कई सीरियल या फिल्में ऐसी होती हैं कि उनको कितना भी वक्त बीत जाए, लेकिन दर्शकों के दिल में उसकी जगह वैसी ही बरकरार रहती है. ये और भी खास तब होता है, जब हर एज ग्रुप के लोग उसे पसंद करते हैं. ऐसा ही एक सीरियल 90 की दशक में बना, जिसका नाम रामायण है. उस वक्त तो इसका क्रेज काफी देखने को मिला, लेकिन कुछ साल पहले कोरोना महामारी के वक्त इस सीरियल को दोबारा टेलीकास्ट किया गया, लेकिन इतने वक्त के बाद भी इसके लिए लोगों का प्यार वैसा ही था. रामायण की कहानी को इतने बेहतरीन तरीके से लोगों को पेश करना काफी मुश्किल का काम था, लेकिन इसे आसान बनाया रामानंद सागर ने, जिन्होंने इसकी कहानी लिखी है.
रामानंद सागर 29 दिसंबर साल 1917 को लाहौर में जन्मे थे, पहले लोग उन्हें चंद्रमौली के नाम से जानते ते, लेकिन बाद में इनकी नानी ने नाम बदल कर रामानंद नाम रख दिया. शुरू से ही वो पढ़ने में काफी तेज थे, 16 साल की ही उम्र में उनका पहली कविता मैगजीन में छपने के लिए चुनी गई थी. हालांकि, शुरू से ही उनकी जिंदगी काफी मुश्किलों से भरी हुई थी. एक वक्त ऐसा आया जब उन्होंने दहेज के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया, जिसके बाद उन्हें घर से बाहर कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने अपने गुजारे के लिए छोटी-मोटी नौकरी करनी शुरू की. उन्होंने ट्रक साफ करने से लेकर चपरासी तक का काम किया, लेकिन इन सभी के साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई पाकिस्तान के कॉलेज में जारी रखी.
‘बरसात’ की कहानी बनी ब्लॉकबस्टर
कड़ी मेहनत का फल भी रामानंद सागर को जल्द ही मिल गया, उन्हें पंजाब यूनिवर्सिटी में गोल्ड मेडल मिला. इसके साथ ही उन्हें फारसी भाषा के लिए मुंशी फजल अवॉर्ड भी दिया गया था. कुछ वक्त तक रामानंद ने बतौर पत्रकार काम किया, लेकिन भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त वो भारत आ गए. कुछ समय बाद उन्होंने खुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की, जिसमें उन्होंने पहली फिल्म मेहमान बनाई, ये छोटे पर्दे की फिल्म थी. बाद में उन्होंने रामायण बनाया, जो कि बहुत पॉपुलर हुआ. उन्होंने कई सारी फिल्में भी लिखी, जिसमें से एक राज कपूर की फिल्म थी, जिसका नाम ‘बरसात’ था. ये फिल्म 1949 में रिलीज हुई और ब्लॉकबस्टर साबित हुई. इस फिल्म में नरगिस दत्त, प्रेमनाथ, निम्मी और विश्वा मेहरा जैसे बेहतरीन एक्टर्स शामिल थे.
‘मौत के बिस्तर से रामानंद सागर’
एक पुराने इंटरव्यू में रामानंद सागर के बेटे ने बताया था कि एक दिन सभी बैठे थे, तभी उन्हें खांसी आई और उस समय उनके मुंह से खून आया. जब रामानंद सागर की जांच कराई गई, तो उन्हें पता चला कि उन्हें टीबी है. उस समय में इस बीमारी का इलाज नहीं होता था. हालांकि, उन्हें टीबी सेनिटोरियम लेकर जाया गया, जिसको लेकर कहा जाता था कि लोग इसमें जाते जिंदा हैं, लेकिन वापस जिंदा नहीं आते. रामानंद सागर के पास कोई विकल्प नहीं था इसलिए उन्हें भी वहां एडमिट किया गया, इस दौरान उन्होंने देखा कि एक कपल था, जो एक-दूसरे के बहुत करीब था. बाद में रामानंद ने देखा कि वो सही होकर घर चले गए. उस वक्त उन्हें एहसास हुआ कि प्यार सब सही कर देता है.
इस घटना के बाद से ही उन्होंने अस्पताल के बिस्तर से डायरी और कॉलम लिखना शुरू किया, जिसमें वो जीने का सलीका बताया करते थे. लोगों के बीच ये कॉलम ‘मौत के बिस्तर से रामानंद सागर’ के नाम से पढ़ा करते थे. आखिर में 12 दिसंबर, 2005 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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