यूनियन कार्बाइड प्लांट (फाइल फोटो)
भोपाल में दिसंबर 1984 को जो डिजास्टर हुआ था उसकी भरपाई अगली कई पीढ़ियों तक को करनी पड़ सकती है. जी हां, भोपाल गैस त्रासदी के दौरान जो महिलाएं गर्भवती थी उनके बच्चों में भी जहर के लक्षण पाए गए थे. यह जानकारी एक चर्चा के दौरान पूर्व सरकारी फोरेंसिक डॉक्टर ने दी. 2 दिसंबर की रात कीटनाशक बनाने वाली कंपनी यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से गैस का रिसाव हुआ था जिससे करीब 3800 लोगों की मौत एक ही दिन में हो गई थी. इसी पर चर्चा करने के लिए एक कार्यक्रम रखा गया था जिसमें गैस त्रासदी के पीड़ितों के बच्चों पर भी जहरीली गैस के असर को देखा गया.
भोपाल गैस त्रासदी की 40वीं बरसी के मौके पर जीवित बचे लोगों के संगठनों ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था जिसमें भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. डीके सतपथी ने अपने अनुभव शेयर किए हैं. उन्होंने बताया कि त्रासदी के पहले दिन उन्होंने 875 पोस्टमार्टम किए थे और अगले पांच सालों में उन्होंने करीब 18000 शवों के परीक्षण देखे. उन्होंने बताया कि जब त्रासदी हुई थी तब यूनियन कार्बाइड की ओर से कहा गया था कि अजन्मे बच्चों पर जहरीली गैस का कोई असर नहीं होगा.
50% तक जहर शिशुओं में
डॉ. सतपथी ने कहा था कि गैस त्रासदी में मरने वाली गर्भवती महिलाओं का जब उन्होंने परीक्षण किया था तो मां में मौजूद जहरीले पदार्थ उनके गर्भ में पल रहे बच्चे में भी मिले थे. हालांकि असर 50 प्रतिशत था लेकिन बच्चों तक वह जहर पहुंचा था. डॉ. सतपथी ने दावा किया कि त्रासदी में जो महिलाएं बच गईं थी उनके गर्भ से पैदा होने वाले बच्चों में जहरीले तत्व थे. इससे अगली पीढ़ी को भी नुकसान हुआ है.
कई पीढ़ियों में दिखेगा असर
डॉ. सतपथी ने कहा कि पीड़ितों के बच्चों पर शोध किया जा रहा था लेकिन बाद में उसे बंद करा दिया गया. उन्होंने शोध बंद कराने पर सवाल खड़े किए हैं. इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि जो महिलाएं पीड़ितों में शामिल थीं और उन्होंने बच्चों को जन्म दिया था उनकी कई पीढ़ियों में गैस रिसाव का असर देखने को मिलेगा. डॉ. सतपथी ने बताया कि यूनियन कार्बाइड से निकली मिथाइल आइसोनेट गैस जिसे एमआईसी गैस कहा जाता है जब वह पानी के संपर्क में आई थी तो उससे कई जहरीली गैसें बन गई थीं.
– India Samachar
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