कांग्रेस पार्टी के नेता
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार अपने चरम पर है. राज्य में इस बार चुनावीलड़ाई सीधे-सीधे महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच है. महायुति जो कि सत्ता पर काबिज है वहीं, महाविकास अघाड़ी विपक्ष की भूमिका में है. इस बार के चुनाव प्रचार में बाकी दलों की तुलना में कांग्रेस के सामने चुनौती ज्यादा है. माना जा रहा है कि पहले की तुलना में इस बार कांग्रेस के सामने कई मुश्किलें हैं. इनमें से 7 ऐसी बातें हैं जो साफतौर पर दिखाई भी पड़ रही हैं.
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाल तो जरूर रहे हैं, लेकिन महायुति की तुलना में उतनी रैलियां नहीं हो पा रही जितनी होनी चाहिए. इसके अलावा कुछ मुद्दे भी हैं जिन पर पार्टी में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. जैसे की संविधान का मुद्दा है. माना जा रहा है कि पार्टी विधानसभा के चुनाव में इस मुद्दे को लेकर उतनी आश्वस्त नहीं जितनी की लोकसभा चुनाव में थी.
महाराष्ट्र में कांग्रेस के सात सिरदर्द
1- नेतृत्व की कमी
सबसे पहले कांग्रेस के पास महाराष्ट्र में मराठा नेतृत्व की कमी साफ दिख रही है. विलास राव देशमुख के निधन के बाद अशोक राव भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. अब कांग्रेस के पास कोई ऐसा मराठा नेता नहीं है, जिससे ये कहा जा सके कि यह पूरे प्रदेश के मराठा नेता है. पृथ्वीराज चव्हाण और बाल साहेब थोराट मराठा नेता है, लेकिन वह अपने क्षेत्र तक ही सीमित है.
2- दलित लीडरशिप की भारी कमी
इसी तरह से कांग्रेस के पास दलित लीडरशिप की भी भारी कमी है. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे के रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस के पास दलित नेतृत्व भी नहीं है. महा विकास अघाड़ी की सरकार में नितीन राऊत को मंत्री बनाया गया था जिससे कि दलित लीडरशिप को बढ़ावा दिया जा सके लेकिन उनका प्रभाव पूरे महाराष्ट्र में नहीं है.
3- शिंदे सरकार की लाडली बहना योजना
कांग्रेस के तीसरी समस्या है शिंदे सरकार की लाडली बहन योजना, जिसमें प्रदेश की महिलाओं को 1500 रुपए महीना दिया जा रहा है. हालांकि महाविकास अघाड़ी ने वादा किया है कि उनकी सरकार बनने पर वह 3000 रुपए देंगे, लेकिन महायुति सरकार ने पैसे भेजने शुरू कर दिए हैं. ऐसे में पार्टी को डर है कि, जो योजना पहले से लाभ दे रही है, उसका फायदा महायुति न ले जाए.
4- राहुल का संविधान मुद्दा
महाराष्ट्र में कांग्रेस के सामने चौथी बड़ी समस्या राहुल गांधी के संविधान मुद्दे को लेकर भी है. लोकसभा चुनाव के समय संविधान का मुद्दा दलितों में खूब चला, जिसका लाभ भी विपक्षी इंडिया गठबंधन को मिला, लेकिन कांग्रेस को इस बात का डर है कि विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा लोकसभा की तरह काम करेगा या नहीं? क्योंकि, संविधान बदलना संसद का मुद्दा तो हो गया, लेकिन विधानसभा में काम करेगा क्या?
5- विरोधियों की तुलना में कम प्रचार
महाराष्ट्र के चुनाव में महायुति के नेता पूरी ताकत के साथ चुनाव में जुटे हुए हैं, लेकिन महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस की बात करे तो अब तकबहुत कम प्रचार किया गया है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अभी तक उतनी रैलियां नहीं कर पाईं हैं जितनी होनी चाहिए. दूसरी ओर बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की ताबड़तोड़ रैलियां हो रही हैं.
6- वोट छिटकने का डर
माना जा रहा है कि कांग्रेस को इस बात भी डर सता है कि लोकसभा चुनाव के मुकाबले महाराष्ट्र चुनाव में ओबीसी और सवर्ण जातियों का वोट उनके सहयोगियों से छिटक गया है. इसके लिए गठबंधन को जिम्मेदार बताया जा रहा है.
7- मुस्लिम मतदाताओं को लेकर टेंशन
कांग्रेस के लिए मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में एकजुट बनाए रखना भी उसके लिए चुनौती है. क्योंकि, एक तरफ ओवैसी हैं, जो वो बातें कर सकते हैं, जो कांग्रेस कर नहीं सकती. वहीं मुस्लिमों के पक्ष में ज्यादा दिखने पर बीजेपी ध्रुवीकरण में कामयाब हो सकती है. साथ ही महायुति ने एनसीपी के जरिए प्रो मुस्लिम दांव भी चला है, तो महायुति सरकार पहले ही मदरसों के शिक्षकों का वेतन एकमुश्त बढ़ा चुकी है.
– India Samachar
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