सोमवार रात (3 अक्टूबर 2022) जम्मू (कश्मीर घाटी) में कत्ल कर डाले गए, 1992 बैच के आईपीएस और राज्य के पुलिस महानिदेशक (जेल) हेमंत कुमार लोहिया हत्याकांड में तमाम झोल हैं. इन झोल को लेकर पैदा हो रहे सवालों पर एजेंसियों की “खामोशी” हत्याकांड को और भी पेचीदा बना रही है. जरूर है जानना कत्ल की Inside Story जो अब तक जमाने की नजरों से दूर है? इन्हीं झोल-सवालों को लेकर जम्मू कश्मीर की पुलिस और देश की खुफिया एजेंसियां खामोशी अख्तियार किए बैठी हैं. आखिर ऐसा क्यों? 3 अक्टूबर 2022 को रात करीब 9 से 10 बजे के बीच यानी बीते सोमवार को डीजी जम्मू कश्मीर जेल हेमंत कुमार लोहिया दोस्त के घर में कत्ल कर डाले गए.
कत्ल की यह दुस्साहसिक वारदात तब अंजाम दी गई जब हिंदुस्तानी हुकूमत के होम मिनिस्टर अमित शाह, खुद कश्मीर घाटी में मौजूद थे. ऐसे वक्त में सूबे की जेलों के मुखिया के कत्ल को अंजाम भले ही अदना से नौकर यासिर अहमद ने क्यों न दिया हो मगर, इस कत्ल पर दावा ठोंक दिया पाकिस्तान के टुकड़ों पर पल रहे दो-दो आतंकवादी संगठन टीआरएफ यानि द रेजिस्टेंस फ्रंट और पीएएफएफ ने. हालांकि हिंदुस्तानी हुकूमत और उसकी खुफिया एजेंसियों व जम्मू कश्मीर पुलिस ने, इन दावों को नकार कर उनकी हवा निकालने की नाकाम कोशिश की. सवाल यह पैदा होता है कि आखिर जब इन आतंकवादी संगठनों का अगर, इस जघन्य हत्याकांड में हाथ नहीं था तो, फिर वो श्रेय लेने की होड़ में क्यों कूद पड़ने की जुर्रत कैसे कर बैठे होंगे?
इस कत्ल का जिम्मा अपने कंधों पर लेने की हिमाकत की भी है तो
दूसरा सवाल यह पैदा होता है कि अगर आतंकवादी संगठनों ने, इस कत्ल का जिम्मा अपने कंधों पर लेने की हिमाकत की भी है तो फिर, उनके दावे को फुस्स करने के लिए हिंदुस्तानी हुकूमत और हमारी एजेंसियां, अब तक कोई पुख्ता कारण जमाने के सामने पेश क्यों नहीं कर सकी हैं? घटना के चार दिन बाद भी, जिससे दुनिया समझ सके कि डीजी जेल जम्मू कश्मीर का कत्ल कोई आतंकवादी वारदात नहीं थी. अपितु यह सिर्फ और सिर्फ नौकर द्वारा अपने बलबूते पर किए गए एक कत्ल भर की घटना है. अगर यह आतंकवादी घटना नहीं है तो यह साबित भी तो हिंदुस्तानी जांच एजेंसियों को ही करना है. जबकि जम्मू कश्मीर पुलिस इस सवाल पर भी खामोशी अख्तियार करके वक्त को किसी तरह आगे खिसकाने के इंतजार में बैठी नजर आ रही है! ताकि आज मचे हाहाकार से दो चार दिन बाद हालात अपने आप ही सामान्य होते देख, अधिकांश लोग इस खूनी घटना की यादों को खुद-ब-खुद ही स्मृति से धुमिल कर जाएंगे.
फाइलों में आसानी से जमींदोज-दफन हो जाएगा!
और जम्मू कश्मीर घाटी जैसे संवेदनशील सूबे के डीजी (जेल) के कत्ल की कहानी का सच भी, वक्त के साथ सरकारी फाइलों में आसानी से जमींदोज-दफन हो जाएगा! दरअसल टीवी9 भारतवर्ष ने जब डीजी जम्मू कश्मीर जेल हेमंत लोहिया के कत्ल की तफ्तीश के अंधेरे कुंए में झांक कर देखा, तो उसमें तमाम झोल मौजूद मिले. सीबीआई के एक पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर और अनुभवी पड़ताली अफसर के मुताबिक, “ऐसे संवेदनशील राज्य के डीजी जेल के घर तक किसी सिविलयन नौकर की, यासिर अहमद के रूप में इंट्री ही किसकी अनुमति से और कैसे हो गई? जब इसकी शुरूआत छह महीने पहले हुई तब देश की खुफिया एजेंसियां कहां और क्यों सो रही थीं? हिंदुस्तानी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों ने भविष्य के संभावित खतरे को भांपकर, छह महीने पहले जब डीजी जेल के करीब घरेलू नौकर के रूप में यासिर अहमद के पहुंचने या उसे पहुंचाने की कथित तैयारियां चल रही थीं, उसी वक्त आगाह करके इस काम को होने से रोका क्यों नहीं?”
इस तरह के कत्ल की दुस्साहसिक घटना को टाला जा सकता था
खुद की पहचान उजागर न करने की शर्त पर यही सीबीआई के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर अगला सवाल दागते हैं, “जब डीजी जेल के पास पुलिस और जेल का सरकारी स्टाफ भरपूर मात्रा में मौजूद होता है. तब फिर उन्होंने (कत्ल किए जा चुके जम्मू कश्मीर के डीजी जेल हेमंत लोहिया ) ऐसे में तमाम खुफिया और सुरक्षा खतरों को नजंरदाज करके, किसी सिविलियन को अपने घर और दफ्तर की देहरी के भीतर पांव रखने की अनुमति ही क्यों दे दी? और अगर जब वे ऐसा कर रहे थे तब फिर उनके द्वारा इस कदम को उठाए जाने के वक्त, हमारी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां कान में तेल डालकर क्यों सो रही थीं? हमारी एजेंसियों ने संभावित खतरे से अंजान डीजी जेल को उनके इस कदम को उठाने से रोकने के लिए क्या किया? अगर हमारी सतर्क एजेंसियों द्वारा डीजी जेल को सिविलियन नौकर अपने घर या दफ्तर में रखने से रोका गया होता तो भी, इस तरह के कत्ल की दुस्साहसिक घटना को टाला जा सकता था.”
घर के बारे में पहले से कुछ अंदरूनी जानकारी नहीं थी?
यह सवाल तो वे हैं जो कत्ल किए जा चुके डीजी जेल जम्मू कश्मीर घाटी, देश की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी हैं. अब बात करते हैं कत्ल के बाद की कहानी में मौजूद झोल की. जिस घरेलू नौकर ने अकेले ही अपने बॉस यानी आईपीएस हेमंत लोहिया को महज एक अदद कांच की टूटी बोतल के बलबूले मार डाला और फिर, सकुशल मौके से फरार भी हो गया. सवाल यह है कि आखिर डीजी जेल जैसे संवेदनशील पद पर तैनात, अनुभवी आईपीएस हेमंत कुमार लोहिया डिनर के लिए किसी सिविलियन दोस्त की देहरी पर उसके घर जा ही क्यों पहुंचे? दूसरा सवाल, जब कत्ल करने वाला नौकर यारिस अहमद, उस घर के लिए जो डीजी जेल हेमंत के दोस्त का था (जहां वे कत्ल किए गए) के लिए एकदम नया था. जिसका भूगोल नौकर जानता ही न हो. वहां से कत्ल करने के बाद डीजी जेल की लाश को आग के हवाले करके भी आखिर, नौकर यासिर अहमद कैसे भागने में कामयाब हो गया? जिस नौकर ने पहले कभी घटनास्थल की शक्ल भी न देखी थी! वही नौकर कत्ल की घटना को अंजाम देने के बाद खिड़की-दरवाजा तोड़कर सुरक्षित भाग निकलने में कैसे कामयाब रहा? अगर उसे उस घर के बारे में पहले से कुछ अंदरूनी जानकारी नहीं थी?”
डीजी जेल के सरकारी आवास और दफ्तर की तुलना में सुरक्षा इंतजाम जीरो थे?
डीजी जेल का कत्ल हुआ. उसके बाद उनके शव को आग के हवाले भी एक अदद अदना से नौकर ने कर डाला. यह जघन्य कांड अंजाम दिए जाने के वक्त डीजी जेल हेमंत कुमार लोहिया की सुरक्षा में तैनात सुरक्षा कर्मी कहां थे? आखिर उनकी हद से कत्ल का आरोपी नौकर यासिर अहमद 12-14 किलोमीटर दूर कैसे सुरक्षित बच कर भाग सका? एक सवाल यह भी पैदा होना लाजिमी है कि क्या, कत्ल के आरोपी नौकर यासिर अहमद का, पुलिस वेरीफिकेशन उसकी डीजी जेल के साथ तैनाती से पहले कराया गया था? अगर हां तो फिर, स्थानीय पुलिस ने खुद क्यों नहीं इस बात पर आपत्ति जताई कि, जम्मू कश्मीर से संवेदनशील राज्य के डीजी जेल से ही संवेदनशील पद पर तैनात अफसर के साथ, किसी गैर-सरकारी मुलाजिम की तैनाती अनुचित है! डीजी जेल जैसे संवेदनशील पद पर तैनात रहे और अनुभवी आईपीएस अधिकारी हेमंत कुमार कैसे और क्यों, अपना सुरक्षित सरकारी बंगला छोड़कर डिनर करने किसी सिविलियन दोस्त के घर जा पहुंचे? उस सिविलियन दोस्त के घर जहां, डीजी जेल के सरकारी आवास और दफ्तर की तुलना में सुरक्षा इंतजाम जीरो थे?
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