डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. वो दूसरी बार अमेरिका की सत्ता संभालेंगे. ट्रंप सरकार में एलन मस्क, लिंडा मैकमहॉन, हावर्ड ल्यूटनिक, वॉरेन स्टीफन्स, केली लोफलर, चार्ल्स कुशनर, जैकब हेलबर्ग, स्कॉट बेसेंट का अहम रोल होगा. इन सभी को ट्रंप को चुनावी चंदा देने का इनाम मिला है. साल 2016 के चुनाव में ट्रंप ने वादा किया था कि अपने प्रचार के लिए किसी से एक पाई चंदा नहीं लेंगे. ये बात और है कि 2016 के चुनाव में ट्रंप की प्रचार टीम ने 43 करोड़ डॉलर से ज़्यादा चंदा जुटाया और उसमें ट्रंप ने अपने बैंक अकाउंट से सिर्फ 6 करोड़ 61 लाख डॉलर ही खर्च किए थे.
इस बार ट्रंप अमेरिका को फिर से ग्रेट बनाने के मुद्दे पर चुनाव जीते हैं. इसके लिए उनका एजेंडा क्लियर है. अमेरिका की पाई-पाई बचानी है. इसलिए ट्रंप ने अरबपति कारोबारियों की टीम बनाई है. ट्रंप का कार्यकाल 20 जनवरी 2025 को शुरू होगा. मगर, उनकी टीम ने अमेरिका से लेकर यूरोप और चीन तक की टेंशन बढ़ा दी है.
कनाडा में कोहराम शुरू हो गया है. ब्रिटेन में ट्रंप के एक दोस्त ने बवाल मचा रखा है. अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के ही स्पीकर की सांस ट्रंप ने अटका दी है. ट्रंप अपनी दूसरी पारी में क्या करने वाले हैं और उनके सत्ता में आने की आहट से ही अमेरिका के दोस्त और दुश्मन, सबके होश क्यों उड़े हुए हैं. इसी पर टीवी9 भारतवर्ष टेली सीरीज ‘धन-धनाधन- The Dollar Game’ लेकर आया है.
इसके पहले भाग का नाम है ‘इनाम- The Fortune Flow.’
तारीख- 14 दिसंबर 2024 स्थान- नॉर्थवेस्ट स्टेडियम, मैरीलैंड (अमेरिका)
अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने रनिंग मेट और भावी उप राष्ट्रपति जेडी वान्स के साथ आर्मी बनाम नेवी मैच देखने गए थे. राष्ट्रपति ट्रंप के बेस्ट बडी… उद्योगपति एलन मस्क और अमेरिकी संसद के स्पीकर माइक जॉनसन भी साथ ही थे. सबको यही लगा कि शपथ ग्रहण से पहले ट्रंप अपनी टीम के साथ अमेरिका का सबसे लोकप्रिय खेल देखने आए हैं लेकिन असली खेल चार दिन बाद सामने आया. खेल अमेरिका की राजनीति का, जिसमें आमने-सामने थे रिपब्लिकन पार्टी के स्पीकर माइक जॉनसन और एलन मस्क.
तारीख- 17 दिसंबर 2024 स्थान- वाशिंगटन डीसी, अमेरिका
अमेरिकी संसद में स्पीकर माइक जॉनसन ने 100 अरब डॉलर का अनुपूरक बजट पेश किया, जिसे अमेरिका में स्टॉपगैप बिल कहा जाता है. स्पीकर का कहना था कि बीते तीन महीने में दो बड़े तूफान आए, जिसकी वजह से बजट गड़बड़ा गया है. अगर ये बिल पास नहीं हुआ तो 20 दिसंबर के बाद अमेरिका की सरकार का कामकाज ठप हो जाएगा.
इस इमरजेंसी बजट को अमेरिकी संसद के दोनों सदनों से पास कराना था लेकिन उससे पहले ही राष्ट्रपति ट्रंप की टीम के सबसे खास सदस्य एलन मस्क ने मोर्चा संभाल लिया. ट्रंप की भावी सरकार में एलन मस्क को डीओजीई यानी डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिसिएंसी मंत्री बनाया गया है. उनको सरकारी फिजूलखर्ची रोकने की जिम्मेदारी निभानी है. लिहाजा शपथ ग्रहण करने से पहले ही मस्क ने ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों को फरमान सुना दिया कि 100 अरब डॉलर का ये बिल पास नहीं होना चाहिए.
अमेरिका के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि स्पीकर माइक जॉनसन और इलॉन मस्क का टकराव उस फिल्म का ट्रेलर है, जो 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद रिलीज़ होने वाली है. एलन मस्क ने अभी 100 बिलियन डॉलर के बजट पर कैंची चलाई है. पावर में आने के बाद उनका टारगेट 2 ट्रिलियन यानी 2000 हज़ार करोड़ डॉलर है.
एलन मस्क ने अमेरिका में दो ट्रिलियन डॉलर की फिजूलखर्ची रोकने का वादा किया था, सिर्फ इसलिए उन्हें ट्रंप ने मंत्री नहीं बनाया. मस्क को मंत्री पद का इनाम इसलिए मिला क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने अपनी तिजोरी ट्रंप के लिए खोल दी थी. राष्ट्रपति ट्रंप के चुनाव प्रचार अभियान में सबसे ज़्यादा चंदा एलन मस्क ने ही दिया था. करीब 263 मिलियन डॉलर यानी 26 करोड़ 30 लाख डॉलर का चंदा.
चंदे के बदले ट्रंप सरकार में बड़ा पद
ट्रंप की टीम में एलन मस्क इकलौते अरबपति नहीं हैं, जिन्हें चुनावी चंदे के बदले ट्रंप सरकार में बड़ा पद और ट्रंप का एजेंडा लागू करने की जिम्मेदारी मिली है. ट्रंप ने अब तक जिन लोगों के दम पर सत्ता चलाने का ऐलान किया है, उनमें मस्क के बाद दूसरा बड़ा नाम है लिंडा मैकमहॉन का. जिन्हें ट्रंप ने अपनी सरकार में शिक्षा मंत्री बनाने का ऐलान किया है.
लिंडा मैकमहॉन डब्ल्यू डब्ल्यू ई यानी वर्ल्ड रेस्लिंग एंटरटेनमेंट की सह संस्थापक हैं. डब्ल्यू डब्ल्यू ई से ट्रंप का भी पुराना लगाव है. लिंडा मैकमहॉन को शिक्षा मंत्री बनाने की बड़ी वजह ये है कि उन्होंने ट्रंप को 2 करोड़ 12 लाख डॉलर का चुनावी चंदा दिया था. मैकमहॉन को जब ट्रंप ने शिक्षा मंत्री बनाने का ऐलान किया तो अमेरिकी मीडिया ने दावा किया कि ट्रंप पूरे अमेरिका में शिक्षा विभाग को ही बंद कर देना चाहते हैं. इसीलिए उन्होंने लिंडा मैकमहॉन को चुना.
चुनाव प्रचार में 94 लाख डॉलर का चंदा देने वाले अरबपति हावर्ड ल्यूटनिक को भी ट्रंप ने बड़ा इनाम दिया. हावर्ड ल्यूटनिक को ट्रंप ने अपना वाणिज्य मंत्री बनाया है, जो अमेरिका की 100 साल पहले ही आर्थिक नीतियों को फिर से लागू करने की वकालत करते रहे हैं. ल्यूटनिक के ज़रिए ट्रंप अमेरिका में ऐसा आर्थिक एजेंडा लागू करना चाहते हैं, जिसमें इनकम टैक्स ना के बराबर होगा और टैरिफ यानी विदेशों से आने वाले सामान पर टैक्स ही टैक्स वसूला जाएगा.
ट्रंप की टीम के नवरत्नों में एक नाम केली लीफर का
ट्रंप पर भरोसा करने वाले जिन अरबपतियों को अमेरिका की सत्ता में हिस्सेदारी मिलने जा रही है, उनमें प्राइवेट इन्वेस्टमेंट बैंक के मालिक वॉरेन स्टीफेन्स भी हैं. ट्रंप को 33 लाख डॉलर चुनावी चंदा देने वाले वॉरेन स्टीफेन्स को ब्रिटेन में अमेरिका का राजदूत मनोनीत किया गया है.
ट्रंप की टीम के नवरत्नों में एक नाम केली लीफर का है. केली लीफर एक महिला बॉस्केटबॉल टीम की सह मालकिन हैं. एक कंपनी की सीईओ हैं और जॉर्जिया से सीनेटर भी हैं. चुनाव प्रचार में ट्रंप को 29 लाख डॉलर का चंदा देने वाली केली लीफर को ट्रंप ने छोटे उद्योगों की प्रशासक नॉमिनेट किया है.
ट्रंप को 15 लाख डॉलर का चुनावी चंदा देने वाले इन्वेंस्टमेंट बैंकर और हेज फंड मैनेजर स्कॉट बेसेंट को अमेरिका का वित्त मंत्री बनाया गया है. वो जॉर्ज सोरोस की कंपनी सोरोस फंड मैनेजमेंट में पार्टनर रह चुके हैं. ट्रंप ने जैकब हेलबर्ग को अमेरिका का सहायक विदेश सचिव बनाया है, जो एलेक्स कार्प नाम की एक कंपनी के मालिक हैं. जैकब हेलबर्ग ने ट्रंप को 19 लाख डॉलर का चुनावी चंदा दिया था लेकिन उन्हें सहायक विदेश मंत्री बनाने की एक और वजह है. जैकब हेलबर्ग को चीन की कंपनी टिक-टॉक से नफरत है.
इस बार खुलकर खेल रहे हैं ट्रंप
आमतौर पर किसी बड़े नेता के रिश्तेदार चुनाव में पैसा खर्च करते हैं तो पर्दे के पीछे से सत्ता की मलाई काटते हैं. मगर, ट्रंप इस बार खुलकर खेल रहे हैं. लिहाजा उन्होंने अपने समधी चार्ल्स कुशनर को फ्रांस में अमेरिका का राजदूत बनाने का ऐलान किया है. चार्ल्स कुशनर भी ट्रंप की तरह बड़े रियल इस्टेट कारोबारी हैं. ट्रंप की सबसे लाडली बेटी इवांका के ससुर हैं और उन्होंने चुनाव प्रचार में ट्रंप को 20 लाख डॉलर चंदा दिया था.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में उनकी आलोचना करने वाले उद्योगपति भी अब ट्रंप से याराना दिखाने में जुटे हैं. फेसबुक, अमेज़ॉन और ट्रंप विरोधी कंपनियां शपथ ग्रहण समारोह के लिए दिल खोलकर चंदा देने में जुटी हैं. अमेरिका में अगर आप किसी राजनीतिक विश्लेषक से पूछें कि आजकल क्या चल रहा है तो जवाब मिलेगा कि यहां तो 8 साल से ट्रंपवाद चल रहा है.
ट्रंपवाद… मतलब अमेरिका के हर मर्ज की वजह हैं प्रवासी और सबकी एक ही दवा है दौलत. ट्रंपिज़म या ट्रंपवाद का एक और मतलब है कि ट्रंप जो कहते हैं, उसका उल्टा भी कर सकते हैं. ट्रंप का यही अंदाज अमेरिका एमेजॉन, मेटा और ओपन एआई जैसी बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के मालिकों को डराए हुए है. कभी ट्रंप का खुलेआम विरोध करने वाले दिग्गजों का नया प्लान क्या है, जानिए टेली सीरीज़ के एपिसोड- ‘याराना- The Business Bond.’ के बारे में.
तारीख- 8 दिसंबर 2024 स्थान- मार-ए-लागो, फ्लोरिडा (अमेरिका)
पाम बीच पर बने अपने महल में डोनाल्ड ट्रंप की ट्रांजिशन टीम शपथ ग्रहण की तैयारियों में जुटी थी. राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप अपनी दूसरी पारी में क्या करने वाले हैं, यही जानने के लिए अमेरिकी न्यूज़ चैनल की एक टीम वहां मौजूद थी. अपना एजेंडा बताने के बाद ट्रंप ने बताया कि उन्हें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए.
डोनाल्ड ट्रंप जब वेतन और सैलरी का त्याग करने की कसम खा रहे थे, तब उनकी टीम ये हिसाब लगा रही थी कि शपथ ग्रहण में कितना खर्च आएगा और उसके लिए किसने कितना चंदा दिया है. सही सुना… अमेरिका के राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह सरकारी खर्चे पर नहीं होता बल्कि उसके लिए निर्वाचित राष्ट्रपति को खुद चंदा जुटाना पड़ता है. अपनी पहली सरकार में ट्रंप ने शपथ ग्रहण समारोह के लिए 109 मिलियन डॉलर का चंदा जुटाया था. इस बार भी ट्रंप के इनॉगुरल डोनेशन यानी शपथ ग्रहण के लिए दान में पैसे लुटाने वालों की लाइन लगी थी, जिसमें कुछ नाम और चेहरे देखकर डोनाल्ड ट्रंप भी चौंके.
मार-ए-लागो के अपने कैंप ऑफिस में ट्रंप ने चंदा देने वालों की लिस्ट देखने के बाद अपनी टीम से कहा, मेरे पहले कार्यकाल में हर कोई मुझसे लड़ाई कर रहा था. इस बार हर कोई मेरा दोस्त बनना चाहता है. ट्रंप का इशारा किसकी ओर था, ये अमेरिका में हर कोई जानता है. अमेरिकी मीडिया भी ये जानकर हैरान थी कि अमेरिका में उद्योग जगत के जो दिग्गज ट्रंप को खुलेआम लताड़ते थे. ट्रंप को अमेरिकी लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे थे, वही लोग उनके शपथ ग्रहण समारोह को भव्य बनाने के लिए 10-10 लाख डॉलर का चेक लेकर ट्रंप के सामने कतार में खड़े हो गए.
ट्रंप से याराना बढ़ाने वाले उनके पुराने विरोधियों में सबसे पहला नाम मेटा कंपनी के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग का था. ज़ुकरबर्ग ने 6 जनवरी 2021 को ट्रंप समर्थकों के हंगामे के बाद डोनाल्ड ट्रंप को फेसबुक पर बैन कर दिया था. वही पुरानी कड़वाहट इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में प्रचार के दौरान ट्रंप की ज़ुबान पर थी. ट्रंप ने ज़ुकरबर्ग का नाम लेकर आगाह किया था कि चुनाव जीतने के बाद देखना.
तारीख- 9 जुलाई 2024
ज़ुकरबर्ग को अंदाजा लग गया था कि चुनाव का नतीजा कुछ भी हो सकता है. लिहाजा उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी उम्मीदवार का समर्थन करने से परहेज किया. ट्रंप के बारे में बड़ा हृदय परिवर्तन एमेज़ॉन के संस्थापक जेफ बेज़ोस का भी हुआ. ट्रंप के पहले कार्यकाल में जेफ बेज़ोस उनके कट्टर विरोधी थे. ट्रंप ने भी दुश्मनी का रिश्ता निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. राष्ट्रपति की कुर्सी पर रहते हुए ट्रंप ने जेफ बेज़ोस की एमेज़ॉन कंपनी के बारे में इतनी आग उगली कि मानो वो एमेज़ॉन को भस्म करके ही मानेंगे. जवाब देने में बेज़ोस भी पीछे नहीं रहे.
अपनी पहली पारी में ट्रंप राजनीतिक तौर पर कमज़ोर थे. अमेरिकी सीनेट में उनके पास बहुमत नहीं था. इसलिए बेज़ोस बच गए. इस बार हालात बदले तो मजबूत ट्रंप के बारे में बेज़ोस की सोच भी बदल गई. 19 दिसंबर यानी ट्रंप के शपथ ग्रहण से ठीक एक महीना पहले जेफ बेज़ोस भी एक मिलियन डॉलर का चंदा देने के लिए ट्रंप से मिलने पहुंचे. अमेरिकी मीडिया का दावा है कि बेज़ोस हों या ज़ुकरबर्ग, ट्रंप के पुराने विरोधियों को मालूम है कि ट्रंप की नज़र अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर है. उनकी सरकार में एलन मस्क की हैसियत बहुत बड़ी है. मस्क खुद टेक्नोलॉजी के चैंपियन है. इसलिए ट्रंप अमेरिका की टेक्नोलॉजी कंपनियों की तकदीर पलट सकते हैं, जो अर्श पर है, वो फर्श पर भी आ सकता है.
ये डर ही विरोधियों को ट्रंप के करीब आने के लिए मजबूर कर रहा है. इसकी मिसाल है अमेरिका की ओपन एआई कंपनी. ये कंपनी सैम आल्टमैन ने इलॉन मस्क के साथ शुरू की थी लेकिन बाद में एलन मस्क के साथ आल्टमैन के रिश्ते खराब हो गए. मस्क ने ओपन एआई से खुद को अलग कर लिया.
ओपेन एआई के सीईओ सैम आल्टमैन अमेरिकी चुनाव में हवा का रुख नहीं भांप सके. उन्होंने ट्रंप को हराने के लिए कमला हैरिस का समर्थन किया. हालांकि 6 नवंबर को वोटों की गिनती पूरी होने से पहले ही आल्टमैन के सुर बदलने लगे. सैम आल्टमैन ने भी ट्रंप से याराना कायम करने के लिए 10 लाख डॉलर का चंदा दे दिया है. माना जा रहा है कि ये ओपन एआई को ट्रंप और इलॉन मस्क के कहर से बचाने का नज़राना है.
अमेरिका की राजनीति में जब डोनाल्ड ट्रंप की एंट्री नहीं हुई थी, तब रिपब्लिकन पार्टी का पसंदीदा शब्द था- फ्री ट्रेड. यानी मुक्त व्यापार. जॉर्ज बुश से लेकर रिपब्लिकन पार्टी के हर उम्मीदवार ने दूसरे देशों के साथ कारोबार के लिए अमेरिका के दरवाज़े खोलने की वकालत की लेकिन ट्रंप ने फ्री ट्रेड की रिपब्लिकन पॉलिसी का चैप्टर ही बंद कर दिया है. ट्रंप के लिए डिक्शनरी का सबसे खूबसूरत शब्द है टैरिफ. यानी विदेश से आने वाले सामान पर टैक्स. पिछली बार चीन के साथ टैरिफ वॉर छेड़ने वाले ट्रंप के टारगेट पर अमेरिका का प्रिय पड़ोसी कनाडा क्यों है, जानें धन धनाधन के एपिसोड ‘धंधा- The Wily Tycoon’ के बारे में.
तारीख- 15 अक्टूबर 2024
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए 20 दिन बाद वोटिंग होनी थी. रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप उस दिन लाइव ऑडिएंस के सामने एक इंटरव्यू में समझा रहे थे कि दूसरी पारी में उनकी सरकार का मूल मंत्र क्या होगा. चीन के खिलाफ ट्रंप ने पहली पारी में टैरिफ को ही हथियार बनाया था. चूंकि इंटरव्यू में ट्रंप ने किसी देश का नाम नहीं लिया था, इसलिए माना गया कि वो चीन को चेतावनी दे रहे हैं. ये गलतफहमी ट्रंप ने खुद ही सोशल मीडिया पर दूर कर दी. उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ट्रुथ पर लिखा कि 20 जनवरी 2025 को शपथ ग्रहण के तुरंत बाद वो अमेरिका के दो पड़ोसी देशों मैक्सिको और कनाडा पर 25 परसेंट टैक्स लगा देंगे. ट्रंप की इस चेतावनी से कनाडा में 6 साल पुराना खौफ लौट आया.
तारीख- जून 2018 स्थान- वाशिंगटन डीसी, अमेरिका
चीन के साथ ट्रंप का टैरिफ वॉर का पहला दौर पूरा हो चुका था. दूसरे दौर में ट्रंप ने टैरिफ की तोप का मुंह अमेरिका के दोस्तों की ओर मोड़ दिया. उन्होंने जून 2018 में यूरोपियन यूनियन और कनाडा से आने वाले सामान पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाया, जिसकी सबसे बड़ी मार कनाडा पर पड़ी. जवाबी हमला करते हुए कनाडा ने भी अमेरिकी सामान पर टैक्स की दरें बढ़ा दीं.
ट्रंप के टैरिफ वॉर से सिर्फ कनाडा परेशान नहीं था. नुकसान अमेरिका को भी उठाना पड़ा. इसलिए माना जा रहा था कि दूसरी पारी में ट्रंप कम से कम कनाडा को बख्श देंगे. कनाडा के साथ अमेरिका की जमीनी सरहद 8 हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा लंबी है. कनाडा के साथ अमेरिका का बहुत पुराना रणनीतिक रिश्ता भी है.
तारीख- 10 दिसंबर 2024 स्थान- मार-ए-लागो, फ्लोरिडा (अमेरिका)
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो को डोनाल्ड ट्रंप ने डिनर के लिए बुलाया था. ट्रंप के साथ करीब तीन घंटे बिताने के बाद जब प्रधानमंत्री ट्रुडो बाहर निकले तो उनके चेहरे की मुस्कान फीकी पड़ चुकी थी. वो ज़्यादा कुछ बोले बिना निकल गए लेकिन ट्रंप ने खुद ही सोशल मीडिया पर बता दिया कि उन्होंने कनाडा को क्या संदेश भेजा है. ट्रंप ने जस्टिन ट्रुडो की खिल्ली उड़ाते हुए उन्हें कनाडा का गवर्नर बता दिया. अमेरिकी मीडिया ने इसका मतलब ये समझाया कि ट्रंप ने ट्रुडो से कहा कि वो कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य घोषित कर दें और खुद गवर्नर बन जाएं.
ट्रंप ने शपथ ग्रहण के बाद कनाडा पर टैरिफ प्रहार का वादा किया था लेकिन कनाडा के साथ अमेरिका का टकराव ट्रंप की इस टिप्पणी के बाद शुरू हो गया. कनाडा के ओंटारियो राज्य के प्रीमियर डग फोर्ड ने ट्रंप को चेतावनी दे डाली कि अगर उन्होंने कनाडा के साथ टैरिफ वॉर शुरू किया तो कनाडा से अमेरिका जाने वाली बिजली की सप्लाई बंद होगी.
तारीख- 12 दिसंबर 2024 स्थान- ओंटारियो, कनाडा
ट्रंप का आरोप है कि कनाडा को सबक सिखाना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि कनाडा से अमेरिका में अवैध प्रवासी घुसते हैं और ड्रग्स की सप्लाई भी कनाडा बॉर्डर से ही होती है. ट्रंप की धमकी का मतलब ये भी था कि अमेरिका से अवैध प्रवासियों को कनाडा में धकेला जा सकता है. इसलिए कनाडा सरकार ने अमेरिका बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए बिना देरी किए 130 करोड़ डॉलर का प्लान तैयार कर लिया. ट्रंप के आने की आहट भर से कनाडा में जो भूचाल मचा, ये उसकी झांकी भर थी. असल कोहराम अभी बाकी था.
तारीख- 16 दिसंबर 2024 स्थान- ओट्टावा, कनाडा
कनाडा सरकार की उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने उस दिन ट्रुडो कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. क्रिस्टिया फ्रीलैंड का आरोप था कि डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद कनाडा में जो आर्थिक तबाही आने वाली है, उसके लिए प्रधानमंत्री ट्रुडो कतई तैयार नहीं हैं. दरअसल, कारोबारी से नेता बने ट्रंप को धंधा समझ में आता है. उनके लिए धंधे का एक ही उसूल है… फायदा.
कूटनीति और रणनीति के बजाय वो अमेरिका के आर्थिक फायदे पर ही ज़ोर दे रहे हैं. ट्रंप की यही सोच 20 जनवरी के बाद पूरी दुनिया में उथल-पुथल का संकेत मानी जा रही है. राष्ट्रपति ट्रंप पहले ही साफ कर चुके हैं कि उनकी हर नीति का केंद्र बिंदु एक ही है… अमेरिका फर्स्ट. इसकी राह में जो भी आएगा, उसे टैरिफ की मार झेलनी पड़ेगी. चाहे वो अमेरिका का पड़ोसी हो या फिर पुराना दोस्त..
डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान चीन को सीधे निशाने पर लिया था. मुद्दा वही था… अमेरिका के ट्रेड डेफिसिट यानी व्यापार घाटे का. चीन को सबक सिखाने के लिए उन्होंने चीन के इम्पोर्ट पर 60 फीसदी टैक्स लगा दिया. इस बार उन्होंने वादा किया था कि चीन पर 100 प्रतिशत टैरिफ भी थोप सकते हैं लेकिन शपथ ग्रहण की तैयारी शुरू हुई तो ट्रंपिज़म ने सबको हैरान कर दिया. ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भी न्योता भेज दिया. ट्रंप की इस दोस्ताना पहल से चीन को डर क्यों लगा, जानें टेली सीरीज के एपिसोड- ‘बदलापुर- The Revenge Race.’ के बारे में.
तारीख- 20 जनवरी 2009 स्थान- वाशिंगटन डीसी, अमेरिका
अमेरिकी लोकतंत्र के लिए वो ऐतिहासिक दिन था. अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा का शपथ ग्रहण था. कैपिटल ग्राउंड में हज़ारों की भीड़ टिकट खरीदकर शपथ ग्रहण समारोह में पहुंची थी. भीड़ कितनी थी, इसका अंदाज़ा लगाने के लिए बस यही बताया गया कि वाशिंगटन डीसी में पहले कभी कार्यक्रम में इतने लोग नहीं उमड़े. अमेरिका ने इस इतिहास का गवाह बनने के लिए भी किसी विदेशी मेहमान या राष्ट्राध्यक्ष को न्यौता नहीं भेजा.
ओबामा के शपथ ग्रहण के 15 साल बाद अमेरिका के लोगों का सामना एक ऐसी खबर से हुआ, जो अभूतपूर्व थी. निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में विदेशी मेहमानों को न्योता भेजना शुरू कर दिया. जिन राष्ट्राध्यक्षों की लिस्ट सामने आई, उनमें इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी, अल सल्वाडोर के राष्ट्रपति नायिब बुकेले और अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिलेई का नाम था. इन तीनों पर किसी को हैरानी नहीं हुई, क्योंकि तीनों घोर दक्षिणपंथी हैं. इनका मिजाज़ ट्रंप से बहुत मेल खाता है लेकिन ट्रंप के मेहमानों में एक नाम अमेरिका के घोषित दुश्मन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भी था.
अपने पूरे चुनाव प्रचार में ट्रंप ने चीन को तबीयत से धमकाया था. वो हर भाषण में दोहराते रहे कि सत्ता में आए तो चीन पर इतना टैरिफ थोपेंगे कि वो याद रखेगा. चुनाव जीतने के बाद भी ट्रंप चीन पर टैरिफ का बम फोड़ने की बात दोहराते रहे. फिर उसी चीन के राष्ट्रपति को ट्रंप अपने शपथ ग्रहण में क्यों बुला रहे हैं? इस सवाल ने अमेरिका से चीन तक बवाल मचा दिया. ट्रंप के समर्थकों के लिए ये उनका मास्टर स्ट्रोक था लेकिन चीन को दाल में काला महसूस हो रहा था. लिहाज़ा ट्रंप की गर्मजोशी पर चीन से आई खबरों ने ठंडा पानी डाल दिया.
ट्रंप के न्योते के बाद भी चीन को उनकी नीयत पर शक क्यों है? ये समझने के लिए ट्रंप की पहली पारी और शी जिनपिंग के साथ उनकी ऐसी ही यारी की कहानी समझनी होगी. 20 जनवरी 2017 को डोनाल्ड ट्रम्प जिस वक्त शपथ ले रहे थे, तब अमेरिका के सामने चार चुनौतियां एक साथ खड़ी थीं. रूस अपनी ताकत दिखा रहा था. अमेरिका और चीन के रिश्तों की कड़वाहट चरम पर थी. ईरान और नॉर्थ कोरिया का परमाणु कार्यक्रम भी सिरदर्द बना हुआ था. ट्रंप की अग्निपरीक्षा का पहला चैप्टर चीन से शुरू हुआ.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अमेरिका आने का न्योता ट्रंप ने ही दिया था. व्हाइट हाउस की बजाय ट्रंप ने उन्हें फ्लोरिडा के अपने आलीशान महल में बुलाया. ट्रंप ने उन्हें अपने महल की सैर कराई. फिर शुरू हुई काम की बात. चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़ रहा था. ट्रंप का एजेंडा यही था. बातों का निचोड़ क्या निकला, इसका इशारा ट्रंप ने डिनर टेबल पर किया.
इसके 7 महीने बाद ट्रंप चीन की यात्रा पर थे. ये उनकी पहली चीन यात्रा थी. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग लाल कालीन बिछाकर स्वागत करने पहुंचे. उनको अपनी कूटनीति की झांकी दिखानी थी लेकिन वो बीजिंग में शी जिनपिंग को अपनी नातिन इवांका ट्रंप की बेटी का वीडियो दिखा रहे थे. ट्रंप के सम्मान में शी जिनपिंग ने जो भोज दिया, उसमें ट्रंप की नातिन ने गाना गाया. चीन की मैंड्रिन भाषा में.
सबको लगा कि ट्रंप चीन के साथ कूटनीति को पर्सनल टच दे रहे हैं. शी जिनपिंग के साथ दोस्ती बढ़ा रहे हैं, जिसका रंग भविष्य में दिखेगा लेकिन इस दोस्ती की उम्र बहुत लंबी नहीं थी. चीन दौरे के 4 महीने बाद ट्रंप ने ऐलान कर दिया कि चीन के साथ दोस्ती खत्म और दुश्मनी शुरू.
दोस्ती का हाथ बढ़ाकर दुश्मनी का सबक सिखाने का ट्रंप वो अंदाज़ चीन भूल नहीं पाया. इसी का नतीजा था कि इस बार ट्रंप से पहले चीन ने ही अमेरिका पर आर्थिक प्रहार शुरू कर दिया. ट्रंप ने चीन को कमज़ोर करने के लिए अमेरिका में चीनी सामान का बाज़ार छीना था, जिसका बदला लेने के लिए शी जिनपिंग ने 3 दिसंबर 2024 को चिप और सेमीकंडक्टर बनाने में इस्तेमाल होने वाला मैटीरियल अमेरिका को बेचने पर पाबंदी लगा दी.
ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले अमेरिका पर चीन के हमले की दूसरी किस्त जारी हुई. अमेरिका में सेमीकंडक्टर के साथ-साथ कंप्यूटर, मोबाइल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर बनाने वाली एक बड़ी कंपनी है एनविडिया. चीन ने इस कंपनी के खिलाफ जांच शुरू कर दी. चीन ने ये चेतावनी भी अमेरिका को दे दी कि ट्रंप के टैरिफ वॉर से अगर अमेरिका में महंगाई बढ़ी, तो शी जिनपिंग को मत कोसना.
मैक्सिको, कनाडा और चीन… अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्तों के लिहाज से यही टॉप थ्री देश हैं. ट्रंप इन तीनों के साथ टैरिफ युद्ध छेड़ने जा रहे हैं. इन तीनों देशों के उत्पाद पर टैक्स बढ़ेगा, तो अमेरिका में उन उत्पादों की कीमत बढ़ेगी. ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में महंगाई रोकने का अपना वादा कैसे पूरा करेंगे?
रिपोर्ट- टीवी9 भारतवर्ष ब्यूरो.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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