मेनका गांधी.
मोदी के नाम और सांसद के तौर पर मेनका के काम की सुल्तानपुर के चुनाव में चर्चा है. मेनका दूसरी बार इस सीट से भाजपा उम्मीदवार हैं. सुबह सात बजे से वे आम लोगों के लिए उपलब्ध रहती हैं. लेखपाल- थानेदार से लेकर दूसरे देशों में भारतीय हाई कमिश्नरों तक को वे सीधे फोन करती हैं. नतीजों का फॉलोअप लेती हैं. उनके पास पहुंचने के लिए किसी सिफारिश की जरूरत नहीं होती. सिर्फ चुनाव नहीं बाकी दिनों में भी उनका यही रुटीन रहा है.
2019 में सुल्तानपुर से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र में महीने में दो चरणों में छह दिन की अपनी अनिवार्य उपस्थिति सुनिश्चित की. सड़क मार्ग से सुल्तानपुर पहुंचते ही पहले जनता से भेंट और फिर गांवों में सीधे पहुंचकर जमीनी सच्चाइयों का जायजा लेती हैं. इस बीच लगभग अस्सी हजार लोगों की शिकायतों – जरूरतों में उन्होंने सीधा हस्तक्षेप किया. एक हजार गांवों में चौपालें लगाईं. चुनाव प्रचार के दौरान उनके पास मोदी – योगी सरकारों की उपलब्धियों के अलावा अपनी कोशिशों के बारे में भी बताने को काफी – कुछ रहता है. मेनका की राह रोकने के लिए सपा ने गोरखपुर निवासी पूर्व मंत्री राम भुआल निषाद को मैदान में उतारा है. बसपा ने जिला पंचायत सदस्य रह चुके स्थानीय उम्मीदवार उदराज वर्मा को मौका दिया है.
मेनका सुल्तानपुर से पहली महिला सांसद
मेनका से पहले सुल्तानपुर सीट से किसी अन्य महिला को जीत दर्ज करने का मौका नहीं मिला था. किसी उम्मीदवार को लगातार दूसरी बार चुनने के मामले में सुल्तानपुर के लंबे चुनावी इतिहास में केवल दो उदाहरण हैं. एक कांग्रेस के केदार नाथ सिंह जो 1970 का उपचुनाव और फिर 1971 के मध्यावधि चुनाव में जीते. दूसरे भाजपा के डी. बी .राय थे, जिन्होंने 1996 और 1998 में जीत दर्ज की थी. मेनका से पहले उनके पुत्र वरुण गांधी ने 2014 में सुल्तानपुर सीट पर जीत दर्ज की थी. 2019 में मां – बेटे ने पीलीभीत और सुल्तानपुर सीटों की अदला – बदली की थी. 2019 में मेनका को सपा – बसपा गठबंधन के उम्मीदवार चंद्रभद्र सिंह ‘ सोनू ‘ की कड़ी चुनौती का सामना करते हुए 14,426 वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल हुई थी. प्रभावशाली चंद्रभद्र सिंह इस बार चुनावी परिदृश्य से अलग हैं. जाहिर तौर पर वे चुप्पी साधे हुए हैं.
वरुण का टिकट कटने की पीड़ा
भाजपा ने इस बार वरुण गांधी को टिकट नहीं दिया. मेनका की उम्मीदवारी की घोषणा भी काफी विलंब से हुई. पहले खबर थी कि वरुण अपनी मां के प्रचार में हिस्सा लेंगे, लेकिन फिर इसका खंडन हो गया. अब उनके 23 मई को आने की चर्चा है. वरुण का टिकट कटने की मां को पीड़ा है लेकिन वे संयमित प्रतिक्रिया देती हैं. कहती हैं ,” सांसद के तौर पर वरुण बहुत अच्छा काम कर रहे थे. पार्टी का फैसला है. वे बहुत आगे जाएंगे. आगे अच्छा ही होगा. पार्टी में सिर्फ एम.पी. ही तो नहीं होते.” वरुण के राजनीतिक भविष्य को लेकर फिक्रमंद मेनका नौवीं बार संसद में प्रवेश की लड़ाई लड़ रही हैं. उनके सामने पिछली जीत कायम रखते हुए जीत के अंतर को बढ़ाने की चुनौती है.
सपा की निषाद वोटरों पर नजर
इंडिया गठबंधन में सुल्तानपुर की सीट सपा के खाते में गई है. सपा ने पहले अंबेडकरनगर निवासी भीम निषाद को उम्मीदवार बनाया था. लगभग एक पखवारे बाद उनकी जगह गोरखपुर के राम भुआल निषाद उम्मीदवार घोषित कर दिए गए. वहां वे दो बार विधायक रहे हैं. प्रदेश सरकार में मत्स्य विभाग के मंत्री के तौर पर भी उन्हें काम का मौका मिला. उम्मीदवार बदले जाने की खींचतान ने पार्टी के शुरुआती प्रचार अभियान को धक्का पहुंचाया. स्थानीय वोटरों के लिए सपा उम्मीदवार राम भुआल निषाद का नाम – चेहरा अपरिचित है. पार्टी के समीकरण उसके यादव – मुस्लिम वोट बैंक में भाजपा के पाले के लगभग दो लाख निषाद वोट जुड़ जाने की उम्मीद पर टिके हुए हैं.
मैदान में बसपा के उदराज वर्मा भी है. लेकिन भाजपा विरोधी वोटरों में भाजपा और सपा के बीच मुख्य मुकाबले की चर्चा है. चुनाव आयोग की बंदिशों के बीच चुनाव प्रचार खामोश नजर आता है. बला की गर्मी ने लोगों को बेहाल कर रखा है. अब तक बड़े नेताओं में सिर्फ अखिलेश यादव की सभा हुई है. मायावती और योगी आदित्यनाथ की सभाएं प्रस्तावित हैं. प्रत्याशी और उनके कार्यकर्ता कहां तक पहुंच पाते हैं यह बड़ी चुनौती है.
कम वक्त और बड़ी चुनौती
भाजपा और सपा दोनों के ही उम्मीदवार बाहरी हैं. लेकिन मेनका पिछले पांच साल से सांसद के तौर पर यहां खासी सक्रिय हैं. उनके पुत्र वरुण गांधी ने 2014 – 19 के बीच इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. अपने बड़े राजनीतिक कद और गांधी परिवार के सदस्य होने के नाते भी मेनका एक परिचित चेहरा हैं. दूसरी ओर राम भुआल निषाद के सामने थोड़े से वक्त में अपरिचित क्षेत्र में पैठ बनाने की कड़ी चुनौती है. जिले की पांच में चार विधानसभा सीटों पर भाजपा और एक पर सपा काबिज है. सपा मुख्य विपक्षी पार्टी है, लेकिन लोकसभा चुनावों के नतीजों के लिहाज से इस सीट पर उसका रिकॉर्ड निराशाजनक है. 1996 से 2019 तक के लोकसभा चुनावों में पार्टी को सुल्तानपुर ने निराश किया है.
कांग्रेस आठ और भाजपा पांच बार जीती
आमचुनावों के इतिहास में सुल्तानपुर में कांग्रेस को आठ, भाजपा को पांच, बसपा को दो और जनता पार्टी तथा जनता दल को एक – एक मौके पर जीत हासिल हुई थी. गठबंधन में सीट सपा के खाते में जाने के कारण कांग्रेस इस बार मैदान से बाहर है. बसपा ने 1999 और 2004 में इस सीट पर जीत दर्ज की थी. 2019 में सपा से गठबंधन में उसके उम्मीदवार चंद्रभद्र सिंह मुख्य मुकाबले में थे. लेकिन पार्टी के प्रदेश में घटते जनाधार और 2012 से लगातार हार का असर इस सीट पर भी नजर आ रहा है. पार्टी उम्मीदवार उदराज वर्मा स्थानीय हैं. जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं. उन्हें बसपा के दलित वोट बैंक के साथ ही सजातीय कुर्मी वोटरों के समर्थन की उम्मीद है. भाजपा के समर्थक माने जाने वाले निषाद वोटरों को अपनी और खींचने के लिए सपा के राम भुआल निषाद तो कुर्मियों को पाले में करने की कोशिश में बसपा के उदराज वर्मा लगे हुए हैं. इसकी रोकथाम के लिए मंत्री संजय निषाद और अपना दल के आशीष पटेल यहां सक्रिय हैं.
– India Samachar
.
.
Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link