मध्य प्रदेश के पाल के गोविंदपुरा इलाके के दशहरा मैदान में आदिवासियों के एक संगठन जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से गर्जना डीलिस्टिंग महारैली का आयोजन किया गया. पूरे प्रदेश से बड़ी तादाद में आदिवासी इस रैली में पहुंचे. पिछले कुछ सालों में ईसाई और मुस्लिम आदिवासियों में धर्मांतरण को लेकर बड़ी चर्चा छिड़ी हुई है. इस रैली में आदिवासी संगठनों की ओर से यह मांग की गई कि धर्मांतरित आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर किया जाए.
संगठनों की ओर से मांग की गई कि जिस तरह धारा 341 में अनुसूचित जाति की डीलिस्टिंग लागू की गई है,उसी तरह संविधान के अनुच्छेद 342 में संशोधन करके डीलिस्टिंग लागू की जाए. दरअसल अनुच्छेद 341 में जो डीलिस्टिंग की गई है,उसके हिसाब से अगर कोई अनुसूचित जाति का सदस्य भारतीय धर्मों के अलावा कोई धर्म जैसे ईसाई या मुस्लिम धर्म अपनाता है तो उसे अनुसूचित जाति को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित कर दिया जाता है.आदिवासी संगठनों की मांग है कि इसी तरह अनुच्छेद 342 में संशोधन किया जाए,ताकि अगर कोई आदिवासी धर्मांतरण करे तो उसे आदिवासी समाज को मिलने वाली सरकारी योजनाओं का कोई लाभ न मिल सके.
आदिवासियों की मांग का समर्थन
जहां तक पांचवी अनुसूची का सवाल है, जनजाति सुरक्षा मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि पेसा एक्ट लागू होने के बाद इसकी मांग लगभग खत्म हो गई है. भविष्य में अगर आवश्यकता हुई तो इस पर जरूर चर्चा की जाएगी. इस रैली को सरकार का भी समर्थन हासिल है. सरकार की ओर से वन मंत्री विजय शाह भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए, और आदिवासियों की मांग का समर्थन किया. विजय शाह ने कहा कि मैं भी सरकार की ओर से इस मांग को केंद्र सरकार तक ले जाऊंगा और जरूरत पड़ी तो इसके लिए सड़कों पर भी उतरा जाएगा. विजय शाह ने कहा कि पद से ज्यादा मेरे लिए समाज महत्वपूर्ण है.
डीलिस्टिंग को लेकर आमराय नहीं
मध्य प्रदेश में पांचवी अनुसूची की मांग को लेकर कांग्रेस,जयस (जय आदिवासी संगठन), गोंडवाना गणतंत्र पार्टी समेत तमाम दल लंबे समय से अड़े हुए हैं.डीलिस्टिंग को लेकर इन दलों की आम राय अभी तक नहीं बन पाई है . मामला संवेदनशील है क्योंकि पूरे देश में आदिवासियों के धर्मकोट और पांचवी-छठी अनुसूची पर संवाद चल रहा है. जिसका बहुत बड़ा क्षेत्र न्यायपालिका के तहत भी आता है,ऐसे में इस रैली में उठाई गई मांगों पर बड़ी चर्चा होनी तय है.
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