4 दिसंबर 1971… ये तारीख पाकिस्तान पर लगा ऐसा दाग है जो उसे भारत से मिले मुंहतोड़ जवाब की याद दिलाता रहेगा. दरअसल पाकिस्तान की आदत रही है, बंटवारे के बाद से ही वह भारत के खिलाफ साजिशें रचता रहा लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी.
ऐसा ही वाकया हुआ 1971 की जंग के दौरान, जब पाकिस्तान की चाल उलटी पड़ गई. इस जंग में पाकिस्तान की न केवल शिकस्त हुई बल्कि उसके दो टुकड़े हो गए. पाकिस्तान ने भारत को चोट पहुंचाने के लिए जो रणनीतिक फैसला लिया वो अगर कामयाब हो जाता तो यकीनन बड़ा नुकसान होता लेकिन भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर दिया. क्या था वो पूरा वाकया जानिए
कहानी पाकिस्तान के ‘नाकाम गाज़ी’ की
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था. इस हमले से करीब एक हफ्ते पहले ही पाकिस्तान समंदर के नीचे एक बड़ी साजिश को अंजाम देने वाला था. उसने भारतीय नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत को तबाह करने की योजना तैयार की और इसके लिए उसने अपनी सबसे शक्तिशाली पनडुब्बी PNS गाज़ी को चुना. कहा जाता है कि पीएनएस गाज़ी में सवाल पाकिस्तान नौसेना के लोगों को खुद भी इसका अंदाज़ा नहीं था कि पाकिस्तान, भारत पर जमीनी हमले की तैयारी कर रहा है. पीएनएस गाजी के कैप्टन जफर मोहम्मद खान को 8 नवंबर 1971 को INS विक्रांत को तबाह करने का जिम्मा सौंपा गया था.
14 नवंबर से 24 नवंबर के बीच पाकिस्तानी नौसेना ने अपनी सभी पनडुब्बियों को पहले से तय गश्ती इलाकों की ओर बढ़ने का आदेश दिया गया, वहीं पीएनएस गाजी जिसे पाकिस्तानी नौसेना ने अमेरिका से लीज़ पर लिया था उसे बंगाल की खाड़ी में जाकर INS विक्रांत को ढूंढकर तबाह करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
भारतीय नौसेना के ‘ट्रैप’ में फंसा पाकिस्तान
लेकिन भारतीय नौसेना के अधिकारियों को पाकिस्तान के नापाक मंसूबों की भनक लग गई और उन्होंने पीएनएस गाज़ी के लिए एक ऐसा ट्रैप बिछाया जिसमें फंसकर वह खुद ही समंदर में दफन हो गया. दरअसल उस समय भारत में मौजूद पाकिस्तानी जासूस अपने आकाओं तक INS विक्रांत की लोकेशन भेज रहे थे. उनकी बातचीत मेजर धर्म देव दत्त ने डिकोड कर ली, इसके बाद भारतीय नौसेना ने पीएनएस गाजी को फंसाने के लिए एक चाल चली. पाकिस्तानियों तक जानबूझकर यह बात पहुंचाई गई कि INS विक्रांत विशाखापट्टनम में खड़ा है, जबकि इस दौरान इसकी असल लोकेशन अंडमान और निकोबार द्वीप समूह था. भारतीय नौसेना ने पुराने विध्वंसक INS राजपूत को विशाखापट्टनम से करीब 160 किलोमीटर दूर ले जाकर भारी वायरलेस ट्रैफिक उत्पन्न किया गया, इससे पाकिस्तानियों को वाकई में ऐसा लगा कि यह INS विक्रांत है.
INS विक्रांत को तबाह करने का था प्लान
कराची से निकलकर श्रीलंका होते हुए पीएनएस गाजी 1 दिसंबर 1971 की रात विशाखापट्टन के नेवीगेशनल चैनल में दाखिल हुई. पाकिस्तानी नौसेना के अधिकारियों ने तय किया कि वह इसी जगह पर रुककर INS विक्रांत के बाहर आने का इंतजार करेंगे और फिर उस पर हमला करेंगे. इस दौरान 3 दिसंबर को गाज़ी से निकल रही फ्यूम्स ने पनडुब्बी में सवार नौसैनिकों के लिए खतरा पैदा कर दिया. इससे कई नाविकों की हालत बिगड़ने लगी, पीएनएस गाज़ी के मेडिकल ऑफिसर ने सलाह दी कि गाज़ी को थोड़ी देर के लिए पानी के ऊपर लाया जाए और इस दौरान उसकी बैटरियां बदल दी जाएं. लेकिन सूरज की रोशनी में ऐसा करना मुमकिन नहीं था, उनके पास एक ही विकल्प था कि वह रात का इंतज़ार करें.
4 दिसंबर को PNS गाज़ी में हुआ ब्लास्ट
उधर 3 दिसंबर की शाम करीब 6 बजे पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया, उसे उम्मीद थी कि दूसरी ओर से पीएनएस गाज़ी से भी जल्द कोई खुशखबरी मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 3 और 4 दिसंबर की आधी रात विशाखापट्टनम पोर्ट से थोड़ी दूरी पर एक जबरदस्त धमाका हुआ, यह धमाका पाकिस्तान की गाज़ी में हुआ था. 4 दिसंबर को भारतीय मछुआरों ने समंदर से पीएनएस गाज़ी के कुछ टुकड़े ढूंढ निकाले, हालांकि भारतीय नौसेना ने 9 दिसंबर को इसकी सार्वजनिक तौर पर घोषणा की. यह पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा झटका था. इस पनडुब्बी में 11 अधिकारी और 82 नाविक समेत 93 लोग सवार थे, जो कि पनडुब्बी में हुए धमाके में मारे गए.
बताया जाता है कि पीएनएस गाजी में ब्लास्ट को लेकर कई तरह के दावे किए गए लेकिन इनमें सबसे मजबूत दावा था पनडुब्बी में जरूरत से ज्यादा हाइड्रोजन गैस के जमा होने का. पीएनएस गाज़ी के अवशेषों की जांच करने वाले भारतीय अधिकारियों के मुताबिक गाज़ी का ढांचा बीच से टूटा था, जबकि आम तौर पर टॉरपीडो या बारूदी सुरंग में विस्फोट से आगे वाले हिस्से को ज्यादा नुकसान पहुंचता.
जंग में भारत की जीत के साथ बना बांग्लादेश
पीएनएस गाज़ी के समंदर में ही डूब जाने के ऐलान के करीब एक हफ्ते बाद 16 दिसंबर को भारत-पाकिस्तान के बीच शुरू हुई जंग खत्म हो गई. भारतीय सेना और बांग्लादेश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे मुक्ति वाहिनी ने ढाका पर कब्जा कर लिया. पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक सैनिकों को भारतीय जनरल के आगे सरेंडर करना पड़ा. इस जंग की समाप्ति के साथ ही पूर्वी पाकिस्तान को आजाद बांग्लादेश के तौर पर मान्यता मिली. यह भारत की बहुत बड़ी जीत थी.
यही वजह है कि भारत हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के तौर पर मनाता है. वहीं इस जंग की शुरुआत के अगले दिन यानी 4 दिसंबर को जब भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोला था, उसे नेवी डे के तौर पर मनाया जाता है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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