भारत के कोस्ट गार्ड यानी तट रक्षक बल ने 24 नवंबर (रविवार) को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से 5 टन से ज़्यादा मेथमफेटामाइन जब्त किया. मेथमफेटामाइन एक तरह का ड्रग है, जिसका इस्तेमाल नशे के लिए किया जाता है. जब्त किया गया ड्रग्स करीब 5 मारुती कार के वजन के बराबर था. जिसकी कीमत करीब 36 हजार करोड़ रुपये आंकी जा रही है. भारत की किसी भी एजेंसी के इतिहास में ये अब तक की सबसे बड़ी ड्रग्स की जब्ती थी.
अब आप देखें ये जब्ती एक ऐसे इलाके में हुई है जहां अस्थिरता का आलम है. म्यांमार में दो बरस से सिविल वॉर की सूरत है. बांग्लादेश में सैंकड़ों लाशे गिरने और शेख हसीना के देश छोड़ने पर मजबूर किए जाने के बाद से अब तक अस्थिरता का आलम है. वहीं, मणिपुर में पिछले 18 महीनों से अशांति है. हम जानते हैं कि अस्थिरता ड्रग की तस्करी को बढ़ावा देती है जबकि ड्रग तस्करी अस्थिरता को जन्म देती है.
दक्षिण अमेरिका के देशों से लेकर अफगानिस्तान तक की यही कहानी है. भारत के लिए इतनी बड़ी जब्ती के क्या मायने हैं. जो अफगानिस्तान और म्यांमार जैसे ड्रग्स के कारोबारी देशों के बीच में स्थित है. ये समझना इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत में ड्रग्स का इस्तेमाल करने वालों की संख्या करीब तीन करोड़ हो गई है. पिछले एक दशक में इसमें करीब बीस फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
अंडमान निकोबार क्यों एक आसान कड़ी
इन परिस्थितियों के साथ ड्रग्स की आसान उपलब्धता चीजों को और अधिक समस्याजनक बना सकती है. इस स्टोरी में हम बताएंगे कि क्यों अंडमान निकोबार द्वीपसमूह का इस्तेमाल नशीली पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए आसान है.
पहला – दरअसल, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह अपनी रणनीतिक स्थिति के लिए काफी अहम है. ड्रग्स की तस्करी का केन्द्र इसके बनने के पीछे सबसे बड़ी वजह इस इलाके का रणनीतिक मौजूदगी और समुद्री क्षेत्र है. जिसके रास्तों के सहारे तस्करी को अंजाम देना आसान हो जाता है.
दूसरा – अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की दक्षिण पूर्व के देशों से काफी निकटता है. जो इसे ड्रग तस्करी के लिए एक आकर्षक जगह बना देता है. ड्रग तस्कर इन द्वीपसमूहों से लगे हुए समुद्री रास्तों का इस्तेामल भारत, यूरोप से लेकर मध्य पूर्व तक में ड्रग्स की खेप पहुंचाने के लिए कर रहे हैं. जो काफी चिंताजनक है.
तीसरा – अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में आबादी काफी छिटपुट तरीके से रहती है. यानी यहां सघन बस्तियां नहीं हैं. लोग यहां-वहां रहते हैं. दूसरा पुलिस या दूसरी एजेंसियां देश के दूसरे इलाकों की तुलना में यहां सीमित तौर पर मौजूद हैं. इससे तस्करों के हौसले बुलंद होते हैं.
भारत के लिए ड्रग तस्करी के खतरे क्या हैं
पहला – ड्रग का कारोबार केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक नहीं है. बल्कि इसके काफी गंभीर सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं हैं. इसकी वजह से देश की राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक तरक्की की राह में रूकावटें आ सकती हैं. खासकर, उत्तर पूर्व के राज्यों में तो भारत इसका भुक्तभोगी रहा है. इन राज्यों में 1970 के बाद ही से ड्रग्स तस्करी का मकड़जाल पसरा हुआ है. अंडमान निकोबार जैसे द्वीप समूह का तस्करी के पनाह के तौर पर उभरना उत्तर पूर्व की समस्याओं को और गहरा सकता है.
दूसरा – ध्यान रहे, भारत करीब 1 हजार 643 किलोमीटर का बॉर्डर म्यांमार सरीखे ऐसे ही एक अशांत राष्ट्र के साथ साझा करता है. जहां सैन्य शासन है और विद्रोही गुटों के हमले से पूरा देश संकट का सामना कर रहा है. बतौर एक पड़ोसी देश, भारत की सीमा रेखा म्यांमार से लगती है, और दोनों देशों के बीच पोरस बॉर्डर होने से ड्रग ट्रैफिकिंग का खतरा बढ़ जाता है. म्यांमार से होने वाले ड्रग्स तस्करी के बारे में समूचा विश्व जानता है और भारत के साथ सीमा पर बाड़ेबंदी न होने से ड्रग्स की तस्करी उत्तर पूर्व के सामाजिक-राजनीतिक तानेबाने पर असर डाल सकती है.
तीसरा – न्जूज 9 से बात करते हुए कोस्टगार्ड के पूर्व डायरेक्टर जनरल प्रभाकरन पलेरी कहते हैं कि ड्रग्स, आर्म्स और ह्यूमन ट्रैफिकिंग – दुनिया के तीन सबसे बड़े अपराध हैं और इन्हें कई मायनों में संगठित तरीके से अंजाम दिया जाता है. वहीं, पत्रकार सैविओ ड्रग्स के कारोबार का असर भारत के अशांत राज्य मणिपुर में समझाते हैं. कहते हैं कि मणिपुर के भीतर और बाहर करीब 70 हजार करोड़ का कारोबार ड्रग्स का फैला हुआ है. इस स्थिति को देखते हुए अंडमान निकोबार जैसे उभरते हुए ड्रग तस्करी के पनाह पर नकेल कसना काफी जरूरी हो जाता है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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