पैरालेल सिनेमा के मसीहा कहे जाने वाले श्याम बेनेगल अब इस दुनिया में नहीं रहे. 23 दिसंबर को उनके निधन की खबर आई, जिसने तमाम चाहने वालों का दिल तोड़ दिया. ‘मंथन’, ‘निशांत’, ‘जुनून’ जैसी फिल्मों को डायरेक्ट करने वाले बेनेगल का नाम उनके उम्दा काम की वजह से हमेशा सिनेमा की दुनिया में अमर रहेगा.
श्याम बेनेगल ने अपने करियर में कमर्शियल फिल्में न बनाकर हमेशा पैरालेल सिनेमा पर अपना फोकस रखा. उनकी शायद ही कोई ऐसी फिल्म है, जो सिनेमा प्रेमियों को पसंद न हो. लेकिन श्याम बेनेगल ने एक बार खुद इस बारे में बात की थी कि उनकी वो कौन सी फिल्म है, जो उन्हें पसंद नहीं है.
श्याम बेनेगल को अपनी कौन सी फिल्म नहीं पसंद?
अनफिल्टर्ड विद समदीश को दिए एक इंटरव्यू में जब उनसे ये सवाल पूछा गया था कि क्या उनकी कोई ऐसी फिल्म है, जो उन्हें पसंद नहीं है. तो उन्होंने जवाब में कहा था सारी फिल्में. जब उनसे इसके पीछे की वजह के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने बेहद सादगी भरा जवाब दिया था.
श्याम बेनेगल का दिल जीतने वाला जवाब
श्याम बेनेगल ने कहा था, “आपने जो काम किया है, उससे आप कैसे संतुष्ट हो सकते हैं. ऐसा नहीं है कि मैं दुखी हूं. आप ज्यादातर लोगों की तुलना में थोड़ा अधिक आलोचनात्मक होते हैं, क्योंकि आपने जो काम किया है आप उसकी खामियों को जानते हैं. आप जानते हैं कि आपने क्या किया है. और आप ये भी जानते हैं कि आप कहां लड़खड़ाए हैं. कहां आप वो करने में सफल नहीं हुए, जो आप करना चाहते थे, और फिर आपने इसे छिपा लिया.”
श्याम बेनेगल का ये जवाब अपने आप में दिल जीतने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस इंसान को पैरालेल सिनेमा का मसीहा कहा जाता है, जब सरकार को टीवी पर भारत का इतिहास दिखाने का विचार आता है तो जिस इंसान का नाम चुना जाता है और वो आदमी ‘भारत एक खोज’ जैसी ऐतिहासिक सीरीज का निर्माण कर देता है, वो सादगी भरे लहजे में अपने काम में ही खामियों की बात करता है.
श्याम बेनेगल की पहली फिल्म
श्याम बेनेगल ने साल 1974 में आई फिल्म ‘अंकुर’ से बतौर डायरेक्टर अपना करियर शुरू किया था. खास बात ये रही कि इस फिल्म के रिलीज के 2 साल बाद ही साल 1976 में उन्हें भारत सरकार की तरफ से पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. 1991 में उन्हें पद्म विभूषण भी मिला. 2005 में उन्हें दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से भी नवाजा गया था
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