दुनिया कुछ भी कहती रहे, चीन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. बात चाहे इंसानों पर मंडराते संकट की हो या पर्यावरण के साथ छेड़छाड़. ड्रैगन अपनी जिद के आगे किसी की नहीं सुनता. ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की जो उसकी योजना है वो इसी का उदारहण है. चीन तिब्बत के जिस क्षेत्र में बांध बनाने जा रहा है वहां पर भूकंप का सबसे ज्यादा खतरा रहता है. वो हाई सिस्मिक जोन में आता है.
चीन की यह परियोजना नाजुक हिमालयी क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेट सीमा पर स्थित है, जहां अक्सर भूकंप आते रहते हैं. यह बांध तिब्बत के मेडोग काउंटी में हिमालय के उस बिंदु पर आएगा, जहां नदी अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश के लिए यू-टर्न लेती है. जहां बांध बनाने का प्लान है वो भारत के साथ विवादित सीमा से बहुत दूर नहीं है. बांध को बनाने में 13.7 अरब अमेरिकी डॉलर का खर्च आएगा. इसे दुनिया का सबसे बड़ा बांध बताया जा रहा है.
इतिहास की सटीक समझ चीन द्वारा बनाए जा रहे मेडोग बांध की साइट को प्रासंगिक बनाने में मदद करेगी. 1950 के मेडोग भूकंप का केंद्र तिब्बत के मेडोग में था. भूकंप का असम और बांग्लादेश के निचले हिस्से में विनाशकारी प्रभाव पड़ा.
भारत जता चुका है चिंता
भारत बांध पर अपनी चिंताएं व्यक्त कर चुका है. भारत ने चीन से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह वाले निचले इलाकों के हितों को ऊपरी इलाकों में होने वाली गतिविधियों से नुकसान न पहुंचे. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, हम अपने हितों की रक्षा के लिए निगरानी जारी रखेंगे और आवश्यक कदम उठाएंगे.
जायसवाल ने कहा, नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में जल के उपयोग का अधिकार रखने वाले देश के रूप में, हमने विशेषज्ञ स्तर के साथ-साथ कूटनीतिक माध्यम से, चीनी पक्ष के समक्ष उसके क्षेत्र में नदियों पर बड़ी परियोजनाओं के बारे में अपने विचार और चिंताएं लगातार व्यक्त की हैं.
चीन का क्या कहना है?
चीन ने कहा है कि प्रस्तावित परियोजना गहन वैज्ञानिक सत्यापन से गुजर चुकी है. नदी प्रवाह के निचले इलाकों में स्थित भारत और बांग्लादेश पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने बताया कि यारलुंग सांगपो नदी (ब्रह्मपुत्र नदी का तिब्बती नाम) के निचले क्षेत्र में चीन द्वारा किए जा रहे जलविद्युत परियोजना के निर्माण का गहन वैज्ञानिक सत्यापन किया गया है. इससे निचले हिस्से में स्थित देशों के पारिस्थितिकी पर्यावरण, भूविज्ञान और जल संसाधनों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा.
तिब्बत की तबाही कहीं ट्रेलर तो नहीं?
बांध बनाने की चर्चाओं के बीच मंगलवार को भारत समेत 5 देशों में भूकंप के झटके महसूस किए गए. भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, चीन और तिब्बत में धरती हिली. सबसे ज्यादा तबाही तिब्बत में मची. 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. कई घरों को नुकसान पहुंचा.
जहां पर बांध बनाने का प्लान है वह पर अक्सर भूकंप आते रहते हैं, क्योंकि यह टेक्टोनिक प्लेटों के ऊपर स्थित है. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भूकंप के कारण बांध अगर विफल हो जाता है तो डोमिनो एफेक्ट आ सकता है. इससे पानी का उछाल बढ़ेगा और बांध के झरनों को नीचे की ओर पुश करेगा. ऐसे में सवाल उठता है कि तिब्बत में जो तबाही मची है कहीं वो ट्रेलर तो नहीं है.
चीन ने तिब्बती क्षेत्रों में कई बांध बनाए हैं. 1950 के दशक में कब्जे के बाद से बीजिंग द्वारा नियंत्रित क्षेत्र में यह एक विवादास्पद विषय है. एक्टिविस्ट कहते हैं कि बांध बीजिंग द्वारा तिब्बतियों और उनकी भूमि के शोषण का ताजा उदाहरण है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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