अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पद संभालने वाले हैं, लेकिन शपथ लेने से पहले ही वह फुल फॉर्म में नजर आ रहे हैं. चुनाव में जीत के बाद से ही लगातार अनोखे बयान देकर वह सुर्खियों में हैं. सबसे ज्यादा चर्चा ट्रंप के उस बयान की है जो कनाडा-ग्रीनलैंड और पनामा को लेकर दिया है. ट्रंप खुले तौर पर इस बात का ऐलान कर चुके हैं कि उनका निशाना रूस और चीन हैं.
डोनाल्ड ट्रंप लगातार पड़ोसी देशों को धमकाने के अंदाज में बयान देने में जुटे हैं. कनाडा को वह अमेरिका में शामिल करने की बात कह चुके हैं तो ग्रीनलैंड और पनामा नहर पर कब्जे की वकालत कर रहे हैं. इसके पीछे ट्रंप अमेरिका की सुरक्षा का तर्क दे रहे हैं, उनका कहना है कि खास तौर से ग्रीनलैंड और पनामा नहर अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी हैं. ऐसे में सवाल ये है कि आखिर ग्रीनलैंड, कनाडा और पनामा नहर के बारे ट्रंप कैसे रूस और चीन पर निशाना साध रहे हैं. पहले बात ग्रीनलैंड की.
ग्रीनलैंड पर कब्जा क्यों चाहते हैं ट्रंप?
ट्रंप ने पिछले दिनों अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ पर लिखा था कि अमेरिका अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और दुनिया में कहीं जाने की आजादी के लिए ये महसूस करता है कि ग्रीनलैंड पर कब्जा जरूरी है. ग्रीनलैंड के पीएम म्यूज इगा ने इसके जवाब में कहा था कि हम बिकाऊ नहीं हैं और न ही कभी होंगे.
दरअसल ट्रंप ने सबसे पहले 2019 में ग्रीनलैंड को खरीदने की इच्छा जाहिर की थी. इसके पीछे की वजह यह थी कि ये इलाका आर्कटिक क्षेत्र में है. खासतौर से उत्तरी अमेरिका ये यूरोप जाने वाले छोटे रूट पर यह सबसे बड़ा द्वीप है.
अमेरिका लंबे समय से इसे रणनीतिक तौर पर खास मानता है. यहां कई नेचुरल रिर्सोसेज हैं जो बैटरी और आईटेक डिवाइस बनाने में इस्तेमाल हो सकते हैं. यही वजह है कि ग्रीनलैंड चीन और रूस की बढ़ती गतिविधियों का एक केंद्र बनता जा रहा है. अगर ट्रंप इस पर कब्जा करने में सफल होते हैं तो रूस और चीन पर सीधे प्रभाव पड़ेगा.
दरअसल रूस लगातार आर्कटिक क्षेत्र में सैन्य बेस को बढ़ाने में जुटा है, इसके अलावा वह यहां के नेचुरल रिसॉर्सेज पर भी नजर जमाए है. वहीं चीन भी यहां पर निवेश की कोशिश में है, ताकि अपने पड़ोसी एशियाई देशों की तरह यहां के बुनियादी ढांचे के विकास और खनिज परियोजनाओं का हिस्सा बन सके. अगर ऐसा होता है तो ग्रीनलैंड अमेरिका के लिए चुनौती बन जाएगा जैसा ट्रंप नहीं चाहते.
पनामा नहर जिस पर ट्रंप कब्जा चाहते हैं. (फोटो- Pixabay)
पनामा नहर पर क्यों है नजर?
पनामा नहर पर ट्रंप की नजर इसलिए है, क्योंकि फिलवक्त इसका इस्तेमाल करने के लिए अमेरिका को भी शुल्क देना पड़ता है. ट्रंप का आरोप है कि अमेरिका से ज्यादा दाम वसूला जाता है. पनामा के राष्ट्रपति जोसे राउल मुलिनो ने इस आरोप का खंडन किया है. ट्रंप का ये भी आरोप है कि पनामा नहर पर चीनी सैनिकों का नियंत्रण हैं जो इसका अवैध तौर पर संचालन कर रहे हैं. दरअसल पनामा नहर अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है.
1900 के दशक में निर्माण के बाद से ये 1977 तक अमेरिका के कब्जे में ही रही थी, तत्कालीन राष्ट्रपति कार्टर ने इसे पनामा को सौंप दिया था. इस नहर में चीन की दिलचस्पी लगातार बढ़ रही है. यहां की कई परियोजनाओं में चीन में निवेश किया है. चीन की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड का भी ये हिस्सा है. ऐसे में अमेरिका इसे खतरे के तौर पर देख रहा है, क्योंकि चीन की इस हरकत से व्यापार मार्गों पर चीन का नियंत्रण बढ़ जाएगा.
ठीक यही काम रूस कर रहा है, वह लैटिन अमेरिका के देश क्यूबा, वेनेजुएला आदि में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. इसके अलावा वह निकारागुआ में चीन के साथ मिलकर एक नई नहर परियोजना पर काम कर रहा है. ऐसे में ट्रंप पनामा नहर पर अपना प्रभाव बढ़ाकर इस साझेदारी में खटास पैदा करना चाहते हैं. इसके साथ ही वह ये भी दर्शाना चाहते हैं कि ये पारंपरिक तौर पर अमेरिका का क्षेत्र है और रूस इससे दूर रहे.
कनाडा पर कब्जा के पीछे चाहत क्या?
कनाडा का 40 प्रतिशत हिस्सा आर्कटिक क्षेत्र में है. ट्रंप ने इस देश को अमेरिका में शामिल करने की वकालत की है. हालांकि पहले से ही यह अमेरिका का सहयोगी देश है, लेकिन हाल के दिनों रूस और चीन के कनाडा पर बढ़ते प्रभाव को देखते हुए ट्रंप ने ये ऐलान किया है.
दरअसल ट्रंप चाहते हैं कि कनाडा और मैक्सिको के साथ चीन के व्यापारिक समझौते सीमित रहें, इसीलिए उन्होंने 1994 के नॉर्थ अमेरिका फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को बदलकर यूएसएमसीए लागू किया था. अब नया कार्यकाल संभालने से पहले ही ट्रंप ने पहले कनाडा पर नए टैरिफ का ऐलान किया, ताकि वह रूस और चीन को यह संदेश दे सकें कि अमेरिका अपनी आर्थिक प्राथमिकताओं को लेकर आक्रामक है. इसके अलावा कनाडा में चीन का निवेश लगातार बढ़ रहा है, जिसे ट्रंप रोकना चाहते हैं.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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