संगीत की नगरी ग्वालियर में प्रतिष्ठित तानसेन समारोह का शताब्दी वर्ष है. जिसको लेकर इस वर्ष भी भव्य ‘तानसेन समारोह’ का आयोजन किया जा रहा है. देश-विदेश से कई कलाकार इस संगीत समारोह में अपनी प्रस्तुतियां देने पहुंचते हैं. इस दौरान जितनी चर्चा संगीत सम्राट मियां तानसेन की होती है उतनी ही चर्चा उनके मकबरे के पास शान से खड़े 600 साल पुराने इमली के पेड़ की भी की जाती है. आखिर इस इमली के पेड़ में ऐसी क्या खास बात है? चाहे देश के नामी गिरामी संगीत साधना कर रहे कलाकार हों या फिर विदेश से आने वाले संगीतकार हों, सभी इस इमली के पेड़ की पत्तियां खाने खिंचे चले आते हैं. तानसेन मकबरे के आस-पास रहने वाले लोग भी गले में खराश और खांसी होने पर इस पेड़ की पत्तियों को अपने घर ले जाते हैं.
संगीत सम्राट तानसेन और इस इमली के पेड़ के बीच की कहानी भी काफी रोचक है. इतिहास की जानकारी रखने वाले बताते हैं कि संगीत सम्राट तानसेन का जन्म ग्वालियर में हुआ था. जब वह 5 साल के थे तब उन्हें बोलने में दिक्कत आने लगी थी. इस बात को लेकर तानसेन के माता-पिता काफी परेशान रहने लगे थे तब किसी ने उन्हें सलाह दी कि वह उस्ताद मोहम्मद गौस के पास तानसेन को ले जाएं. जब तानसेन को मोहम्मद गौस के यहां लाया गया तो उन्होंने ही तानसेन को इस पेड़ के पत्ते खाने के लिए दिए थे. तानसेन ने जैसे ही इमली के पत्ते खाए, तो कहा जाता है कि उनकी आवाज ठीक हो गई. साथ ही वह इतनी सुरीली हो गई कि तानसेन को राजा अकबर के दरबार के नवरत्नों में शामिल किया गया.
इसी पेड़ के नीचे रियाज करते थे तानसेन
इमली के इसी पेड़ के नीचे बैठकर तानसेन घंटों संगीत रियाज किया करते थे. इसी वजह से उनके संगीत में अलग ही निखार आया और आज भी देश और दुनिया उन्हें महान संगीतकार कहती है. यही वजह है कि यह इमली का पेड़ भी संगीत प्रेमियों और कलाकारों के बीच लोकप्रिय हो गया. देश-विदेश से संगीतज्ञ ग्वालियर के हजीरा इलाके में स्थित तानसेन के मकबरे के चबूतरे पर एक कोने में खड़े होकर इस इमली के पेड़ को देखने और इसकी पत्तियों को चबाने के साथ ही अपने साथ ले जाने यहां तक खिंचे चले आते हैं.
धरोहर से कम नहीं ये पेड़
इसी वजह से यह किसी धरोहर से कम नहीं है. दूर-दराज इलाकों से आने वाले लोग भी गले में खराश होने पर इस इमली के पेड़ की पत्तियों का उपयोग करते आए हैं. ऐसे में इस पेड़ के अस्तित्व को खतरे में देखते हुए इसकी सुरक्षा को लेकर पेड़ के चारों तरफ करीब 10 फीट ऊंची लोहे की जालियां लगा दी गई है. इस ऐतिहासिक इमली के पेड़ को कोई नुकसान न पहुंचा सके.
100 साल पहले फिर जिंदा हुआ पेड़
इमली के इस पेड़ के बारे में यह भी बताया जाता है कि 100 साल पहले यह पेड़ बुजुर्ग होने के कारण गिर पड़ा था. बाद में इसी पेड़ की जड़ों से धीरे धीरे दोबारा नए पत्ते और टहनियां उगने लगी. जो किसी चमत्कार से कम नहीं माना जाता है. ऐसे में अब संगीत की नगरी ग्वालियर में संगीत सम्राट तानसेन की याद में लोग उनके मकबरे पर बड़ी सख्या में आते हैं, साथ ही वे इस इमली के पेड़ के भी दीदार करना नहीं भूलते है.
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