‘मुफासा : द लायन किंग’ जल्द ही रिलीज होने वाली है. रिलीज से पहले फिल्म देखने का मौका मिला, तो फिल्म देख डाली. वैसे तो अंग्रेजी फिल्में ओरिजिनल फॉर्मेट में देखना मैं ज्यादा पसंद करती हूं, लेकिन इस बार बात किंग खान और उनके किंगडम की थी. सिर्फ शाहरुख खान ही नहीं बल्कि आर्यन खान और अबराम ने भी इस फिल्म के लिए डबिंग की थी. साथ में ‘पुष्पा’ की हिंदी आवाज बनकर दिल जीतने वाले श्रेयस तलपड़े भी इसमें शामिल थे, तो बस ‘मुफासा : द लायन किंग’ हिंदी में देख डाली.
फिल्म मजेदार है. मेरे जैसे एनिमल लवर के लिए जिसने खुद के घर में ही एक छोटा एनिमल किंगडम (पालतू जानवरों का) बनाया है, ये फिल्म शुरुआत से लेकर आखिर तक ‘पैसा वसूल’ फिल्म है. लेकिन आम जनता के पॉइंट ऑफ व्यू से बात की जाए तो उनके लिए ये एक प्रेडिक्टेबल कहानी हो सकती है. लेकिन बच्चे और एनिमेटेड फिल्म्स को पसंद करने वाले इसे बेहद एन्जॉय करेंगे, क्योंकि फिल्म में जिस तरह से एनीमेशन का इस्तेमाल किया गया है वो सच में नायाब है. लेकिन मेरी सिर्फ एक ही समस्या है कि मुझे मुफासा से ज्यादा टाका ‘लायन किंग’ की कहानी का हीरो लगा, वो तो शाहरुख खान की आवाज का जादू चल गया और फिर एक बार ‘मुफासा’ मेरी नजरों में हीरो बन गया, वरना तो मुफासा बिल्कुल ‘अनुपमा’ के पति जैसा यानी सेकंड लीड से कम नहीं था.
कहानी
अगर आपका दोस्त आपकी कई बार जान बचाए. आपके साथ उसकी मां का प्यार बांटे. आपको उसके परिवार का हिस्सा बना दें और इतना सब कुछ करने के बाद भी क्या आप प्यार के चक्कर में उस दोस्त की दोस्ती को भूल जाएंगे? ‘मुफासा द लायन किंग’ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. कहानी की शुरुआत होती है सिंबा से. सिंबा (आर्यन खान की आवाज) का परिवार बड़ा हो रहा है और इसलिए वो अपनी बेटी कियारा को अपने दोस्त टीमोन (संजय मिश्रा की आवाज) और पुम्बा (श्रेयस तलपड़े) के पास छोड़कर नाला के पास जाता है. यहां अपने पापा के जाने के बाद आए हुए तूफान से डर रही कियारा को उसके दादाजी मुफासा के दोस्त रफीकी (मकरंद देशपांडे) एक कहानी सुनाते हैं. ये कहानी सिर्फ मुफासा की ही नहीं ‘स्कार’ की भी है. अब स्कार और मुफासा दुश्मन क्यों बनें, टाका कौन था और मुफासा के बचपन की कहानी क्या थी? ये जानने के लिए आपको थिएटर में जाकर ये फिल्म देखनी होगी.
कैसी है ये फिल्म
कभी आपने जानवरों के एक्सप्रेशंस देखे हैं? अगर आप सड़क के पास भटक रहे कुत्ते को बहुत ही बारीकी से देखोगे, तो उसके चेहरे पर एक कष्ट की भावना नजर आती है. अगर आप उसे जानते हो, तो वो कुछ देर के लिए आपके सामने खुशी जाहिर करता है. लेकिन कुछ समय बाद फिर से उसके चेहरे पर तकलीफ से भरे एक्सप्रेशंस आपको नजर आते हैं. यही कष्ट, परेशानी वाले एक्सप्रेशन आपको टाका (मयांग चैंग की आवाज) के चेहरे पर दिखाई देते हैं. कहने का सारांश ये है कि फिल्म का एनीमेशन इतना कमाल का है. छोटी सी कियारा के एक्सप्रेशन हो या फिर मुफासा और टाका का रिश्ता. फिल्म का एनीमेशन देखकर आप उसमें खो जाते हैं. निर्देशक बैरी जेन्किन्स ने लॉन्ग शॉट से सिनेमेटोग्राफर जेम्स लैक्सटेन के मदद से जो जंगल, खाई, तूफान और पानी के नीचे के विजुअल दिखाए हैं, उनसे प्यार हो जाता है.
फिल्म में बाढ़ का एक सीन है. जहां मुफासा फंस जाता है और उसके माता-पिता उसे बचाने की कोशिश करते हैं, वैसे तो शेर तैरना जानते हैं. लेकिन शेर का छोटा बच्चा पानी के सामने टिक नहीं पाता, मुफासा के साथ हुआ ये हादसा बहुत ही डिटेलिंग के साथ हमारे सामने पेश किया गया है. डर का इमोशन भी इन किरदारों पर सटीक बिठाया गया है, वरना तो अक्सर एनिमेटेड फिल्म में किरदार डरने की ओवरएक्टिंग करते हुए नजर आते हैं. फिल्म के एनीमेशन के साथ-साथ हिंदी डबिंग भी कमाल की है.
फिल्म की हिंदी डबिंग
शाहरुख खान की वजह से सेकंड लीड लगने वाले मुफासा को हम ‘लायन किंग’ मान लेते हैं. लेकिन दुख सिर्फ इस बात का है कि टाका को ‘कुछ कुछ होता है’ वाले सलमान खान जैसी दुआएं भी नहीं मिलतीं. लेकिन शाहरुख खान की तरह मयांग चैंग भी शानदार हैं. अबराम ने इस फिल्म में आर्यन से ज्यादा काम किया है. आर्यन की आवाज में एक नयापन है. लेकिन इस फिल्म में सिंबा के बहुत कम डायलॉग हैं. सिंबा के मुकाबले छोटे मुफासा का स्क्रीन टाइम ज्यादा है और अबराम ने भी किसी प्रोफेशनल की तरह इस किरदार की डबिंग की है. इस किरदार के लिए जो क्यूटनेस जरूरी है वो उनकी आवाज में सुनाई देती है.
मकरंद देशपांडे ने रफीकी के किरदार में वही किया है, जो वो अपने हर किरदार में करते हैं और वो है ‘कमाल’. 10 साल पहले इसी समय (17 दिसंबर) को रिलीज हुई आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘स्वदेस’ में ‘यू ही चला चल राही’ गाने में बिना बोले उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया था, इस बार बोलकर दिल जीत लिया है. पुष्पा की दमदार आवाज निकालने वाले श्रेयस तलपड़े पुम्बा जैसी आवाज भी निकाल सकते हैं, इस पर आप यकीन नहीं कर पाओगे. उनकी और संजय मिश्रा की ट्यूनिंग कमाल की है.
देखें या नहीं देखें
भले ही मुझे इस फिल्म के विलन को लेकर बहुत बड़ा इश्यू ये है कि हीरो से ज्यादा मेरे टिश्यू इसपर खर्च हो गए. लेकिन कुल मिलाकर फिल्म अच्छी है, एंटरटेनिंग हैं और हम जिन किरदारों से प्यार करते हैं, उनमें से कोई भी नहीं मारता. यानी क्रिसमस पर देखी जाए, ऐसी मजेदार फिल्म थिएटर में आ गई है और इसे पूरे परिवार के साथ थिएटर में जाकर देखा जा सकता है और मेरे नजरिये से देखेंगे तो टाका भी ‘हीरो’ ही नजर आएगा.
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