दिल्ली के पहले सीएम चौधरी ब्रह्मप्रकाश.
दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और सियासी दल अपने-अपने दांव आजमा रहे हैं. अरविंद केजरीवाल चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होकर नया इतिहास रचने के मूड में है तो बीजेपी और कांग्रेस उन्हें सत्ता बेदखल करना चाहते हैं. केजरीवाल नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित को हराकर दिल्ली के सिंकदर बने थे, लेकिन इस बार वह उनके सीएम बनने के रिकॉर्ड को तोड़ने की कवायद में है. दिल्ली के मुख्यमंत्री की बात जब भी होती है तो लोगों के मन में मदन लाल खुराना, साहेब सिंह वर्मा, शीला दीक्षित और केजरीवाल का नाम आता है, लेकिन चौधरी ब्रह्म प्रकाश का नाम कम ही लोग जानते हैं.
चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्हें सीएम की कुर्सी भले ही इत्तेफाक से मिली थी, लेकिन उन्होंने खुद को एक मजबूत नेता के तौर पर स्थापित किया. देश की आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ कदम मिलाकर चलने वाले चौधरी ब्रह्म प्रकाश को सियासत में पंडित जवाहर लाल नेहरू और सीके नायर ने बढ़ाया. इसीलिए ब्रह्म प्रकाश उन्हें अपना सियासी गुरू मानते थे. साधारण जीवन जीने वाले नेताओं में गिने जाने वाले ब्रह्म प्रकाश शोषित और गरीब वर्ग से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए हमेशा आगे रहते थे. यही उनकी सियासी ताकत बनी, जिसके आधार पर दिल्ली के पहले सीएम बनने का इतिहास रचा. ‘शेर-ए-दिल्ली’ और ‘मुगले आज़म’ के नाम से चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने अपनी पहचान बनाई.
इत्तेफाक से मिली सीएम की कुर्सी
दिल्ली के शकूरपुर गांव के रहने वाले चौधरी ब्रह्म प्रकाश महज 34 साल की उम्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने का इतिहास रचा. बात 1952 की है, दिल्ली में आजादी के बाद पहली विधानसभा चुनाव हुए थे. 1951-52 के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला था. कांग्रेस के कद्दावर नेता देशबंधु गुप्ता को सीएम पद का दावेदार माना जा रहा था. उनका मुख्यमंत्री बनना तय था, लेकिन शपथ ग्रहण से पहले एक हादसे में देशबंधु गुप्ता की मौत हो गई. इस घटना के बाद जवाहर लाल नेहरू ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश के नाम को सीएम के लिए आगे किया, जिसे सर्वसम्मति से चुन लिया गया. 17 मार्च 1952 को चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 12 फरवरी 1955 तक पद पर रहे.
ब्रह्म प्रकाश को मिली सियासी पहचान
चौधरी ब्रह्म प्रकाश को भले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी इत्तेफाक से मिली हो, लेकिन उन्होंने अपने काम से अलग सियासी पहचान बनाई. दिल्ली के मुख्यमंत्री रहने के अलावा ब्रह्म प्रकाश चार बार सांसद भी रहे. 1957 में ब्रह्म प्रकाश ने पहली बार सदर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और इसके बाद 1962 और 1977 में बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से भी जीत हासिल की थी. उनके दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब दिल्ली की 7 सीटों में 6 जनसंघ के खाते में चली गईं तो उस समय भी चौधऱी ब्रह्म प्रकाश अपनी बाहरी दिल्ली सीट जीतने में कामयाब रहे थे. आपातकाल में ब्रह्म प्रकाश कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए और उसके बाद चौधरी चरण सिंह के साथ हो गए.
चौधरी ब्रह्म प्रकाश का सियासी जीवन
चौधरी ब्रह्म प्रकाश का परिवार मूल रूप से हरियाणा में रेवाड़ी के रहने वाला था, लेकिन उन्होंने पढ़ाई लिखाई दिल्ली में की. वह दिल्ली के शकूरपुर गांव में रहते थे, जिसे फिलहाल शकूर बस्ती के नाम से जाना जाता है. पढ़ाई के दौरान ही वे आजादी के आंदोलन में कूद गए. भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और कांग्रेस के तेज-तर्रार नेता बन गए. इस दौरान जेल भी गए, लेकिन हार नहीं मानी. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रह्म प्रकाश ने अंडरग्राउंड रहते हुए कई महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया और अपने तेजतर्रार रवैये और सूझबूझ की वजह से वह पार्टी के टॉप लीडरशिप की नजरों में आ गए.
ब्रह्म प्रकाश किसी भी मुद्दे पर अपनी बात पार्टी हाइकमान के सामने रखने से भी गुरेज नहीं करते थे. इस वजह से वह जवाहर लाल नेहरू के बेहद करीबी लोगों में शामिल हो गए थे और 1952 में देशबंधु गुप्ता की मौत हो गई तो मुख्यमंत्री के लिए उनके नाम पर मुहर लगी. चौधरी ब्रह्म प्रकाश अपनी संगठन और प्रशासनिक कुशलता के लिए भी जाने जाते थे. चौधरी ब्रह्म प्रकाश समाज में वंचित, शोषित और गरीब वर्ग से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए हमेशा आगे रहते थे. 1945 की शुरुआत में इन्होंने ग्रामीण और कृषि सहकारिता को एकजुट करना शुरू किया, जिसके चलते उन्हें सहकारिता आंदोलन का पितामह भी कहा जाता है. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने सहकारिता के क्षेत्र में काफी काम किया.
शेर-ए-दिल्ली’ और ‘मुगले आजम’
दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री रहे चौधरी ब्रह्म प्रकाश काफी सरल जीवन जीने वाले नेता के रूप में जाने जाते थे. सादगी का आलम ये था कि सीएम पद से हटने के बाद भी सरकारी बस में ही सफर किया करते थे. सीएम रहने के बावजूद दिल्ली में उन्होंने अपना घर तक नहीं बनाया और जब इस बाबत लोग पूछते तो ब्रह्म प्रकाश कहते थे कि पूरी दिल्ली ही मेरा घर है. जनता की समस्याओं को बड़े गंभीरता से सुनते थे. वो चलते-फिरते लोगों से मिलते और उसका समाधान करते. इसके लिए उन्हें शेर-ए-दिल्ली’ और ‘मुगले आजम’ भी कहा जाता था. ब्रह्म प्रकाश का निधन, ऐसे साल में हुआ, जब दिल्ली में दोबारा से विधानसभा बहाल हुई थी. दिल्ली में 1993 में चुनाव हुए थे, उसी साल उनका निधन हुआ.
– India Samachar
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