अखिलेश यादव और मायावती
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ का साथ और सपा के ‘पीडीए’ फार्मूले से अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की सियासी बाजी को ही पलट दिया था. बीजेपी के लिए बड़ा सियासी झटका दिया था, लेकिन पांच महीने में ही सारे समीकरण बदल गए हैं. उपचुनाव में मायावती की खामोशी के चलते बसपा सभी सीटों पर मुख्य लड़ाई से गायब होती दिखी. इस वजह से कई सीट पर दलित मतदाता बंटे हुए दिखाई दिए. दलित केमिस्ट्री के बिगड़ने का खतरा साफ नजर आ रहा. ऐसे में 9 सीटों पर हुए उपचुनाव में सपा के हाथों से कई सीटें खिसकती हुई नजर आ रही है.
यूपी उपचुनाव से भले ही सत्ता पर कोई प्रभाव न पड़ रहा हो, लेकिन भविष्य की सियासत पर जरूर असर पड़ेगा. इसलिए उपचुनाव को 2027 का सेमीफाइल माना जा रहा. सपा से लेकर बीजेपी, बसपा सहित चंद्रशेखर आजाद और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने किस्मत आजमाया. बसपा उपचुनाव में उतरी जरूर थी, लेकिन मायावती और उनकी पार्टी के तमाम दिग्गज नेता चुनाव दूरी बनाए रखा. वोटिंग के दिन काफी गहमा गहमी रही, लेकिन मायावती पूरी तरह से खामोशी अख्तियार किए हुए रहीं.
उपचुनाव में सपा के मतदान में गड़बड़ी के आरोपों के विपरीत बसपा ने कोई शिकायत नहीं की है. अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बीजेपी और यूपी प्रशासन पर मिलीभगत के आरोप लगाए और कहा कि लोगों को वोट डालने के रोका जा रहा है. इसके बाद चुनाव आयोग ने एक्शन लेते हुए इंस्पेक्टर सहित सात पुलिस वालों को निलंबित भी कर दिया. मुजफ्फरनगर के ककरौली के थानाध्यक्ष महिला मतदाताओं की ओर रिवाल्वर तानते हुए वीडियो वायरल हो गया, जिसे लेकर भी सवाल खड़े हुए. इन सारी घटनाओं पर बसपा की तरफ से कोई रिएक्शन नहीं दिखा जबकि सपा ने पूरे दिन सड़क से सोशल मीडिया तक मोर्चा खोल रखा था.
बसपा ने सभी 9 सीटों पर उतारे थे उम्मीदवार
बसपा विपक्ष में रहते हुए उपचुनाव से दूरी बनाए रखती थी, लेकिन मौजूदा राजनीति में अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए मैदान में उतरी है. हरियाणा चुनाव के बाद मायावती ने कहा था कि बसपा यूपी उपचुनाव में यह प्रयास करेगी कि उसके लोग इधर-उधर न भटकें. बसपा उपचुनाव मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगी. बसपा ने इससे पहले 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश की 5 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भी हिस्सा लिया था. हालांकि, उसका कोई भी प्रत्याशी जीत नहीं सका था. इस बार भी बसपा ने सभी नौ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे.
बसपा ने उपचुनाव प्रचार के लिए 40 स्टार प्रचारक भी बनाए थे, लेकिन अधिकतर बड़े चेहरे नजर नहीं आए. बसपा सुप्रीमो मायावती और नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद ने भी किसी भी सीट पर पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में जनसभा को संबोधित नहीं किया. मझवां, कटेहरी, मीरापुर जैसी विधानसभा सीटों पर बसपा का अपना सियासी दबदबा रहा है. मझवां सीट पर बसपा 5 बार जीतने में कामयाब रही है जबकि सपा अभी तक खाता नहीं खोल सकी. इसी तरह मीरापुर, खैर और कटेहरी सीट भी सपा की तुलना में बसपा के लिए ज्यादा मुफीद रही है.
मायावती ने उपचुनाव से खुद को किनारे रखा
दलित वोटों के लिहाज से भी यूपी उपचुनाव काफी अहम माना जा रहा है. इसके बावजूद मायावती ने उपचुनाव से अपने आपको किनारे रखा और वोटिंग के दिन भी पूरी तरह चुप्पी साधे रखा. मायावती की खामोशी के चलते दलित वोटर उपचुनाव में कश्मकश की स्थिति में नजर आया. सीएम योगी ‘बटोगे तो कटोगे’ के जरिए जातियों में बिखरे हुए हिंदू वोटों को जोड़ने की लगातार कोशिश करते दिखे जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए फार्मूले को ही पूरी तरह से एकजुट करने की कवायद कर रहे थे. इसके बावजूद माना जा रहा है कि सपा का सियासी समीकरण गड़बड़ा गया है.
2024 के लोकसभा चुनाव में सपा दलित-मुस्लिम-पिछड़े वोटों की एकजुटता के दम पर यूपी में नंबर वन पार्टी बनी है, लेकिन उसके बाद से मायावती के निशाने पर कांग्रेस और सपा रही है. यूपी उपचुनाव में मझवां, खैर, मीरापुर, कटेहरी, फूलपुर सीट पर दलित वोटर निर्णायक भूमिका में है, लेकिन इन सीटों के मतदान केंद्रों में से आधे से ज्यादा जगह पर बसपा प्रत्याशियों का बस्ता तक नहीं लगा.
कटेहरी सीट पर मतदान से पहले की स्थिति कुछ और थी, लेकिन वोटिंग के दिन बदल गई है. बसपा प्रत्याशी अमित वर्मा अपने सजातीय मतों में सेंधमारी कर सपा की सियासी बिगाड़ दिया गया है. बीजेपी के धर्मराज निषाद और सपा की शोभावती वर्मा के बीच ही सीधा मुकाबला नजर आया. बसपा इस सीट पर दलित वोटों को अगर अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब रहती है तो सपा की साइकिल का संतुलन बिगाड़ सकता है. इसी तरह करहल में बसपा के अविनाश शाक्य ने अपने जाति के शाक्य समुदाय से ज्यादा दलित वोटों को लामबंद करते दिखे.
मीरापुर, कुंदरकी, खैर, गाजियाबाद सीट पर भी बसपा का कोर वोटबैंक उससे अलग नजर आया है. कुंदरकी और मीरापुर में दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने की कवायद मायावती ने किया था, लेकिन जमीनी स्तर पर उसे अमलीजामा नहीं पहना सके. इन दोनों ही सीटों पर बसपा प्रत्याशी किसी भी बूथ पर संघर्ष करते या फिर शिकायत करते नजर नहीं आए जबकि सपा प्रत्याशी की पुलिस के साथ नोकझोंक दिखी. इसके अलावा दलित बहुल बूथों पर वोटिंग को लेकर किसी तरह की कोई शिकायत सुनाई नहीं दी, जहां पर भी आरोप लगे, वो ज्यादातर मुस्लिम इलाकों में ही आरोप लगे.
मायावती ने सपा के सियासी समीकरण को बिगाड़ दिया?
मुस्लिम बहुल गांव ककरौली, सीकरी, मीरापुर, जटवाड़ा, जौली में सुबह से मुस्लिम मतदाता सपा, बसपा और आजाद समाज पार्टी के बीच बंटे दिखे. ककरौली में पथराव के बाद मुस्लिम मतों की लामबंदी सपा प्रत्याशी के समर्थन में अधिक दिखी, लेकिन मीरापुर में दलित मतों में बिखराव नजर आया. कुंदरकी सीट पर दलित बहुल क्षेत्र वाले बूथ पर भी बसपा का बस्ता नजर नहीं आया. सीसामऊ विधानसभा सीट के दलित बहुल गांव में भी सपा प्रत्याशी को लेकर नाराजगी दिखी और बीजेपी के पक्ष में लामबंद रहे. फूलपुर सीट पर सपा ने ठाकुर प्रत्याशी उतारा था, लेकिन बीजेपी के वोटबैंक में सेंधमारी करने में बहुत ज्यादा कामयाब नहीं हो सके. ऐसे में सवाल उठता है कि मायावती का सरेंडर ने क्या सपा के सियासी समीकरण को बिगाड़ दिया है?
– India Samachar
.
.
Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link