सोवियत संघ का भले ही विघटन हो चुका हो. लेकिन पुतिन अपना प्रभाव उन हिस्सों पर आज भी रखते हैं, जो कभी संघ में शामिल थे. इन देशों में अंदरूनी संघर्ष की वजह भी यही है. एक पक्ष यूरोप की ओर आकर्षित है, तो दूसरा रूस की तरफ. जॉर्जिया में चुनावी प्रक्रिया के बीच शुरू हुआ संघर्ष का कारण भी यही है. अब ये संघर्ष गृहयुद्ध की दिशा में बढ़ रहा है. आखिर स्थिति इतनी कैसे बिगड़ी?
जो लोग नहीं चाहते थे, वही हुआ और जॉर्जिया में विरोध का नया दौर शुरू हो गया. जॉर्जिया की राजधानी त्बिलिसी में एक महीने से भी ज्यादा समय से सड़कों पर विद्रोह की आग भड़क रही है. ये विद्रोह नई सरकार के खिलाफ हो रहे. प्रदर्शनों को और ज्यादा राष्ट्रपति चुनावों ने और भड़का दिया है.
जॉर्जिया की जमीन पर दहक रही विरोध प्रदर्शन की ज्वाला क्यों भड़की? एक चुनाव में कैसे जॉर्जिया पूरी तरह बदल गया? इन सभी प्रश्नों का उत्तर हम आपको बताएंगे लेकिन इस प्रदर्शन की भूमिका को पहले समझ लीजिए.
चुनाव प्रक्रिया में बदलाव
जॉर्जिया के नव निर्वाचित राष्ट्रपति मिखाइल कावेलशविली हैं. इनकी निर्वाचन की प्रक्रिया ऐसे हुई जिसने जॉर्जिया का इतिहास बदल दिया. ये पहली बार है, जब जॉर्जिया में किसी राष्ट्रपति को सीधे वोट से नहीं, बल्कि निर्वाचन मंडल ने चुना हो और इसी आशंका को देखते हुए चुनाव प्रक्रिया के पहले से प्रदर्शन शुरू हो चुके थे. लेकिन सवाल यही ऐसा क्यों हो रहा है?
क्यों हो रही हिंसा?
जॉर्जिया में जॉर्जियन ड्रीम पार्टी पुतिन समर्थक है, फरवरी में हुआ चुनाव में जॉर्जियन ड्रीम पार्टी के ही इराकली को बाखिद्जे प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए, लेकिन जॉर्जिया की दूसरी पार्टी द वे ऑफ जॉर्जिया पार्टी यूरोप समर्थक है और 2018 से अब तक इसी पार्टी की सैलोम जौराबिचविली राष्ट्रपति रही हैं. अब सीधे वोटिंग की बजाय निर्वाचन मंडल ने नया राष्ट्रपति भी जॉर्जियन ड्रीम पार्टी के मिखाइल कावेलशविली को चुना है, जिससे जॉर्जिया के यूरोपियन यूनियन में शामिल होने की उम्मीद खत्म हो गई.
जॉर्जिया का काला अध्याय
इसी आशंका को देखते हुए राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को लेकर EU समर्थक लोगों ने त्बिलिसी में प्रदर्शन शुरू किया. नए राष्ट्रपति के निवार्चन के बाद प्रदर्शनकारी भड़क गए हैं, यानी ये स्थिति रूस के लिए फायदेमंद दिख रही है. इसलिए पुतिन विरोधी इस चुनाव प्रक्रिया को जॉर्जिया के लिए काला अध्याय बता रहे हैं, जबकि नई प्रक्रिया से हुआ राष्ट्रपति चुनाव भी निर्वाचन मंडल पारदर्शी बता रहा है.
इस प्रक्रिया को विस्तार देते हुए बताया गया है कि, जॉर्जिया में 300 में से 200 वोट पाने वाला ही राष्ट्रपति बन सकता है. इसके अलावा कॉलेज ऑफ इलेक्टर्स का प्रतिनिधित्व करने वाले 300 सांसदों में से 170 से ज्यादा का वोट डालना भी अनिवार्य किया गया है और कवेलशविली को 300 में से 244 वोट मिले हैं.
यूरोपियन यूनियन की सदस्यता बनी वजह
अब राष्ट्रपति चुनाव की इस प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े हो गए हैं, जिसके पीछे वजह यूरोपियन यूनियन की सदस्यता है. जिसे लेकर सत्तासीन पूर्व के विरोधी दलों ने कदम भी आगे बढ़ाए थे, लेकिन इन कदमों को अब नए दल ने पीछे खींच लिए हैं. इसलिए जॉर्जिया जल रहा है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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