27 मई, 1964 को दिल का दौरा पड़ने से पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ.
कुछ दिनों पहले तक वे साथ थे. अब वे विपक्षी खेमे में थे. पंडित नेहरू और उनकी नीतियां उनके निशाने पर थीं. लेकिन पंडित नेहरू काबिल और उसूलों के पक्के उन पुराने साथियों की जरूरत महसूस करते थे. यह देश का पहला 1951-52 का आम चुनाव था. आचार्य जे.बी. कृपलानी कांग्रेस छोड़ चुके थे. उनकी किसान मजदूर पार्टी चुनाव मैदान में थी. जयप्रकाश नारायण और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की अगुवाई वाली सोशलिस्ट पार्टी वोटरों को बता रही थी कि नेहरू की कांग्रेस पूंजीपतियों-जमींदारों की तरफदार है. यह गांधी की गरीबों-किसानों और कमजोर लोगों के लिए लड़ने वाली कांग्रेस से ठीक उलट है.
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने नेहरू सरकार से इस्तीफा देकर उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. अपने भाषणों में नेहरू यदा-कदा इन नेताओं का जिक्र करते हुए कहते थे, “काबिल और उसूल के पक्के लोगों की जरूरत है. उनका स्वागत है लेकिन वे विभिन्न दिशाओं में गाड़ी खींच रहे हैं , जिसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा.”
गांधी-पटेल नहीं रहे, नेहरू पर थी जिम्मेदारी
देश की आजादी के बाद का पहला चुनाव था. गांधी और पटेल अब नहीं थे. नेहरू आजादी की लड़ाई के नायक थे. प्रधानमंत्री के तौर पर देश को एकसूत्र में बांधे रखने और उसे आगे ले जाने की उन पर जिम्मेदारी थी. जनता के बीच में उनकी लोकप्रियता पूरे उफान पर थी. कांग्रेस को उसका भरपूर लाभ मिलना तय था. जरूरी था कि पंडित नेहरू अधिकाधिक लोगों के बीच पहुंच सकें. लेकिन कैसे? सत्ता में रहने के बाद भी कांग्रेस के पास इतना फंड नहीं था कि चार्टर्ड प्लेन और हेलीकॉप्टर जुटाए जा सकें. कैबिनेट और होम सेक्रेटरी का कहना था कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा सर्वोपरि है. इसलिए उनकी यात्राओं के लिए सेना और अन्य सरकारी जहाजों का उपयोग उचित है. लेखा महानियंत्रक ने भी इसकी पुष्टि की. फिर रास्ता निकला. चुनावी यात्राओं में नेहरू अपना किराया खुद चुकाएंगे. उनके साथ अगर कोई लीडर-वर्कर चलेगा तो उसे भी किराए का भुगतान करना होगा. लेकिन स्टाफ के खर्च सरकार वहन करेगी.
तब था जोर-शोर का प्रचार
तब आज जैसा खामोश प्रचार अभियान नहीं था. हर ओर लाउड स्पीकरों का शोर था. सड़कें-गलियां और मोहल्लों में पोस्टरों-बिल्लों की भरमार थी. दीवारें प्रत्याशियों के प्रचार में रंगी हुई थीं. जुलूसों, देर रात तक चलने वाली सभाओं और अड्डेबाजी का सिलसिला था. पंडित नेहरू इस चुनाव के केंद्र में थे. विपक्षियों ने उन पर प्रहार शुरू कर दिए थे. लेकिन उनकी लोकप्रियता आसमान में थी. कांग्रेस की बड़ी जीत तयशुदा मानी जा रही थी. लेकिन पंडित नेहरू किसी प्रकार की ढील के लिए तैयार नहीं थे.
नौ हफ्ते के अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने लगभग 25 हजार मील की यात्रा की थी. इसमें 18 हजार मील की दूरी हवाई जहाज, 5,200 मील कार, 1600 मील रेलगाड़ी और 90 मील की यात्रा नाव से की गई. इस बीच लगभग चार करोड़ लोगों से सभाओं या फिर रास्तों से गुजरते वे मुखातिब हुए.
विपक्ष के प्रहार, नेहरू के पलटवार
विभाजन के घाव ताजा थे. चारों ओर बिखरे शरणार्थी पुनर्वास के लिए जूझ रहे थे. उनकी दर्द भरी कहानियां तमाम लोगों के दिल-दिमाग को बेचैन किए हुए थी. आजादी मिल गई थी लेकिन गरीबी-बेरोजगारी-असमानता की समस्याएं जस की तस थीं. कल के उनके पुराने साथी अब विपक्षी खेमे से उन पर आरोपों की बौछार कर रहे थे.
गांधी के रास्ते से भटकने और गरीबों-मजलूमों की जगह पूंजीपतियों और बड़े लोगों की फिक्र की शिकायतें शुरू हो गई थीं. नेहरू ने अपने भाषणों में इन सबका पुरजोर जवाब दिया. उन्होंने सांप्रदायिकता के खिलाफ मोर्चा खोला. उससे आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया. जातिवाद भी उनके निशाने पर था. जमींदारी प्रथा के उन्मूलन ओर किसानों – मजदूरों के हक में काम करने के अपनी सरकार के संकल्पों को उन्होंने दोहराया. छुआछूत और पर्दा प्रथा पर भी उन्होंने प्रहार किया. महिलाओं के आगे आने पर उनका खास जोर था.
नेहरू की निजी लोकप्रियता का इम्तिहान
आजाद भारत की यह पहली संसद का चुनाव था. नतीजों को सरकार और उसकी अगुवाई तय करनी थी. लेकिन आजाद भारत में यह पंडित नेहरू की निजी लोकप्रियता का भी पहला इम्तिहान था. नेहरू को देखने-सुनने के लिए हर ओर भीड़ उमड़ रही थी. लोग देर-देर तक उनका इंतजार करते थे. सड़कों के किनारे, छतों पर और सभाओं में पास के पेड़ों-खंभों पर चढ़ लोग अपना उत्साह प्रदर्शित कर रहे थे.
उसी दौरान नेहरू ने अपनी महिला मित्र एडविना माउंटबेटन को लिखा,” जब कभी मैं जन सभाओं में अथाह भीड़ के बीच होता हूं तो मै उनके चेहरों, कपड़ों को देखता हुआ अपने प्रति उनकी प्रतिक्रियाएं परखने की कोशिश करता हूं. मेरे दिमाग में अतीत के दृश्य तैरने लगते हैं. लेकिन अतीत से ज्यादा वर्तमान मेरे दिल-दिमाग पर कब्जा किए रहता है. उन लाखों-करोड़ों लोगों के बारे में सोचने लगता हूं. दिल्ली सेक्रेट्रिएट में लंबे समय तक बंद रहने की जगह मैं हिंदुस्तानी जनता के सान्निध्य में ज्यादा खुशी महसूस करता हूं. सामान्य भाषा में लोगों को अपनी समस्याओं और राह में आने वाली बाधाओं के बारे में बताना और साधारण लोगों के दिमाग को पढ़ना अलग आनंद देता है. ऐसे में अतीत और वर्तमान घुल – मिलकर मुझे भविष्य की ओर ले जाते हैं.”
कांग्रेस, नेहरू जीते, 28 मंत्री हारे
पहले आम चुनाव के नतीजों ने पंडित नेहरू के नेतृत्व पर मुहर लगाई. 25 अक्तूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच हुए इस चुनाव के लगभग सत्रह करोड़ में से आठ करोड़ ने अपने वोट के अधिकार का इस्तेमाल किया था. लोकसभा की 489 में 364 सीट जीतने वाली कांग्रेस को भले 45 फीसद वोटरों का समर्थन मिला हो लेकिन सीट तादाद के नजरिए से 74.4फीसद सीटें उसके हिस्से गई थीं.
देश की विधानसभा की कुल 3,280 सीटों में कांग्रेस को 2,247 सीटें हासिल हुईं थीं. विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट फीसदी 42.4 था लेकिन सीटों में हिस्सेदारी 68.6 थी. बाद में फूलपुर के नाम से जानी गई लोकसभा की जिस सीट का पंडित नेहरू ने संसद में प्रतिनिधित्व किया , वह सीट पहले चुनाव में इलाहाबाद डिस्ट्रिक्ट वेस्ट कम जौनपुर डिस्ट्रिक्ट ईस्ट के नाम से जानी जाती थी. तब इस सीट से दो सांसद चुने गए थे. नेहरू को 2,33,571 (38.73) वोट मिले थे. इसी सीट से उनके साथ चुने गए कांग्रेस के ही मसूरियादीन के वोट 1,81,700 थे.
पराजित किसान मजदूर प्रजा पार्टी के उम्मीदवार बंसीलाल को 59,642 वोट हासिल हुए थे. दिलचस्प है कि कांग्रेस की लहर और नेहरू के प्रखर आभामंडल के बीच भी उनकी कैबिनेट के 28 मंत्री चुनाव हार गए थे. इनमें बंबई से मोरारजी देसाई और राजस्थान से जयनारायण व्यास के नाम शामिल थे.
यह भी पढ़ें: समुद्र के नीचे विस्फोट करने से क्रैश हुए विमान का पता कैसे चलेगा?
– India Samachar
.
.
Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link