भारत समेत 5 देश में भूकंप के झटके महसूस किए गए. ये भारत, बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत और ईरान में आएं. हालांकि, भारत में कोई जानमाल का नुकसान नहीं हुआ. लेकिन तिब्बत तबाह हो गया. यहां 53 लोगों की मौत हो गई और 60 से ज्यादा लोग घायल हैं. वैसे तो भूकंप एक कुदरत का कहर यानी नेचुरल डिजास्टर माना जाता है, लेकिन ऐसे में सवाल ये उठता है क्या ऐसी आपदाओं को चीन खुद न्योता दे रहा है? कहीं ये आपदा किसी और बड़े डिजास्टर का अलर्ट तो नहीं.
हिमालय अभी भी बढ़ रहा है. तिब्बत और उसके आसपास के क्षेत्र भी धीरे-धीरे अपना विस्तार कर रहे हैं. वहीं, अगर कोई देश इन पहाड़ों के लगातार विस्तार करने पर अगर कोई अड़ंगा लगाता है तो इससे एक बड़ी आपदा आने का खतरा बन जाता है. इसीलिए कई बड़े देश नेचर के ज्यादा विपरीत नहीं जाते हैं. लेकिन, चीन अपने विकास का ढोल पीटने के लिए इन क्षेत्रों को भी नहीं छोड़ रहा है. ऐसे में माना जा रहा है चीन का एसा रूख कहीं, उसी को भारी न पड़ जाए.
ताकतवर था तिब्बत का भूकंप
तिब्बत में तबाही मचाने वाले भूकंप पर चीन ने कहा कि ये 10 किमी की गहराई पर आया और इसकी तीव्रता 6.8 दर्ज की गई. लेकिन इसी बीच, यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे ने रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 7.1 बताई. प्राकृतिक आपदा की ताकत के बारे में आपको एक अंदाजा देने के लिए बता दें कि 6.8 तीव्रता का भूकंप ‘मजबूत’ माना जाता है.
सबसे बड़ा बांध बनाने की मंजूरी
ये भूकंप इतना ताकतवर था कि नेपाल, भारत और बांग्लादेश में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए. हालांकि, पड़ोसी देशों में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है, लेकिन भारत इस क्षेत्र में हो रहे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रहा है. खास तौर पर अब, क्योंकि टिंगरी (तिब्बत) में भूकंप का केंद्र है. चीन इसी जगह तिब्बत में त्सांगपो नदी (भारत में आते इस नदी को ब्रह्मपुत्र कहा जाता है) पर दुनिया का ‘सबसे बड़ा बांध’ बनाने की योजना बना रहा है.
भारत पहले भी जता चुका है नराजगी
भारत ने पहले भी चीनी अधिकारियों को नए निर्माण पर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है, लेकिन बांध परियोजना पर चीनी अधिकारियों इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है. ऐसे निर्माणों के कारण चीन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान हो सकता है, जो कि अत्यधिक भूगर्भीय रूप से संवेदनशील है. चीन पहले ही इस क्षेत्र में छह बड़े डैम बना चुका है, जिनमें से कई भूकंप संभावित इलाकों में स्थित हैं. इन डैम परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर खुदाई और निर्माण कार्य किया जाता है, जिससे हिमालयी क्षेत्र की भंगुर भूगर्भीय संरचना और कमजोर हो जाती है.
ब्रह्मपुत्र पर चीन का बांध निर्माण
इस क्षेत्र की भूगर्भीय बनावट और इस पर बने बुनियादी ढांचे के कारण तिब्बती क्षेत्र में इस तरह की आपदाओं का खतरा बना रहता है. 25 दिसंबर को, चीन ने तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी की निचली पहुंच पर दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध के निर्माण को मंजूरी दे दी. यह बांध सालाना 300 बिलियन किलोवाट घंटे बिजली पैदा करेगा, जो 300 मिलियन से अधिक लोगों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है. यह थ्री गॉर्जेस बांध की क्षमता से तीन गुना अधिक है, जिसे मौजूदा समय में दुनिया का सबसे बड़ा बांध माना जाता है.
ये है तिब्बत में भूकंप का कारण
तिब्बत और हिमालयी क्षेत्र भूगर्भीय रूप से सक्रिय हैं, क्योंकि यह क्षेत्र अभी भी भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों के टकराव से बन रहा है. इस टकराव के चलते हिमालय हर साल बढ़ रहा है. ऐसे क्षेत्र में भारी डैम निर्माण प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूस्खलन और भूकंप की संभावनाओं को बढ़ा देता है. परेचू झील में हुआ भूस्खलन इस खतरे का प्रमुख उदाहरण है. भूस्खलन के कारण नदी पर एक आर्टिफिशियल डैम बना, जिससे झील का पानी विशाल आकार में जमा हो गया. बाद में जब यह झील टूटी, तो इसके पानी ने तबाही मचा दी.
कई बार आ चुके हैं ऐसे भूकंप
तिब्बत में 1950 से अब तक 6 या उससे अधिक तीव्रता वाले 21 भूकंप आ चुके हैं. इनमें 1950 का असम-तिब्बत भूकंप, 1997 का मानी भूकंप और 2008 का डमजुंग भूकंप प्रमुख हैं. इसके बावजूद चीन का डैम निर्माण जारी रखना न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए बल्कि पड़ोसी देशों जैसे भारत के लिए भी खतरा बन रहा है.
डैम निर्माण क्लाइमेट एक्सचेंज को भी बढ़ावा देते हैं. डैम के पानी में मिथेन गैस बनाने वाले माइक्रोब्स पनपते हैं. इसके अलावा, यह नदियों के प्रवाह को भी बाधित करता है. तिब्बत जैसे संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र में यह प्रभाव और भी विनाशकारी हो सकता है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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