पंकजा मुंडे, विनोज तावड़े और एकनाथ खडसे
पैसा तो बीजेपी पूरे महाराष्ट्र में बांट रही है, लेकिन पकड़े सिर्फ विनोद तावड़े ही क्यों गए, वो भी ओबीसी नेता…नालासोपारा कैश कांड पर शिवसेना (यूबीटी) के प्रवक्ता संजय राउत की यह पहली प्रतिक्रिया थी. महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि 2014 के बाद बीजेपी में जो भी सीएम पद के मजबूत दावेदार सामने आए हैं, वो किसी न किसी घोटाले या गंभीर आरोप में जरूर फंस गए हैं.
इन आरोपों की वजह से सीएम की कुर्सी नेताओं से बहुत दूर चली गई है. फेहरिस्त में एकनाथ खडसे और पंकजा मुंडे से लेकर विनोद तावड़े तक का नाम शामिल हैं.
तावड़े दूसरी बार मंझधार में फंसे
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले विनोद तावड़े 2014 में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे. तावड़े के पोस्टर पर उस वक्त सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर हुआ करती थी, लेकिन बाजी देवेंद्र फडणवीस के हाथों लगी.
फडणवीस कैबिनेट में तावड़े को मंत्री बनाया गया. उन्हें भारी-भरकम मंत्रालय भी मिले, लेकिन एक साल के भीतर ही उन पर फर्जी डिग्री का आरोप लग गया. तावड़े इसके बाद राजनीतिक रूप से मुखर नहीं रह पाए.
2019 के विधानसभा चुनाव में तावड़े का टिकट कट गया. इसके बाद तावड़े महाराष्ट्र की सियासत से अलग-थलग हो गए. 2021 में बीजेपी ने राष्ट्रीय महासचिव बनाकर उन्हें मुख्यधारा की राजनीति में वापसी कराई.
तावड़े इस चुनाव में भी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन अब जिस तरह से कैशकांड सामने आया है, उससे उनकी दावेदारी कमजोर हो गई है. हालांकि, तावड़े लगातार इस मामले को लेकर खुद को अलग कर रहे है और जांच की मांग कर रहे हैं.
खडसे को छोड़नी पड़ गई बीजेपी
गोपीनाथ मुंडे के केंद्रीय राजनीति में आने के बाद एकनाथ खडसे बीजेपी के भीतर काफी मुखर ओबीसी नेता थे. खडसे को मुख्यमंत्री का दावेदार माना जाता था, लेकिन उन्हें कैबिनेट में ही जगह मिली. कैबिनेट मंत्री रहते खडसे काफी फ्रंटफुट पर रहते थे.
इसी बीच पुणे के एक जमीन घोटाले में उनका नाम आ गया. इस घोटाले की जांच पहले राज्य एजेंसी और फिर ईडी ने शुरू कर दी. खडसे इसके बाद सियासी तौर पर बैकफुट पर आ गए. उन्हें बीजेपी छोड़नी पड़ गई. खडसे की राजनीति फिर शिखर पर नहीं पहुंच पाई.
एकनाथ खडसे की बेटी वर्तमान शरद पवार की पार्टी में है और खुद खडसे ने राजनीति से संन्यास का ऐलान कर रखा है. शरद पवार की एनसीपी ने खडसे की बेटी को मुक्तिनगर विधानसभा से मैदान में उतारा है.
पंकजा मुंडे पर भी लगे गंभीर आरोप
2014 में बीजेपी की जीत के बाद गोपीनाथ मुंडे की सियासी वारिस पंकजा मुंडे ने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जता दी. पंकजा मुंडे ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सीएम पद को लेकर जनता का सेंटिमेंट मेरे पक्ष में है.
हालांकि, मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें नहीं मिली. फडणवीस कैबिनेट में पंकजा मंत्री बनाई गईं. इसी दौरान उन पर चिक्की घोटाला का आरोप लगा.
आरोप में कहा गया कि मंत्री रहते आदिवासी बच्चों के स्कूल के लिए चिक्की, कालीन, बर्तन, किताबें, नोटबुक्स, वॉटर फिल्टर और अन्य सामानों की खरीदी का करीब 206 करोड़ रुपए का ठेका नियमों को पंकजा ने नजरअंदाज किया.
इस आरोप में पंकजा को भले बाद में क्लीनचिट मिल गई, लेकिन सियासी तौर पर उनके साथ खेल हो गया. पंकजा 2019 में परली से विधानसभा चुनाव भी हार गईं. 2024 में उन्हें बीड लोकसभा से मैदान में उतारा गया. यहां भी पंकजा जीत नहीं पाईं.
पंकजा अभी विधानपरिषद की सदस्य हैं और संगठन की राजनीति करती हैं.
यह महज संयोग या कोई सियासी प्रयोग?
महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में इस सवाल के उठने की बड़ी वजह विनोद तावड़े पर पैसा बांटने का आरोप लगाने वाले विधायक हितेंद्र ठाकुर का बयान है. ठाकुर ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि मेरे बीजेपी के कुछ दोस्तों ने इसके बारे में जानकारी दी थी.
ठाकुर के मुताबिक जब हमारे समर्थक होटल में गए, तब उन्हें होटल में पैसे और एक डायरी मिला. पुलिस इस मामले की निष्पक्ष जांच करे. यह भी तावड़े से पूछा जाए कि साइलेंट पीरियड में वे यहां क्या कर रहे थे?
– India Samachar
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