उत्तर प्रदेश के संभल के दीपा सराय में प्रशासन ने 46 साल पुराने शिव मंदिर को खुलवाया है. मंदिर की प्रशासन ने साफ-सफाई करवाई है. सांप्रदायिक तनाव की वजह से साल 1978 से इस मंदिर में ताला लटका हुआ था. 1978 में संभल हिंसा की आग में जल उठा था. हिंसा में 184 से अधिक लोगों की जान चली गई. पुलिस के दस्तावेजों में संभल दंगे की वो कहानी आज भी मौजूद है, जिसे जानने के बाद रुह कांप जाएगी.
वर्ष 1978 में होली का त्योहार 25 मार्च को मनाया जाना था. होली के अवसर पर दो स्थानों को लेकर संभल के दोनों सम्प्रदायों में तनाव था. एक जगह होली जलने के स्थान पर किसी मुस्लिम दुकानदार की ओर से खोखा रख दिया गया था, जबकि दूसरी जगह पर एक चबूतरा बना लिया गया था. लकड़ी का खोखा होली जलने के समय हटवा दिया गया और होली का त्योहार सकुशल सम्पन्न हुआ.
दंगों से एमजीएम कॉलेज का कनेक्शन
एमजीएम कॉलेज जोकि नगर पालिका संभल के पास था, कॉलेज के संविधान में यह व्यवस्था थी कि कोई भी व्यक्ति या संस्था दस हजार रुपये का दान देकर प्रबंध समिति में आजीवन सदस्य के रूप में रह सकता था. स्थानीय ट्रक यूनियन की ओर से मंजर शफी के नाम से दस हजार रुपये का चेक कॉलेज कोष में भेजा गया, जिसकी रसीद मंजर शफी के नाम से थी. क्योंकि इस आधार पर मंजर शफी कॉलेज की प्रबन्ध समिति में आजीवन सदस्य होना चाहता था, परन्तु तत्कालीन उपजिलाधिकारी जोकि प्रबन्ध समिति के उपाध्यक्ष थे, द्वारा मंजर शफी को मान्यता नहीं दी गयी, जिस कारण से मंजर शफी कॉलेज प्रबन्धन से नाराज था.
होली पर महात्मा गांधी डिग्री (एम.जी.एम) कॉलेज (तहसील से नीचे राजकीय कन्या विद्यालय था), जो आज इंटर कॉलेज चौधरी सराय है, में सभी छात्र-छात्राओं को टाइटल दिये गए थे. इसमें मुस्लिम लड़कियों को भी टाइटल दिए तो मंजर नाराज हो गया. ततारी और मंजर ने बाजार बंद करवाने का प्रयास किया तो प्रमोद चाय वाले ने दुकान बंद करने से मना कर दिया. फिर मंजर ने पकोड़े का थाल गिरा दिया.
जब मर्डर की उड़ी अफवाह और भड़की हिंसा
अफवाह दीपा सराय में यह उड़ाई गई कि मंजर को मार दिया गया. इसमें तत्कालीन उपजिलाधिकारी रमेश चन्द्र माथुर तहसीलदार कार्यालय में भाग गए, जिससे उनकी जान बची. बाजार में भगदड़ मच गई तो मामा बनवारी लाल बाजार के ग्रामीण हिंदुओं को अपने साले मुरारी लाल की फड़ में ले गये ताकि उनको बचा सकें. इनके छिपे होने की जानकारी इनके मित्र कुछ मुस्लिम आढ़तियों को थी, जिन्होने छिपे होने की सूचना दी.
कथित मुस्लिम समाज की भीड़ ने पूरी सब्जी मंडी और लगभग 40 दुकानें हिंदुओं की जलाई और लूटपाट की, किन्तु डॉ शफीउर्रहमान बर्क के दबाव में हिंदुओं से भी अधिक मुस्लिमों को बिना दुकानें जले मुआवजा दिलाया.इसमें 24 हिंदुओं को काटा. फिर गन्ने की खोई और टायर के साथ ढेर लगाकर जला दिया. उस समय ऐसा कोई गांव नहीं था, जिसका व्यक्ति मरा नहीं था और कई दिनों तक जंगल में लाशें मिली थीं. फरहत अली, जिलाधिकारी ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.
जिनकी मदद की, उन्होंने ही जान ली
जब फरहत अली को हिंदुओं ने घेरा और नाना जी देशमुख को फोन किया तो शाम तक पुलिस आई. तब तक दंगे में 184 से अधिक लोगों की जान जा चुकी थी. इन मृतात्माओं का अधिकतर हिंदुओं ने कपड़े का पुतला बनाकर बृजघाट में संस्कार किया. मामा बनवारी लाल ने कई मुस्लिमों को उधारी दे रखी थी. मामा बनवारी लाल को उनकी पत्नी और पुत्र ने रोका था कि यहीं दंगा हो रहा है. आप मत जाओ. उन्होने कहा कि सारे मुस्लिम मेरे मित्र और भाई जैसे हैं और मेरे साथ ही काम करते हैं. मुझे कुछ नहीं होगा. फिर फड के अंदर बनवारी लाल गोवल को मुस्लिमों ने कहा कि “तुम इन पैरों से पैसे लेने आये हो और उनके पैर काट दिये.”
फिर उपद्रवी मुस्लिमों ने उनसे कहा कि “तुम इन हाथों से पैसे लोगे और उनके हाथ भी काट दिये और उसके पश्चात उनकी गर्दन काट कर उनको मौत के घाट उतार दिया. इससे पहले मामा बनवारी लाल ने कहा कि “मुझे काटो मत, गोली मार दो. परन्तु उन्होंने उनको गोली न मारकर उनकी गर्दन को काट कर मार डाला और 24 हिंदुओं को एक साथ ढेर लगाकर जला दिया.
भाई को चाकू से गोद दिया
इस पूरी घटना को हरद्वारी लाल शर्मा और सुभाष चन्द्र रस्तोगी ने देखा था, क्योंकि यह दोनों टांड पर ड्रम में तिरपाल से छिप गये थे. इन दोनों लोगों ने हरद्वारी लाल के सगे भाई जो कि हाईस्कूल में पढ़ता था, को मुस्लिम लोगों द्वारा काटने और उसको चाकू से गोद कर मारते हुए देखा था. यह लोग उसे मुकदमे में गवाह भी रहे. इसके मुख्य अभियुक्त इरफान, वाजिद, जाहिद, हथौड़ी का शाहिद, कामिल , अच्छन, मंजर आदि बनाए गए.
सन 2010 में कोर्ट में गवाह होस्टाइल हो गए और मुकदमे को बंद कर दिया गया. मामा बनवारी लाल के परिवार पर डॉक्टर शाफिकुर रहमान वर्क द्वारा भी दबाव डाला गया था. माननीय न्यायालय ने यह लिखा था कि मैं सोच भी नहीं सकता ,ऐसे लोगों को फांसी नहीं हो रही है और गवाह होस्टाइल हो रहे हैं.
हिंदू परिवार पलायन कर गया
बनवारी लाल का परिवार 1995 के आसपास संभल से पलायन कर गया. मामा बनवारी लाल के बेटे नवनीत गोयल के साझेदार प्रदीप अग्रवाल के भाई की मियां सराय के वसीम ने गोली मारकर हत्या कर दी और वहां उपस्थित लोगों से उसने कहा कि उसके विरुद्ध अगर किसी ने भी फिर करवाई तो उसको भी गोली मार दी जाएगी और उसे पर कोई भी फिर नहीं हुई.
1978 के प्रकरण का परीक्षण माननीय ए डी जे वन मुरादाबाद न्यायालय में निर्णय किया. निर्णय में 1978 के चार प्रमुख गवाहों बाबूराम शर्मा , ब्रजानन्द वार्ष्णेय , सतीश गर्ग और हरद्वार रसोईया ने शपथ पत्र दिए जाने के बावजूद किसी दबाव, प्रलोभन के अंतर्गत शपथ पत्र देकर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 164 के तहत क्यों ना उनके विरुद्ध मुकदमा आयोजित किया जाए. माननीय न्यायालय में साक्ष्य के अभाव में 48 अभियुक्त बरी कर दिए गए.
टीचर की बेटी के साथ रेप किया
1978 के दंगे में ही एक शिक्षक जिनका नाम खोलना उचित नहीं है, उनकी पत्नी और बेटी को मंजर शफी ने उठा लिया था. बेटी को बलात्कार कर छोड़ा गया, जबकि उनकी पत्नी को हिंदुओं ने छुड़ा लिया. बाद में उस पर कोई कार्यवाई नहीं हुई और शिक्षक का परिवार भी पलायन कर गया.
यहां सबसे प्रमुख बात ये है कि इसी दंगे की आड़ लेकर डॉ शफिक़ुर रहमान बर्क ने जामा मस्जिद/ हरिहर मंदिर में जाने से हिंदुओं को प्रतबंधित कर दिया. इससे पहले हिंदू इस परिसर के मध्य बने हवन कुंड के चारों ओर कीर्तन करते थे. आज इस पवित्र हवन कुंड का प्रयोग वजू के लिए किया जा रहा है.
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