प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 नवंबर को मन की बात कार्यक्रम में एक लाइब्रेरी का जिक्र किया था. खास बात यह है कि उन्होंने बिहार के गोपालगंज जिले में स्थित उस लाइब्रेरी का जिक्र किया, जिस लाइब्रेरी के कारण आज की तारीख में कई गांव के बच्चों और युवाओं को पढ़ाई-लिखाई में सहूलियत मिल रही है. आज से करीब 10 साल पहले इस लाइब्रेरी की शुरुआत हुई थी, जो आज देशभर में चर्चा का विषय बन गई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 116वें एपिसोड को संबोधित किया. इस एपिसोड में पीएम मोदी ने देश के गांव और युवाओं से लेकर किसानों तक का जिक्र किया. उन्होंने एनसीसी दिवस पर कैडेट्स को बधाई दी. साथ ही साथ दक्षिण अमेरिकी देश गयाना में रहने वाले भारतीयों की चर्चा की. इस एपिसोड की खास बात यह रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के गोपालगंज जिले के कुचायकोट ब्लॉक में स्थित एक गांव में चलने वाले लाइब्रेरी के बारे में भी जिक्र किया.
स्थानीय युवक ने रखी थी नींव
इस लाइब्रेरी की नींव स्थानीय युवक सूर्य प्रकाश राय ने रखी थी. लाइब्रेरी के शुरू होने के बारे में सूर्य प्रकाश बताते हैं कि लाइब्रेरी शुरू करने का उद्देश्य यह था कि उन बच्चों तक भी शिक्षा की रोशनी पहुंचे, जो अब तक इस रोशनी से वंचित थे. सूर्य प्रकाश बताते हैं कि लाइब्रेरी की शुरुआत 2013 में कुचायकोट ब्लॉक के बनिया छापर गांव से की थी. सूर्य प्रकाश बताते हैं, हमारी सोच केवल एक ही थी कि शिक्षा के माध्यम से उन सबके के बीच शिक्षा की अलख जगाई जाए, जो अब तक शिक्षा से महरूम रहे हैं.
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आईआईटी मुंबई से की स्टडी
हमारी कोशिश यह थी कि हम बच्चों को बाल साहित्य उपलब्ध करा पाए. सभी बच्चों तक किताब पहुंच सके. सभी बच्चे उसे पढ़े और समझ सके. तीसरा उद्देश्य हमारा यह था कि पूरे बिहार को धीरे-धीरे रीडिंग कल्चर की तरफ शिफ्ट करें. इसी उद्देश्य के साथ हमने लाइब्रेरी की शुरुआत की थी. सूर्य प्रकाश ने आईआईटी मुंबई से एमफिल किया हुआ है. सूर्य प्रकाश कहते हैं कि गोपालगंज में इस प्रयोग लाइब्रेरी को शुरू करने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह थी कि मेरा पैतृक निवास गोपालगंज है.
लोगों ने की भरपूर मदद
सूर्य प्रकाश बताते हैं कि परिवार के लोग रांची में रहते थे, लेकिन गांव से रिश्ता हमेशा बना रहा है. जब भी मैं गांव आता था तो यही सोचता था कि शिक्षा ही ऐसी चीज है, जिससे स्थिति को बदला जा सकता है. मैं सोचता था कि मैं अपने जीवन में अगर कुछकाम करुंगा तो शिक्षा के क्षेत्र में ही करूंगा. जब इस काम को शुरू किया तब मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी बड़ी सफलता मिलेगी. मैंने जब काम शुरू किया तो लोगों का साथ मिलता चला गया. लोग जुड़ते चले गए. जब-जब जिले में जिलाधिकारी आए उन्होंने हमारे काम की भरपूर सराहना की. आम लोगों में भी जब इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने भी हमारी भरपूर मदद की.
गांव से की थी लाइब्रेरी की शुरुआत
सूर्य प्रकाश कहते हैं, शुरुआत तो हमने लाइब्रेरी की शुरुआत अपने गांव से की थी, लेकिन इसके बाद हमारा कारवां बढ़ता चला गया. इसके बाद हम लोगों ने सरकारी स्कूलों में भी काम करना शुरू कर दिया. जब हमने लाइब्रेरी की शुरुआत की थी तब केवल 15 बच्चे आए थे और वह सारे बच्चे 10 से 12 साल की उम्र के थे. जब हमने उनके साथ काम करना शुरू किया, तब हमें यह अंदाजा हुआ कि हमें इससे कम उम्र के बच्चों के लिए भी काम करना होगा.
शुरुआत में नहीं थी बच्चों के बैठने की जगह
हमने जब छोटे बच्चों के लिए के लिए लाइब्रेरी की शुरुआत की, तो हमारे पास बैठने की जगह नहीं होती थी. बच्चों को बाहर खड़ा होना पड़ता था. शुरुआत तो हमने सातवीं आठवीं क्लास के बच्चों के साथ की थी, लेकिन 2017-18 में हमने इसे कक्षा एक के बच्चों के साथ शुरू कर दिया था. अभी हम लोग क्लास वन से लेकर के क्लास फाइव तक के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. 15 बच्चों से 2013 में इस प्रयोग लाइब्रेरी की शुरुआत करने वाले सूर्य प्रकाश राय आज की तारीख में 24 सरकारी स्कूलों में शिक्षा को लेकर काम कर रहें हैं.
80-90 गांव-टोले में कर रहे शिक्षा को लेकर काम
कुचायकोट ब्लॉक के करीब 80-90 गांव टोले में सूर्य शिक्षा को लेकर काम कर रहे हैं, जिसमें सरकारी स्कूल भी है. सूर्य प्रकाश यह भी बताते हैं कि जिला स्तर पर हमें 24 और स्कूलों में काम करने का अप्रूवल मिल चुका है. अब हम लोग कुल 48 स्कूलों में काम करेंगे. सूर्य प्रकाश बताते हैं, 2013 में जब मैं इसकी नींव रखी थी, तब 2020 तक पूरी मुहिम को लगभग मैंने अकेले ही चलाया था. हालांकि, शुरुआती दौर में तीन से चार लोग मुझसे जुड़े हुए थे.
टीम में 40 लोग
अब हमारी टीम में तकरीबन 40 लोग हैं और इनमें से करीब 90% महिलाएं हैं, जो कि स्थानीय हैं. हम जिस किसी का भी सिलेक्शन करते हैं, उनका प्रशिक्षण हमारा दायित्व होता है. हम लोग स्थानीय लेवल पर उनको प्रशिक्षित करते हैं. साथ ही साथ बिहार के बाहर भी, जहां ट्रेनिंग चलती है वहां भी भेजते हैं ताकि वह बच्चों के साथ साहित्य में बेहतर तरीके से कम कर सके. हमारी कोशिश यही रहती है कि हम ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोग को जोड़ें क्योंकि बदलाव के प्रथम वाहक वही हो सकते हैं.
– India Samachar
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