दिल्ली शिक्षा मॉडल की चर्चा दूर तक
दिल्ली शिक्षा के क्षेत्र में मॉडल स्टेट बन चुका है. झारखंड की सरकार दिल्ली की तर्ज पर शिक्षा मॉडल अपनाने जा रही है. राजस्थान से लेकर तेलंगाना और विभिन्न दूसरे राज्यों से भी नेताओं ने दिल्ली मॉडल को सीखने की बात कही. दुनिया भर में दिल्ली के एजुकेशन मॉडल और इसकी सफलता की चर्चा रही. देश के 10 टॉप के सरकारी स्कूलों में 5 दिल्ली से हैं. यह निश्चित रूप से दिल्ली के राजनीतिक नेतृत्व को अपनी पीठ थपथपाने का मौका देता है.
बीते 10 साल में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव को अंजाम दिया. इसे राजनीतिक चर्चा का विषय भी बनाया लेकिन इससे ज्यादा राजनीतिक उपलब्धि का विषय बनाया है. शिक्षा पर केन्द्रीय बजट जीडीपी करीब 6 फीसदी है जबकि दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार अपने कुल बजट का करीब 25 फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती है. इससे ही फर्क नजर आता है.
सरकारी स्कूलों के बच्चे जा रहे विदेश
सरकारी स्कूल के बच्चे विदेश जाकर सीखें. ट्रेनिंग लें. यह सपना हुआ करता था. इस सपने को टीम केजरीवाल ने पूरा कर दिखाया है. पिछले महीने नवंबर में 30 बच्चे फ्रेंच सीखने फ्रांस की राजधानी पेरिस गए और लौटे. शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए इससे पहले शिक्षकों को भी ट्रेनिंग के मकसद से विदेश भेजा गया.
ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर से दिल्ली कंपीट कर सके ताकि विश्वस्तरीय प्रतिभाएं दिल्ली के सरकारी स्कूलों से तैयार हों, इस पर दिल्ली के नए एजुकेशन मॉडल में काम हुआ. जॉब सीकर के बजाए जॉब प्रोवाइडर बनाने के लिए छात्र-छात्राओं को तैयार किया जाने लगा. बिजनेस ब्लास्टर योजना की सोच में यही प्रेरणा रही. 11वीं-12वीं के स्टूडेंट्स को 3 से 4 की ग्रुप बना कर 2-2 हज़ार रुपए की सीड-मनी दी जाती है. बिजनेस आइडिया डेवलप होने पर अतिरिक्त 25 हज़ार की मदद दी जाती है. स्कूली बच्चों के ऐसे कई ग्रुप आज अपना व्यवसाय आगे बढ़ा चुके हैं. कई बिजनेस ग्रुप का तो करोड़ों का टर्न ओवर है और वे दर्जनों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. ऐसी ही व्यवस्था यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं के लिए भी शुरू की गई है.
बगैर खर्च किए मिल रही सुपर सुविधाएं
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जहां विश्वस्तरीय लैब, खेल की सुविधाएं और दूसरी व्यवस्थाएं हैं वहीं खर्च शून्य है. स्टूडेंट्स की फीस फ्री, यूनिफॉर्म फ्री, किताबें फ्री जबकि यूपी, एमपी, महराष्ट्र जैसे राज्यों के सरकारी स्कूलों में औसतन सालाना खर्च 20,000 रुपए है. राष्ट्रीय औसत से ज्यादा खर्च छात्रों पर दिल्ली कर रहा है.
अभिभावक खुश हैं कि शिक्षा पर खर्च अब उनकी बचत बन चुकी है. दो बच्चों की पढ़ाई पर सरकारी स्कूलों में जहां खर्च 40 हजार रुपये कम से कम आते थे, उसकी बचत हुई. केंद्रीय और नवोदय विद्यालयों में भी यह बचत 2 लाख रुपये सालाना तक है. अगर दस साल में हुई बचत को देखें तो अभिभावकों ने निश्चित रूप से दो बच्चों पर सरकारी स्कूलों में 4.8 लाख से लेकर केंद्रीय और नवोदय विद्यालयों में 24 लाख रुपये तक बचाए हैं.
निजी स्कूलों की मनमानी रुकी, ‘मिशन एडमिशन’ भी रहा सफल
दिल्ली के सरकारी स्कूलों की सेहत में सुधार तो हुआ ही है साथ ही प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने की कोशिश दिल्ली सरकार ने की है. दिल्ली शिक्षा मंत्रालय की ओर दो टूक आदेश जारी हुआ कि सरकार द्वारा आवंटित जमीन पर बने स्कूल हों या निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूल- बगैर शिक्षा मंत्रालय की मंजूरी के फीस नहीं बढ़ाई जा सकती. ये फीस साल में सिर्फ एक बार यानी सेशन शुरू होने पर ही बढ़ाई जा सकती है. यही वजह है कि सेशन के बीच में फीस बढ़ाने पर कई स्कूलों पर कार्रवाई भी की गई है. ऐसी व्यवस्था सिर्फ दिल्ली में ही है, दूसरे राज्यों में नहीं.
दिल्ली में नर्सरी एडमिशन अब उतना मुश्किल नहीं रहा जितना आम आदमी पार्टी की सरकार से पहले था. सरकार ने प्राइवेट स्कूलों में दाखिले के लिए भी गाइडलाइंस बना दी है, जिसका पालन नामी-गिरामी स्कूलों को भी करना पड़ता है. इसलिए मनमाने तरीके से मोटी रकम वसूल कर एडमिशन पर रोक लगी है जबकि एनसीआर और दूसरे महानगरों की स्थिति बदतर है जहां एडमिशन के नाम पर लाखों वसूले जाते हैं. ये लाखों की बचत अभिभावक अप्रत्यक्ष रूप से महसूस कर रहे हैं. मिशन एडमिशन ने अपना मकसद जरूर पूरा किया है.
शिक्षा क्रांति की दुनिया भर में धूम
दिल्ली की शिक्षा क्रांति की पूरी दुनिया कायल है. यही वजह है कि अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित देशों के शिक्षाविद और शख्सियत इसका मुआयना वक्त-वक्त पर करते रहे हैं. हाल ही में ब्रिटेन के कैंब्रिज के मेयर बैजू थिट्टाला दिल्ली के एंड्र्यूज गंज स्थित डॉ. बी.आर. अंबेडकर स्कूल ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस के छात्रों से मिले.
परफॉर्मिग एंड विजुअल आर्ट्स स्पेशलाइजेशन के इस स्कूल में छात्रों की कलाकृतियां छात्रों के सर्वांगीण विकास की ओर इंगित करता है. मेयर थिट्टाला ने कहा कि “दिल्ली के सरकारी स्कूलों में काफी सकारात्मक बदलाव आए हैं. यहां बच्चों को मिल रही सुविधाएं, शिक्षकों द्वारा पढ़ने-पढ़ाने का इनोवेटिव तरीका काफी सराहनीय है.” दिल्ली में 31 स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस स्कूल हैं, जो संगीत, कला, खेल, साइंस-टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्र में नित नए आयाम स्थापित कर रहे हैं.
फ्री शिक्षा और उसकी लोकप्रियता ने शिक्षा के दिल्ली मॉडल को वैश्विक ख्याति दी है. सहूलियत देकर बचत कराने की लोकप्रिय सियासत से आम लोगों को फायदा हुआ है. अकेले शिक्षा के क्षेत्र से अभिभावकों को सालाना लाखों की बचत ने भी आम लोगों की मदद की है. यही स्थिति बिजली से लेकर परिवहन और चिकित्सा तक में है. यही वजह है कि हर परिवार को बीते 10 साल में 30 लाख से ज्यादा की बचत हुई है. यह आम आदमी पार्टी का दावा भी रहा है और इसे कोई भी अंकगणीतीय अभ्यास से समझ भी सकता है और समझा भी सकता है.
-रंजन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार (ओपिनियन आर्टिकल)
– India Samachar
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