावार करमजीत सिंह ने हिंदुस्तान से विशाल देश की खुफिया एजेंसियों और स्कॉटलैंड स्टाइल पर काम करने का दम भरने वाली, दिल्ली पुलिस को जरूर सवालों के घेरे में ला खड़ा किया था, जो करमजीत न तो प्रोफेशनल ट्रेंड आतंकवादी-अपराधी था. न ही उस दिन से पहले जिस इंजीनियरिंग के तेज-दिमाग स्टूडेंट करमजीत ने पहले कभी किसी हथियार को हाथ ही लगाया था. इस सबके बाद भी उसने राजीव गांधी के ऊपर एक नहीं दो बार में तीन गोलियां झोंककर साबित कर दिया कि दिल्ली पुलिस और हमारी इंटेलीजेंस एजेंसियां सो रही थीं.”
मुझसे ज्यादा सच किसे मालूम होगा?
यह सब आप किस आधार पर कह सकते हैं? पूछने पर शांतनु सेन कहते हैं, “मैंने और मेरी टीम ने उस हमले की जांच की थी. तो मुझसे बेहतर दुनिया में उस मुकदमे की, उस हमले की नाकी-घाटी भला और कौन जानता है जो सच बयान कर सकेगा. मैं उसी सीबीआई टीम का डीआईजी रह चुका हूं जिस सीबीआई टीम की तफ्तीश पर हमलावर ने 14 साल की (शायद पांच महीने कम) सजा तिहाड़ जेल में काटी है.” आपको सीबीआई अफसर और उस हमले की जांच टीम से जुड़े रहने के दौरान क्या-क्या खामियां नजर आईं, जिन्हें अगर दूर कर लिया गया होता तो शायद, वो शर्मनाक घटना होने से रोकी जा सकती थी?
पूछने पर शांतनु सेन टीवी9 भारतवर्ष से कहते हैं, “बहुत झोल थे. भारत की खुद को इंटरनेशनल खुफिया एजेंसी का दम भरने वाली एजेंसी की आधी-अधूरी खुफिया जानकारी को सही तरीके से अमल में ही नहीं लाया गया था. रही सही कसर बाकी दूसरी हमारी खुफिया और सुरक्षा (आईबी और दिल्ली पुलिस) एजेंसियों ने पूरी कर दीं. जब दिल्ली पुलिस ने राजघाट के चप्पे चप्पे को छान लिया था. तो फिर हमलावर राजघाट के ऊपर पेड़ (बेलदार) की आड़ में 7 दिन तक छिप कर कैसे बैठे रहा था?”
इंटेलीजेंस इनपुट तो पहले से था
36 साल पहले घटी उस घटना में मौजूद अन्य झोल गिनाते हुए सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक शांतनु सेन कहते हैं, “दरअसल खुफिया जानकारी तो उस हमले की हमारी एजेंसियों के पास पहले आ गई थी. मगर उस पर सिस्टमैटिकली और गंभीरता से अमल नहीं किया जा सका. खुफिया जानकारी पहले तो आधी अधूरी दी गई थी. उसके बाद उस पर गंभीरता से अमल न करके बाकी कसर दिल्ली पुलिस ने पूरी कर डाली. हमारी एजेंसियों की इन्हीं कमजोरियों का पूरा-पूरा लाभ लेने में हमलावर करमजीत सिंह कामयाब रहा. वरना भला करमजीत से नौसिखिये और नॉन प्रफेशनल क्रिमिनल की भला क्या बिसात थी जो वो, देश की तमाम सुपर पावर के बीच में प्रधानमंत्री के ऊपर गोलियां दागने में कामयाब हो जाता.
और तो और जब हमलावर करमजीत सिंह से सीबीआई टीम ने पूछताछ कि तो उसने खुद ही कबूला कि, जब उसने मौके पर एक के बाद एक तीन गोलियां प्राइम मिनिस्टर राजीव गांधी को टारगेट करके चलाईं, तो उनमें से एक दो गोली राजघाट पर क्यारी में जा धंसी थी. अगर दिल्ली पुलिस या खुफिया एजेंसियों के लोग काबिल होते. तो वे मुझे पहली गोली चलने के तुरंत बाद ही गोली चलाए जाने की दिशा और गोली जहां जाकर क्यारी में धंसी उसका मिलान करके, पकड़ सकते थे.”
CBI के सामने हमलावर ने कबूला
शांतनु सेन के मुताबिक,”सीबीआई टीम की पूछताछ में ही करमजीत ने कबूला था कि जब पहली गोली चलने के बाद भी मौके पर मौजूद पुलिस और खुफिया अधिकारी उस तक नहीं पहुंच सके, जबकि वो वहीं बेलदार पेड़ के ऊपर छिपा बैठा रहा. तभी तो उसे राजीव गांधी जब एक डेढ़ घंटा बाद वापिस जाने लगे तो उनके ऊपर फिर से 2 गोलियां चलाने का मौका मिल गया. बाद में चलाई गई उन दो गोलियों में से ही एक गोली प्रधानमंत्री के कान के करीब से निकल गई थी.” अगर सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही नहीं थी तो फिर उन दिनों दिल्ली पुलिस में एडिश्नल कमिश्नर (सिक्योरिटी और ट्रैफिक) आईपीएस गौतम कौल को क्यों सस्पेंड किया गया? गौतम कौल उस घटना की जांच के लिए केंद्रीय सचिव टीएन शेषन की अध्यक्षता वाली कमेटी की सिफारिश पर ही सस्पेंड हुए थे. अब 36 साल बाद उस घटना के पन्ने टीवी9 भारतवर्ष द्वारा पलटने पर बताते हैं शांतनु सेन.
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