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हजारों की संख्या में उमड़े श्रद्धालु
संकीर्तन पर भक्ति की उमंग में डूबे भक्तजन
लंका में सीता जी की व्यथा की कथा सुन श्रद्धालुओं की बही अश्रुधारा
आगरा। जैसे ही हनुमान जी ने सीता के समक्ष मुदिरा डालने का विचार किया रावण पहुंच गया। भक्ति और भक्त के बीच विघ्न बनकर रावण खड़ा था। इसलिए शुभ कर्मों को तुरन्त कर डालो। रावण भी भक्ति का पुजारी है, चाहता है कि भक्ति स्वरूपा जानकी जी की कृपादृष्टि मिल जाए। परन्तु उसका रास्ता गलत था। भक्ति लोभ, लालच, भय से नहीं विनम्रता, कृपा और समर्पण से आती है। रावण लोभ का प्रयोग करता है। लोभ से दुनिया तो मिल सकती है लेकिन दीनानाथ नहीं मिल सकते। सम्पत्ति भोग मिल सकते है परन्तु भक्ति और भजन समर्पण, हाथ जोड़ने और शीश झुकाने से मिलता है। जुगनू के प्रकाश से कमल नहीं खिलते। रावण अपनी सभी रानियों को सीता जी की दासी बनाने को तैयार था परन्तु गलत रास्ते से भक्ति को न पा सका।
संत श्री विजय कौशल जी महाराज ने कहा कि रावण में हजार दुर्गुण होने पर भी कुछ विशेषताएं थीं। रावण कभी सीता से जी अकेले और रात मिलने नहीं आया। सीता मैया का भ्रम मिटाने के लिए हनुमान जी द्वारा कहे रामदूत में मातु जानकी, सत्य शपथ करुणानिधान की दोहे का वर्णन करते हुए कहा कि करुणानिधान नाम श्रीराम को माता गौरी ने दिया था। जब सीता जी उपवन में पति स्वरूप में श्रीराम का मांगने पहुंची, तब माता गौरी ने, मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सांवरो, करुनानिधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो.. का आशीर्वाद दिया। लंका दहन की कथा पर कथा परिसर में जयश्रीराम और वीर बजरंगी के जयकारे गूंजने लगे। वहीं श्रीराम को हनुमान जी द्वारा लंका में माता सीता के दुखों के वर्णन की कथा में हर भक्त की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। आरती के उपरान्त कथा ने विश्राम लिया।
इस अवसर पर मुख्य रूप से मुख्य यजमान सलिल गोयल, उषा गोयल, घनश्यामदास अग्रवाल, राकेश अग्रवाल, महेश गोयल, महावीर मंगल, पीके भाई, रूपकिशोर अग्रवाल, महेश गोयल, विजय गोयल, अशोक हुंडी, कमलनयन फकेहपुरिया, मुरारीप्रसाद अग्रवाल, उमेश शर्मा, हेमन्त भोजवानी, प्रशान्त मित्तल, सरजू बंसल आदि उपस्थित थे।
सत्ता के लोभी लात ही खाते हैं…संतश्री विजय कौशल जी महाराज ने लंका में सीता मैया की खोज को पहुंचे हनुमान जी के विभिषण से हुई भेट का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि सत्ता के लोभी इसलिए लाते खातें हैं क्योंकि वह सत्ता का लोभ नहीं छोड़ पाते। देखि चहु जानकी माता, तब हनुमंत कहो सुन भ्राता… दोहे के माध्यम से बताया कि जो विभिषण घर में प्रतिदिन सत्यनारायण कथा कहता था वह सीता जी के रूप में लंका में कैद माता लक्ष्मी से एक भी दिन मिलने नहीं गया। सत्ता के लोभ में आत्मा मर जाती है। अन्याय का विरोध नहीं कर पाते। शुभ आचरण वाणी में नहीं जीवन के चरित्र में दिखना चाहिए। वहीं रावण बहुत राजनीतिज्ञ था। दुनिया के मंदिर उखाड़ रहा था रावण लेकिन विभिषीण के मंदिर का शिलान्यास क्योंकि वह जानता था एक दिन विभीषण ही मुझे मरवाएगा, इसलिए उसे प्रसन्न रखने का प्रयास करता है। रावण जैसे बुरे लोग अच्छे आवरण में खुद को सुरक्षित रखते हैं। डकैत डकैतियां डालते थे लेकिन जहां शरण लेते थे वहाँ सहायता करते थे।
550 वर्ष की सतत गुलामी का अंत हुआ इस वर्षइस वर्ष शुभ घड़ी प्रकट हुई है। दुनिया के समस्त हिन्दुओं के स्वाभिमान को जगाने वाली एक अलौकिक घटना घटित हुई है। अयोध्या में श्रीराम के भव्य निमार्ण के बाद हिन्दुओं ने स्वाभिमान की सांस की ली है। 550 वर्षों तक संघर्ष, बलिदान, रक्त बहाया गया, हिन्दुओं ने बहुत बड़ी पीड़ा और अपमान को सहा है। इसलिए इस बार कथा में भगवान का राजतिलक बहुत भव्यता के साथ वर्णन होगा।
जीवन में शुभता के लिए संत का प्रवेश आवश्यकभगवत कथा की महिमा है कि जीवन के दुख भाग जाते हैं और जीवन के सुख जाग जाते हैं। जब तक जीवन में संत का प्रवेश न हो तो जीवन शुभता और दिव्यता की ओर नहीं बढ़ सकता है। पापी भी तूने तार दिए, जय-जय गंगा मैया, वीर हनुमान कपि बलवाना, राम नाम रसियो रे, प्रबु मन बसियो रे…, जय बजरंगी, जय हनुमा, जीवन है तेरे हवाले मुरलिया वाले…, राधा रामकथा में आए जइयो, बुलाई रही जनता प्यारी…, जैसे भजनों पर भक्ति के खूब रंग बिखरे।
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