दुबई में एक दफा एक मुशायरा हो रहा था. उसका संचालन कर रहे शख्स ने जब जौन एलिया का तार्रुफ करवाया तो जोर-जोर से बोलकर यही कहा कि अब आ रहे हैं पाकिस्तान के मशहूर शायर जौन एलिया. जौन एलिया जब माइक के सामने पहुंचे तो रो पड़े. जौन एलिया को इसका बहुत बुरा लगा, वो फफक कर रो पड़े और कहा मैं पाकिस्तान का नहीं हूं. मैं हिंदुस्तान का शायर हूं. इसी पर शेर याद आता है कि…
मिल कर तपाक से न हमें कीजिए उदास।
खातिर न कीजिए कभी हम भी यहां के थे।।
क्या पूछते हो नाम-ओ-निशान-ए-मुसाफिरा।
हिन्दोस्तां में आए हैं हिन्दोस्तां के थे।।
सोशल मीडिया के इस जमाने में सिर्फ मीम, जोक और ट्रोल की बात होती है. इस जमाने में कोई पुरानी चीजें कम ही सामने आती हैं. नई पीढ़ी अपने तरीके से ही जिंदगी जीती है, लेकिन यकीन मानिए इस नई पीढ़ी में भी काफी लोग ऐसे हैं, जो पुरानी चीजों से जुड़े रहते हैं. इस बीच जब बात इश्क की होती है तो दिल से सिर्फ शेर निकलता है. शायरी और इश्क का सबसे बड़ा शायर जो अपने अल्हड़पन, पागलपन और बर्बादी के लिए मशहूर हुआ.
नाम है जौन एलिया. तमाम शायरी, दीवानगी से इतर जौन एलिया ने अपनी पहचान बार-बार यही बताने की, जो हमने शुरुआत में कही. वो बार-बार कहते रहे कि वो हिंदुस्तानी शायर हैं, वो हिंदुस्तान से हैं और भले ही वो पाकिस्तान में रह रहे हों, लेकिन उनका दिल अमरोहा में ही बसता है. उनकी शायरी में ये बात बार-बार सामने आती है. बहुत से उनके शेर सिर्फ अमरोहा और हिंदुस्तान की कहानी भी बयां करते हैं. 14 दिसंबर को जौन एलिया का जन्मदिन आता है. ऐसे में उनसे जुड़ी कुछ बातें उनके चाहने वालों को जानना जरूरी है.
अमरोहा जिले में हुआ था जौन एलिया का जन्म
जौन एलिया का जन्म 14 दिसंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था. जौन, मशहूर निर्देशक कमाल अमरोही के छोटे चचेरे भाई थे. कुल पांच भाइयों में जौन सबसे छोटे थे. उनके और भाई भी लेखक-शायर ही थे. पैदाइश के कुछ समय बाद जब बात देश के बंटवारे तक पहुंचने लगी तो जौन के परिवार ने भारत छोड़ दिया और कराची में जा बसे. न चाहते हुए जौन भी गए. जौन धर्म के आधार पर हो रहे तब बंटवारे के खिलाफ थे और इतना खिलाफ थे कि उनका एक जुमला अक्सर मशहूर होता था कि ये पाकिस्तान और कुछ भी नहीं सिर्फ अलीगढ़ के लड़कों की शरारत है. जौन हिंदुस्तान और अमरोहा को कितना चाहते थे, इसका अंदाजा उनके कई शेर से भी मिलता है.
सिगरेट पीते-पीते शेर सुना देते थे जौन एलिया
जौन की छवि भले ही एक शराबी, नशा करने वाले शायर की हो, जो मंचों पर बैठकर शराब पीता और सिगरेट पीते-पीते शेर सुना देता था, लेकिन हकीकत में वो पाकिस्तान में सबसे पढ़े-लिखे लोगों में से एक थे और उनके जिम्मे भी ऐसी ही चीजें थीं. जो पाकिस्तान में भाषा को सुधारने, उर्दू और फारसी समेत तमाम भाषाओं को आगे बढ़ाने से जुड़ी थीं. शुरुआत में ही जौन एलिया ने वहां एक पत्रिका ‘इंशा’ भी निकाली थी. यहां पर ही उन्हें जाहिदा हिना से इश्क़ हुआ. इश्क़ आगे बढ़ा और फिर शादी भी हुई.
पत्नी से रास्ते हो गए जुदा, अपने बेटे से कभी मिल नहीं पाए
लेकिन जौन एलिया बिल्कुल वैसे नहीं थे, जैसा कोई लड़की एक आदर्श पति में चाहती हो. जौन सिर्फ शराब और सोने पर ध्यान देते थे. और यही वजह रही कि उनके बच्चों का बचपन भी अजीब बीता. पत्नी के साथ झगड़े होते थे और फिर दोनों के रास्ते जुदा हो गए. जौन एलिया के परिवार से जुड़ी एक कमाल की कहानी भी है. अपने परिवार से जुदा होने के बाद जौन एलिया कभी अपने बेटे जरयून से नहीं मिले थे.
अगर मिले भी तो कभी छुटपन में मिले. एक बार किसी प्रोग्राम में जौन एलिया ने अपने बेटे को देखा. वो उसे नहीं पहचानते थे, लेकिन बेटा पहचानता था और पहचानने के बाद भी उसने जौन एलिया से मुलाकात नहीं की, लेकिन जब जौन को ये मालूम लगा तो वो बहुत रोए और तब उन्होंने एक नज्म लिखी, जिसका नाम दरख़्त-ए-ज़र्द है, जिसमें उन्होंने अपने बेटे से बातें की हैं और कहा है कि…
तुम्हें मुझसे जो नफरत है, वही तो मेरी राहत है।
मिरी जो भी अज़िय्यत है, वही तो मेरी लज़्ज़त है।।
कि आखिर इस जहां का एक निजाम-ए-कार है आखिर।
जजा का और सजा का कोई तो हंजार है आख़िर।।
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