अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, बाबूलाव मरांडी और हेमंत सोरेन
झारखंड की राजनीति में संथाल परगना सत्ता में हमेशा से अहम भूमिका निभाता रहा है. वर्तमान सरकार में भी मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और कई मंत्री संथाल परगना प्रमंडल से ही आते हैं. झारखंड विधानसभा के कुल 81 सीटों में से संथाल परगना में 18 विधानसभा सीटें हैं. 18 सीटों वाला यह परगना झारखंड सरकार की अगुवाई कर रहे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का परगना है.
सीएम हेमंत सोरेन जिस बरहेट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वह भी संथाल परगना में ही है. झारखंड की सत्ता निर्धारित करने में यह परगना अहम भूमिका निभाता है. इसलिए सभी राजनीतिक दल का फोकस संथाल जीतने पर रहता है. सत्ताधारी गठबंधन के लिए शिबू सोरेन का गृह क्षेत्र होने के कारण संथाल की सीटें नाक का सवाल बन गई हैं. बीजेपी भी प्रतिद्वंद्वी को उसके घर में, गढ़ में ही घेरने की रणनीति पर चल रही है.
सबसे अधिक भागीदारी संथाल जनजाति की
सूबे की आबादी में सबसे बड़े वर्ग आदिवासी समाज की आबादी में भी सबसे अधिक भागीदारी संथाल जनजाति की है. संथाल जनजाति का बड़ा हिस्सा संथाल परगना में निवास करता है और यहां के सियासी मिजाज का संदेश धनबाद-गिरिडीह के इलाके में रहने वाले संथाल मतदाताओं को भी प्रभावित करता है. हेमंत सोरेन खुद भी संथाल जनजाति से ही हैं. ऐसे में बीजेपी ने संथाल जनजातियों को लुभाने के लिए एक के बाद एक दांव चल रही है.
परगना में घुसपैठ, जल और जंगल हमेशा से भावनात्मक मुद्दा रहा है. इस लिए बीजेपी इस क्षेत्र में केंद्र सरकार की योजनाओं के साथ-साथ लैंड जिहाद, लव जिहाद और जॉब जिहाद की बातें उठा रही है. प्रधानमंत्री तक ने अपनी सभाओं में घुसपैठ और डेमोग्राफिक बदलाव की बाते जोर शोर से उठाई है. बीजेपी ने अपने सभी स्टार कैम्पेनर को इन्हीं मुद्दों के आसपास बात रखने की नसीहत दी है.
बीजेपी की रणनीति शिबू सोरेन परिवार से ही काउंटर करने की
इतना ही नहीं बीजेपी की रणनीति संथाल में आदिवासी अस्मिता के जेएमएम के दांव को शिबू सोरेन के परिवार की ही ,सीता सोरेन और सिद्धो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू के जरिए काउंटर करने की है. पार्टी चंपई को सीएम पद से हटाए जाने को भी आदिवासी अस्मिता से जोड़ जनता के बीच जा रही है. संथाल परगना में बदलती डेमोग्राफी और बांग्लादेश के नागरिकों के घुसपैठ को भी बीजेपी मुखरता से उठा रही है और इसे अपने संकल्प पत्र में भी जगह दी है.
पहले दौर के मतदान के बाद बीजेपी उत्साहित
दरअसल पहले दौर के मतदान के बाद बीजेपी काफी उत्साहित हैं. बीजेपी नेताओं ने दावा किया है कि जो मुद्दे बीजेपी द्वारा उठाए जा रहे हैं, उससे जनता कनेक्ट हो पा रही है. मतलब सीधा असर हो रहा है. इसलिए बीजेपी संथाल परगना के इस क्षेत्र में भावनात्मक मुद्दों के सहारे है. इसी बीच सरना धर्म कोड की मांग जो लंबे समय से की जा रही है और इसको आदिवासियों की पहचान और संस्कृति को पहचानने और संरक्षित करने के लिए एक अहम कदम माना जा रहा है. उस पर सुर में सुर मिला रहे हैं. सरना धर्म, भारतीय धर्म परंपरा का ही एक आदि धर्म है. इसका पालन छोटानागपुर के पठारी इलाकों के कई आदिवासी करते हैं. सरना कोड की मांग को लेकर, आदिवासी समूहों ने कई राज्यों में धरने भी किए हैं. अब हेमंत सोरेन खुल कर इसके समर्थन में हैं.
18 सीटों में सात सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित
संथाल परगना में कुल 18 सीटें हैं जिनमें से सात सीटें अनुसूचित जनजाति और एक सीट एससी के लिए आरक्षित है. 10 सीटें सामान्य हैं. बरहेट, दुमका, शिकारीपाड़ा, महेशपुर, लिट्टीपाड़ा, बोरियो और जामा विधानसभा सीट एसटी के लिए आरक्षित हैं. देवघर सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. सामान्य सीटों की लिस्ट में जामताड़ा, गोड्डा, मधुपुर, सारठ, जरमुंडी, पोड़ैयाहाट, महागामा, पाकुड़, राजमहल और नाला शामिल हैं.
ट्रिपल जिहाद के जरिए सेंध लगाने की कोशिश
2019 के विधानसभा चुनाव में समान्य सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन ठीक ठाक रहा था. अब सिर्फ बीजेपी झामुमो के बर्चस्व वाली सीटों में सेंघ लगाने की फिराक में है. एक तरफ बीजेपी ट्रिपल जिहाद में जरिए जेएमएम के इलाके में सेंध लगाने के चक्कर में है वही सरना धर्म के मामले में सकारात्मक रुख़ लाकर हेमंत सोरेन ने भी मास्टरस्ट्रोक खेल दिया है. हालांकि सरना कोड लागू करने को लेकर बीजेपी नेताओं ने मैनिफेस्टो जारी करते वक्त हामी भरी थी लेकिन अपने मातृ संगठन आरएसएस से अलग लाइन होते हुए देख बीजेपी अब इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है.
– India Samachar
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