मिडिल ईस्ट में रूस के सबसे बड़े सहयोगी के बशर अल-असद के पैर उखड़ चुके हैं. नवंबर के अंत में हालात ऐसे बने कि महज़ 11 दिनों में विद्रोहियों ने दमिश्क पर कब्जा कर लिया और करीब 23 साल से राष्ट्रपति के पद पर काबिज असद को मॉस्को भागना पड़ा.
इन सबके बीच सीरिया में रूस की मौजूदगी को लेकर सवाल उठ रहे थे कि क्या पुतिन की सेना विद्रोहियों से बातचीत कर अपनी उपस्थिति बनाए रखेगी या फिर वह मिडिल ईस्ट में अपना एकमात्र रणनीतिक ठिकाना छोड़ देंगे?
अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ की रिपोर्ट के अनुसार रूस ने सीरिया से अपना बोरिया-बिस्तर समेटना शुरू कर दिया है. लेकिन एक्सपर्ट्स के एनालिसिस के मुताबिक रूस भले ही सीरिया से पैकअप कर रहा है लेकिन उसने अपने लिए जो नया ठिकाना तलाशा है वह NATO की चिंता को और बढ़ा सकता है.
सैन्य उपकरणों को लीबिया शिफ्ट कर रहा रूस
WSJ की रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने सीरिया में अपने सैन्य और रणनीतिक ठिकानों से एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम और दूसरे अत्याधुनिक हथियारों को लीबिया शिफ्ट कर रहा है. अमेरिका और लीबिया के अधिकारियों के मुताबिक रूस, दमिश्क में असद शासन के पतन के बाद मिडिल ईस्ट में अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है.
अधिकारियों ने कहा कि रूसी कार्गो विमानों ने सीरिया से एयर डिफेंस सिस्टम, S-400 और S-300 इंटरसेप्टर सिस्टम के लिए इस्तेमाल होने वाले रडार समेत मॉस्को समर्थित सरदार खलीफा हफ्तार द्वारा नियंत्रित पूर्वी लीबिया के ठिकानों तक उड़ान भरी है.
असद सरकार के तख्तापलट के बाद बड़ा फैसला
ओपन सोर्स इन्वेस्टिगेटर्स ने सैटेलाइट इमेज और ऑनलाइन एयर ट्रैफिक को देखते हुए निष्कर्ष निकाला है कि, रूस ने सीरिया में अपने सहयोगी और बशर अल-असद शासन के बेदखली के करीब दो हफ्ते बाद सीरिया में सबसे लंबे समय से स्थित अपने रणनीतिक ठिकानों को लेकर एक बड़ा कदम उठाया है. ओपन सोर्स इन्वेस्टिगेटर्स ने अटैक हेलीकॉप्टर्स और S-400 एयर डिफेंस सिस्टम को यात्रा के लिए डिस्मेंटल कर सूटकेस लेकर जाने के लिए लोगों को इंतजार करते और बड़े कार्गो विमानों को लोड होते देखा है.
इसके अलावा 11 दिसंबर को रूस के नौसैनिक जहाजों को सीरियाई बंदरगाहों से निकलते देखा गया था, इसके दो दिन पहले ही 8 दिसंबर को हयात तहरीर अल शाम के नेतृत्व में विद्रोहिया ने सीरिया में असद सरकार का तख्तापलट कर दिया था. हालांकि रूस के अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया था कि उनके सैनिक सीरिया से निकल रहे हैं और कहा गया था कि रूस उन विद्रोही गुटों के साथ वार्ता कर रहा है, जिन्होंने असद सरकार का तख्तापलट किया और अब सीरिया में ट्रांजिशन सरकार बनाई.
सीरिया से रूस का ‘परमानेंट पैकअप’
सीरिया में रूस के दो महत्वपूर्ण मिलिट्री बेस हैं, टारटस नेवल बेस को रूस ने 1971 में स्थापित किया था इसके अलावा हमेमिम एयर बेस को 2015 में स्थापित किया गया था. टारटस, सोवियत क्षेत्र के बाहर रूस का एकलौता आधिकारिक नेवल बेस है. 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से पहले इस क्षेत्र में रूस की उपस्थिति बढ़ गई थी, जिसका उद्देश्य भूमध्य सागर में NATO के किसी भी अभियान का मुकाबला करना, उसे रोकना और उसकी निगरानी करना था.
वहीं हमेमिम एयरबेस को अफ्रीका में रूसी कार्रवाई के लिए लॉजिस्टिक और स्टेजिंग पोस्ट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, रूस ने जब सीरिया के गृह युद्ध में हस्तक्षेप किया तो यह सीधे तौर पर रूस के नियंत्रण में आ गया. रूस ने गृह युद्ध के दौरान सरकार विरोधी विद्रोहियों को कुचलने में असद सरकार की मदद की और रूस की हवाई ताकत असर सरकार के पक्ष में महत्वपूर्ण साबित हुई.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर रूस लीबिया में शिफ्ट होता है तो यह बदलाव भूमध्य सागर में सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है और वहां जमे हुए संघर्ष को असंतुलित कर सकता है.
लीबिया में पैठ बनाने की कोशिश में रूस
ब्रिटिश अखबार ‘द टेलीग्राफ’ ने इसी साल अपनी रिपोर्ट में बताया था कि रूस ने लीबिया के एयर बेस में रनवे और सुरक्षा को मजबूत करना शुरू कर दिया है, उसने यहां नए ढांचे बनाए और हथियार डिलिवर किए. 2014 से लीबिया दो भागों में बंटा हुआ है, लीबिया के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में विरोधी गुट हैं. UN समर्थित प्रशासन जिसे गवर्नमेंट ऑफ नेशनल यूनिटी (GNU) के नाम से जाना जाता है जो पश्चिम में हैं और इनके विरोधी जिन्हें हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के नाम से जाना जाता है वह टोबरुक में पूर्व की ओर स्थित हैं. सरकार विरोधी गुटों को सेनापति से पॉलिटिशियन बने खलीफा हफ्तार का समर्थन है जो इस इलाके में कई हथियारबंद समूहों को नियंत्रित करते हैं.
पिछले एक दशक में कई बार हर सरकार विद्रोहियों से इन क्षेत्रों का नियंत्रण हासिल करने के प्रयास में नाकाम रही, लेकिन वर्तमान में यह तनाव बरकरार है और इसका नतीजा यह है कि यहां की सुरक्षा स्थिति अस्थिर बनी हुई है.
लीबिया में NATO के लिए रूस बड़ी चुनौती
कार्नीज इंडोव्मेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में मिडिल ईस्ट प्रोग्राम के सीनियर फेलो फ्रेडरिक व्हेरे ने पिछले हफ्ते लिखा था कि, ‘बीते कुछ सालों से लीबिया के यह गुट गतिरोध में फंसे हुए हैं जिसकी वजह से देश में कोई बड़ा संघर्ष देखने को नहीं मिला है, लेकिन यह काफी हद तक दो प्रमुख क्षेत्रीय ताकतों पर निर्भर करता है जिनके पास जमीन पर महत्वपूर्ण मिलिट्री फोर्स है, वह है- रूस और तुर्किए.’ उन्होंने कहा कि असद शासन का तख्तापलट लीबिया के इस नाज़ुक संतुलन को प्रभावित कर सकता है. उन्होंने तर्क दिया कि लीबिया का यह रुका हुआ संघर्ष उसी दिशा में आगे बढ़ सकता है जैसा कि सीरिया में हुआ और यह दोबारा बड़े संघर्ष में बदल सकता है.
फ्रेडरिक ने कहा कि यह रूस के अगले कदम पर निर्भर होगा, अगर रूस हफ्तार को लीबिया में और स्थायी बेस स्थापित करने के लिए मना ले तो यह NATO के लिए एक प्रमुख चुनौती हो सकती है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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