महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अगाढ़ी में से महायुति ने बाजी मार ली है.
महाराष्ट्र में BJP, शिवसेना और NCP के महायुति गठबंधन से अगला सीएम कौन होगा? इस पर सस्पेंस बना हुआ है. शनिवार को यह बयान सामने आया था कि सब मिलकर मुख्यमंत्री का नाम तय करेंगे. लेकिन भाजपा ने अकेले 133 सीटें लाकर गठबंधन में सीएम कुर्सी को लेकर बनने वाले दबाव को कम कर दिया है. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब महाराष्ट्र में सीएम के नाम को लेकर सस्पेंस बना है.
पिछले 34 सालों में महाराष्ट्र में ऐसा ही होता आया है. हर बार गठबंधन की सरकार ही बन रही है और फिर सीएम के नाम पर स्थिति साफ नहीं हो पाई है. ऐसे में सवाल है कि महाराष्ट्र में बिना गठबंधन की सरकार क्यों नहीं बन पाती.
महाराष्ट्र की 288 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव भाजपा ने 148 सीटों पर चुनाव लड़ा है. भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना और उप मुख्यमंत्री अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) शामिल हैं. महायुति का मुकाबला महा विकास अघाड़ी (MVA) से रहा. जिसमें कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी)और एनसीपी (एसपी) दल शामिल रहे.
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साल 1962 में हुआ था पहला चुनाव
महाराष्ट्र राज्य का गठन 1 मई 1960 को हुआ था और पहली बार राज्य विधानसभा के लिए साल 1962 में चुनाव हुआ था. तब कांग्रेस को 215 सीटों पर जीत मिली थी. इसके बाद साल 1967 के चुनाव में कांग्रेस ने 203 सीटें जीती थीं. साल 1978 में चुनाव से पहले कांग्रेस में बंटवारा हो गया और कांग्रेस को 69, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा) को 62 और जनता पार्टी को 99 सीटें मिली थीं.
तब शरद पवार ने मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार से नाता 40 बागियों के साथ तोड़कर इंडियन नेशनल कांग्रेस (सोशलिस्ट) बना ली थी. जनता पार्टी के साथ मिलकर उन्होंने प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार बनाई थी. तब केवल 38 साल की उम्र में पवार देश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि उनकी सरकार 1980 में गिर गई. मध्यावधि चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने 186 सीटें जीत कर बहुमत हासिल कर लिया था. इससे अलग हुई आईएनसी (यू) को 47 सीटें मिली थी, जो बाद में मुख्य पार्टी में ही शामिल हो गई थी.
1989 में भाजपा-शिव सेना का गठबंधन
6 अप्रैल 1980 को जनसंघ के राजनीतिक विंग के रूप में भाजपा सामने आई, जबकि 19 जनवरी 1966 से अस्तित्व में होने के बावजूद शिव सेना ने खुद को स्थानीय निकाय चुनावों तक ही सीमित रखा था. साल 1989 के बाद शिव सेना ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और लोकसभा-विधानसभा चुनाव लड़ने लगी. हालांकि, साल 1962 से 1990 तक महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस का ही दबदबा रहा. साल 1990 के चुनाव में कांग्रेस को 141 सीटें मिलीं, जबकि शिव सेना को 52 और भाजपा को 42 सीटों पर जीत मिली थी.
पहली बार शिव सेना-भाजपा को मिली सत्ता
साल 1995 में राज्य की राजनीति में बदलाव देखने को मिला, जब 73 सीटों के साथ शिव सेना, 65 सीटों के साथ भाजपा ने 40 बागियों के साथ मिलकर पहली बार सत्ता पर कब्जा किया. शिव सेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री और भाजपा के गोपीनाथ मुंडे उपमुख्यमंत्री बने थे. तब 80 सीटों पर सिमटी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई. इसके पांच साल बाद 10 जून 1999 को शरद पवार ने कांग्रेस से हटकर एनसीपी का गठन कर लिया. इसके बाद राज्य में दो राजनीतिक मोर्चे बन गए, कांग्रेस-एनसीपी और शिव सेना-भाजपा. साल 1999 से 2019 तक महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकारें ही बनती रहीं. साल 1999 से 2009 के बीच कांग्रेस-एनसीपी की सरकार रही.
2014 में सत्ता में लौटा गठबंधन
2014 के चुनाव में 122 सीटें जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और इसने 63 सीटें जीतने वाली शिव सेना के साथ मिल कर एक बार फिर सरकार बनाई. यह सरकार पूरे पांच साल चली. साल 2019 के चुनाव में शिव सेना ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और कांग्रेस-एनसीपी के साथ तीन पार्टियों का गठबंधन बनाया और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने. हालांकि, जून 2022 में शिव सेना टूट गई और भाजपा के साथ एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिव सेना ने सरकार बना ली. इसके एक साल बाद ही जुलाई 2023 में एनसीपी भी दो हिस्से में बंट गई और अपने चाचा से बगावत कर अजित पवार महायुति का हिस्सा बन गए.
इसलिए नहीं बन सकती सिंगल पार्टी सरकार
राज्य में भाजपा और शिव सेना को आज तक कभी अपने दम पर बहुमत मिला ही नहीं और एनसीपी कांग्रेस से ही निकलकर नई पार्टी बनी तो इनके बीच सीटों का बंटवारा होता रहा. एक साथ इतनी सीटों पर कोई अकेली पार्टी लड़ी ही नहीं, जिससे जरूरी बहुमत के आंकड़े पाकर सिंगल पार्टी की सरकार बना सके. इसलिए लगातार गठबंधन की सरकार ही बनती आ रही है. फिलहाल महाराष्ट्र में गठबंधन की राजनीति जारी है और सिंगल पार्टी की सरकार दूर की कौड़ी है.
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– India Samachar
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