लेबनान में हिजबुल्लाह के साथ सीजफायर डील के लिए इजराइल तैयार हो गया है. इजराइली प्रधानमंत्री ने मंगलवार की देर रात युद्धविराम समझौते का ऐलान किया, जबकि उनकी खुद की वॉर कैबिनेट के मंत्री बेन ग्वीर समेत नॉर्थ इजराइल के ज्यादातर नागरिक इस युद्धविराम के पक्ष में नहीं थे.
वहीं दूसरी ओर इजराइल की जनता लगातार गाजा में युद्धविराम समझौते की मांग कर रही है, जिससे हमास के कब्जे में बंधक बनाए गए उनके अपनों की रिहाई मुमकिन हो सके, लेकिन नेतन्याहू ने हमास चीफ इस्माइल हानिया और याह्या सिनवार की मौत के बावजूद सीजफायर समझौते से इनकार कर दिया.
ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी क्या वजह है कि जो इजराइल अपने युद्ध लक्ष्यों के पूरा होने तक जंग जारी रहने का दावा करता था, उसे हिजबुल्लाह के सामने सीजफायर डील के लिए मजबूर होना पड़ा?
पहली वजह: ईरान के हमले का ख़तरा
इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच सीजफायर डील में एक अहम वजह ईरान है. जैसा कि नेतन्याहू ने अपने बयान में भी बताया कि युद्धविराम के फैसले की एक बड़ी वजह ईरान का खतरा है. दरअसल ईरान जो कभी इजराइल के साथ सीधी जंग से कतराता था और अपने प्रॉक्सी गुटों के जरिए ही इजराइल के लिए मुश्किलें पैदा करता था, वह अब सीधे तौर पर जंग के लिए अमादा है.
इस साल अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक दोनों देश एक-दूसरे पर कई बार अटैक कर चुके हैं लेकिन ईरान एक बार फिर इजराइल पर हमले की तैयारी कर रहा है. और उसने साफ धमकी दी है कि यह हमला पहले के हमलों से अधिक घातक होगा. ऐसी आशंका कि अगर ईरान इस बार इजराइल पर हमला करता है तो दोनों देशों के बीच ‘फुल फ्लेज्ड’ वॉर शुरू हो सकती है, लिहाज़ा इजराइल को अपने सैनिकों को आराम देने और तैयारी के लिए समय देने की जरूरत है.
दूसरी वजह: जंग में बड़ा नुकसान
हिजबुल्लाह के साथ जंग में इजराइल को बड़ा नुकसान पहुंचा है. पिछले साल 8 अक्टूबर से हिजबुल्लाह ने इजराइल के उत्तरी हिस्से में रॉकेट दागने शुरू किए थे, जिससे उत्तरी इजराइल से करीब 60 हजार यहूदियों को घर छोड़ना पड़ा. इजराइल ने नॉर्थ इजराइल से विस्थापित हुए यहूदियों को दोबारा बसाने के युद्ध लक्ष्य के साथ लेबनान में आक्रमण किया, लेकिन उसका यह दांव उल्टा पड़ गया.
Rocket Attack In North Of Tel Aviv
AP की रिपोर्ट के अनुसार, लेबनान में किए गए ग्राउंड ऑपरेशन में महज 2 महीनों में ही कम से कम 50 इजराइली सैनिकों की मौत हो चुकी है, वहीं नॉर्थ इजराइल में हिजबुल्लाह के हमलों में 40 नागरिकों समेत 70 लोग मारे जा चुके हैं. हाल के दिनों में हिजबुल्लाह ने इजराइल पर हमले और तेज कर दिए, वह रोजाना करीब 200 से 300 रॉकेट दाग रहा था. यही नहीं हिजबुल्लाह के रॉकेट और मिसाइलें अब नॉर्थ इजराइल तक सीमित नहीं थे बल्कि खतरा तेल अवीव तक पहुंच गया था.
हिजबुल्लाह ने अपने हमलों में लगातार इजराइल के मिसाइल डिफेंस सिस्टम को निशाना बनाकर पहले ही काफी कमजोर कर दिया है. ऐसे इजराइल के लिए लंबे समय तक उसके हमले झेलना मुश्किल हो रहा था. वहीं हिजबुल्लाह के साथ जंग में इजराइल को करीब 273 मिलियन डॉलर की संपत्ति का नुकसान हुआ है, साथ ही 55 हजार एकड़ का क्षेत्र हिजबुल्लाह के हमलों में जलकर राख हो गया. ऐसे में माना जा रहा है कि अगर युद्धविराम न होता तो आने वाले दिनों में इजराइल को आर्थिक और मानवीय नज़रिए से बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता था.
तीसरी वजह: लंबे संघर्ष से सैनिकों पर बुरा असर
इजराइल एक साथ कई फ्रंट पर युद्ध लड़ रहा है, एक तरफ गाज़ा में करीब एक साल से ग्राउंड ऑपरेशन जारी है तो वहीं दूसरी ओर IDF ने इसी साल 30 सितंबर से लेबनान में भी जमीनी हमले शुरू कर दिए गए थे. सीरिया और ईरान पर एयरस्ट्राइक की जा चुकी है और ईरान के साथ संघर्ष का खतरा अभी टला नहीं है. ऐसे में सैनिकों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है, लिहाजा एक फ्रंट पर युद्ध रोककर नेतन्याहू अपने सैनिकों को ब्रेक टाइम देना चाहते हैं जिससे वह दोबारा जंग के लिए ज्यादा मजबूती से तैयार हो सकें.
वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इजराइली सैनिक कभी न खत्म होने वाले संघर्ष से थक चुके हैं और वह अब सेना में काम नहीं करना चाहते. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इजराइली सैनिक और अधिकारी युद्ध की मानसिक थकान की भी शिकायत कर रहे हैं, कई सैनिक तो पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) से भी जूझ रहे हैं.
पिछले महीने CNN ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि 130 से ज्यादा रिजर्व सैनिकों ने प्रधानमंत्री नेतन्याहू को लिखे एक पत्र में साफ कर दिया था कि वह गाजा में सीजफायर डील होने तक आर्मी में सेवा नहीं देंगे. जानकारी के मुताबिक इजराइल को सभी मोर्चों पर जंग जारी रखने के लिए अधिक सैनिकों की आवश्यकता है जो कि फिल्हाल पूरी नहीं हो पा रही है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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