कभी की थी अजित की पैरवी, अब फडणवीस के लिए कैसे सियासी फांस बने पवार?
महाराष्ट्र के दंगल में एनडीए के दो बड़े नेता अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस के बीच चल रहा सियासी शीतयुद्ध सुर्खियों में है. इसकी दो बड़ी वजहें हैं. पहली वजह अजित के एक बयान पर फडणवीस ने उन्हें हिंदुत्व विरोधियों के साथ रहने वाला नेता बता दिया है.
चर्चा की दूसरी वजह अजित और फडणवीस के बीच चुनाव से पहले तक की दोस्ती है. 2023 में फडणवीस के जरिए एनडीए में आने वाले अजित को लेकर विधानसभा चुनाव से पहले कई तरह की अटकलें चल रही थीं. इनमें सबसे बड़ी चर्चा उनके एनडीए छोड़ अकेले लड़ने की थी.
हालांकि, कहा जा रहा है कि फडणवीस की पैरवी की वजह से उन्हें एनडीए में जगह मिल पाई. ऐसे में चुनाव के वक्त अजित के खिलाफ फडणवीस के बयान के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. मुंबई से लेकर दिल्ली तक सवाल पूछा जा रहा है कि क्या अजित एनडीए में फडणवीस के लिए सियासी फांस बन गए हैं?
सीएम की रेस में शामिल हुए फडणवीस
लोकसभा चुनाव के बाद से ही सियासी रूप से कमजोर पड़ चुके देवेंद्र फडणवीस का सिक्का अभी चलता दिख रहा है. फडणवीस बीजेपी में अकेले स्थानीय नेता हैं, जो रोजाना अपने प्रत्याशियों के लिए 4-4 रैली कर रहे हैं. हाल ही में उन्हें सीएम पद के लिए भी सांकेतिक तौर पर प्रोजेक्ट किया गया है.
ऐसे में कहा जा रहा है कि अजित की हर एक्टिविटी का सीधा असर फडणवीस के पाॅलिटिकल फ्यूचर पर ही पड़ रहा है.
अजित कैसे बन गए हैं फांस, 4 प्वॉइंट्स
1. BJP के विरोध के बावजूद मलिक को उतारा
नवाब मलिक एनसीपी के दिग्गज नेता हैं. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रहे हैं, लेकिन बीजेपी उनके खिलाफ हमेशा हमलावर रही है. उद्धव सरकार में मंत्री रहते उन पर बीजेपी ने कई हमले बोले थे. सरकार जाने के बाद नवाब पर दाऊद गैंग से पैसे लेने का आरोप लगा.
नवाब मलिक इस मामले में जेल गए. फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. एनसीपी ने उन्हें मानखुर्द नगर सीट से सिंबल दे दिया है. बीजेपी नहीं चाहती थी कि नवाब को उम्मीदवार बनाया जाए. मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार ने खुलकर इसका विरोध किया था.
इसके बावजूद अजित ने मलिक को सिंबल दे दिया. मलिक की बेटी सना भी अणुशक्तिनगर से मैदान में हैं. बीजेपी के लिए मुंबई की सियासत में नवाब मलिक फांस बन गए हैं.
2. अडानी का नाम लेकर विपक्ष को दे दिया मुद्दा
एनसीपी की टूट को सही ठहराने में जुटे अजित पवार ने एक बयान से बीजेपी को बैकफुट पर धकेल दिया है. दरअसल, एक इंटरव्यू में अजित ने कह दिया कि 2019 में सरकार बनाने के लिए शरद पवार और अमित शाह की मीटिंग में उद्योगपति गौतम अडानी भी थे.
अजित के इस बयान को कांग्रेस और उद्धव की पार्टी ने हाथों-हाथ लपक लिया. विपक्ष ने महाराष्ट्र में उद्योगपति के जरिए सरकार चलाने का आरोप लगाया. मुंबई और धारावी में विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया है.
अजित के इस बयान के बाद बीजेपी डैमेज कंट्रोल में जुटी है. बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने पूरे मामले में शरद पवार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
3. बटेंगे तो कटेंगे का खुलकर विरोध किया
लोकसभा चुनाव में मिले झटका के बाद बीजेपी ने महाराष्ट्र में भी बटेंगे तो कटेंगे के सहारे धार्मिक ध्रुवीकरण की कवायद में जुटी है, लेकिन अजित ने इसका खुलकर विरोध कर दिया है. अब तक दो कार्यक्रम में अजित ने कहा है कि यह सबका साथ, सबका विकास के खिलाफ है.
अजित की इस मुखरता से एनडीए की किरकिरी हो रही है. अजित के देखा-देखी बीजेपी के भी नेता अब इसके विरोध में उतरने लगे हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि बटेंगे तो कटेंगे का नारा आंतरिक लड़ाई में ही न उलझ जाए.
अजित के विरोध को शांत करने के लिए फडणवीस ने हिंदुत्व का भी दांव खेला है, लेकिन जूनियर पवार इस मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. कहा जा रहा है कि अजित नहीं चाहते हैं कि बीजेपी की इस नारे की वजह से उनका ही जनाधार खिसक जाए.
4. जाति की राजनीति को दे रहे हैं हवा
अजित पवार जाति की राजनीति को भी हवा देने में पीछे नहीं रह रहे हैं. हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने यहां तक कह दिया कि मुझे नहीं लगता ओबीसी मतदाता एकमुश्त बीजेपी और महायुति को वोट करेंगे.
पवार ने आगे कहा कि अब वंजारा समुदाय भी बीजेपी की अपील नहीं मानती है. पहले गोपीनाथ मुंडे के कहने पर उन्हें एकसाथ वोट मिलते थे.
कहा जा रहा है कि बीजेपी पूरे चुनाव को धार्मिक आधार पर करने की कवायद में जुटी है. ऐसे में अजित जिस तरह धर्म को लेकर बयान दे रहे हैं, उससे पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती है.
महाराष्ट्र में मराठा, दलित, आदिवासी और ओबीसी समुदाय का दबदबा रहा है. यहां 10 प्रतिशत ब्राह्मण भी जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
– India Samachar
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