हम तकनीकि पर इतने निर्भर हो गए हैं कि आस-पास के लोगों से बात करना तो दूर उनकी तरफ देखना भी भूलते जा रहे हैं. एक वक्त था जब लोग पान की गुमठी वालों से रास्ता पूछकर अपने रास्ते को तय करते थे. कई बार पान वाला आपको ऑप्शन भी दे देता था कि ये रास्ता लंबा है लेकिन अच्छा, ये रास्ता छोटा है लेकिन खराब है. इतना ही नहीं रास्ते में पड़ने वाले खतरों के बारे में भी वह सारी बातें बता देता था जिससे लोग पहले ही सतर्क हो जाते थे. लेकिन, तकनीकि पर हम ऐसे डिपेंड हुए हैं कि अब वह जमाना किसी सपने जैसा लगता है. बरेली और बदायूं जिले के बीच रामगंगा नदी पर हुआ हादसा भी कुछ ऐसी ही तकनीक की देन है. गूगल मैप के भरोसे रास्ता पार करने वाले लोगों के लिए यूपी के बरेली-बदायूं जिले के बीच रामगंगा नदी पर हुआ ये हादसा किसी सदमे से कम नहीं हैं.
ये तो वो बात हो गई जो इन दिनों चर्चा का विषय है, लोग अपने-अपने तर्क निकाल रहे हैं और उस हादसे पर खुले तौर पर अपनी राय रख रहे हैं. लेकिन, क्या सच में यह सब इतना आसान है. गूगल मैप अगर कहीं पर रास्ता दिखा रहा है और वहां पर बैरिकेडिंग होती है तो क्या हम मुड़ नहीं जाते? यही नहीं ट्रैफिक, जुलूस, वीआईपी विजिट जैसी स्थितियों में भले ही गूगल मैप हमें उस रास्ते ले जाना चाह रहा हो लेकिन हम चाहकर भी वहां नहीं जा सकते. क्योंकि वहां कोई न कोई हमे गाइड करने के लिए खड़ा रहता है या फिर कोई नोटिस बोर्ड चस्पा रहता है. इसका मतलब है कि पूरी गलती तकनीकि की नहीं है. तो रामगंगा नदी के पुल पर हुए हादसे में गलती है किसकी? जिसमें तीन मासूम जिंदगियां बिना वजह स्वाहा हो गईं.
तो बच जाती जिंदगियां
गलती हर उस शख्स की है जो उस ब्रिज के निर्माण से लेकर उसके रख-रखाव तक के लिए जिम्मेदार थे. पिछले साल नदी पर आई बाढ़ के बाद से ही ब्रिज टूट गया था, तभी से ब्रिज पर आवाजाही बंद थी. लोगों को रोकने के लिए यहां फोर्मेलिटी के तौर पर एक दीवार भी बनाई गई थी. लेकिन, सरकारी वादों की तरह वो दीवार भी टूट गई और उसके बाद इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं गया. किसी ने वहां पर न तो साइन बोर्ड लगाया, न ही बैरिकेडिंग की. अगर इनमें से कुछ भी पुल शुरू होने की जगह पर मौजूद होता तो शायद तीन जिंदगियां बच जातीं.
पीडब्ल्यूडी निशाने पर
प्रशासन के आदेश पर नायब तहसीलदार छविराम ने पीडब्ल्यूडी के 4 इंजीनियरों और 5 अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है. अब इस हादसे की जांच बदायूं और बरेली के डीएम मिलकर करेंगे. पुल का निर्माण कार्य सेतु निगम ने किया है, लेकिन हादसे के बाद सेतु निगम के रीजनल इंजीनियर ने पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि यह पुल 2021 में ही पीडब्ल्यूडी को हैंडओवर कर दिया था. क्या कोई पुल इतना कमजोर हो सकता है कि बनने के बाद दो साल में ही टूट जाए? पुल बनाने के बाद दोनो ओर अप्रोच रोड बनना था, जो कि पीडब्ल्यूडी का काम था. कुल मिलाकर हैंडओवर के बाद जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी की हो गई थी. इसलिए इस मामले में पहली गाज भी पीडब्ल्यूडी के 4 इंजीनियरों पर गिरी है.
2020 में ही बन गया था पुल
बरेली में तीन लोगों की जिंदगियां चली गई हैं और अब आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया है. जी हां, जिस पुल के निर्माण में लापरवाही की बात सामने आई है उसका निर्माण तो 2020 में ही पूरा हो गया था. पुलिस को बनाने में भी 40 करोड़ रुपये की लागत आई थी. 667 मीटर लंबा इस पुल को बनाया गया था. इसके बाद पुल के दोनों ओर अप्रोच रोड पीडब्ल्यूडी को बनाना था. पहले तो 2-3 साल तक विभाग निर्माण फाइलों को यहां से वहां करता रहा, बाद में इस अप्रोच रोड का बनाया गया. जिससे पुल पर आवाजाही शुरू हो सकी. हालांकि, नदी में पिछले साल नदी में बाढ़ आई और एप्रोच रोड बह गया. करीब 500 मीटर तक एप्रोच रोड के कटने के बाद लोगों का आना जाना यहां से फिर रुक गया. स्थानीय लोगों ने कई बार इस पुल के बारे में प्रशासन से शिकायत की लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. ऐसे में सिर्फ एक विभाग पर सारा ठीकरा फोड़ना कहा तक ठीक है, सभी जिम्मेदार विभागों को मिलकर उन जिदगियों के नुकसान के लिए जवाब देना चाहिए.
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