अजीत पवार, शरद पवार, एकनाथ शिंदे, उद्धव ठाकरे
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाला महायुति गठबंधन सत्ता बचाए रखने की जंग लड़ रहा है तो कांग्रेस की अगुवाई वाला महा विकास अघाड़ी भी सत्ता में वापसी के लिए बेताब है. किंगमेकर बनने की उम्मीद लेकर चुनावी मैदान में उतरी ढेरों छोटी पार्टियां दोनों ही प्रमुख गठबंधनों के लिए चिंता का सबब बनी हुई हैं. राज्य में किस्मत आजमा रहीं 158 पार्टियों में से करीब 150 छोटी पार्टियां हैं, जो बड़ा धमाल करने के इरादे से मैदान में उतरी हैं.
छोटी पार्टियां भले ही एक या दो सीटों पर जीत दर्ज करने की ताकत रखती हों, लेकिन महाविकास अघाड़ी और महायुति का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत तो रखती ही हैं. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कुल 288 विधानसभा सीटों के लिए 4,136 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं.
इस बार महायुति और महाविकास अघाड़ी में शामिल दलों के साथ कुल 158 पार्टियां विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने उतरी हैं, जिसमें राज ठाकरे की मनसे, दलित नेता प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी, असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और बसपा जैसी चर्चित पार्टियों समेत करीब 150 छोटी पार्टियां भी किस्मत आजमा रही हैं. इन दलों के अलावा करीब 2,086 निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में हैं.
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किंगमेकर बनने की चाह
बीजेपी के नेतृत्व वाले महायुति में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी के अलावा रामदास अठावले की आरपीआई सहित तीन अन्य छोटी पार्टियां शामिल हैं. जबकि, कांग्रेस के अगुवाई वाले महाविकास अघाड़ी में उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की एनसीपी (एसपी) के अलावा अन्य कुछ पार्टियों के लिए सीटें छोड़ी गई हैं. इस तरह से दोनों ही गठबंधन जहां सत्ता की लड़ाई लड़ रहे हैं तो छोटी पार्टियां किंगमेकर बनने की जुगत में लगी हैं.
2019 के विधानसभा चुनाव में किसी भी एक दल को बहुमत का आंकड़ा नहीं मिल सका था. बीजेपी, शिवसेना ने मिलकर 161 सीटें जीते थे तो कांग्रेस और एनसीपी 98 सीटें जीतने में सफल रही थीं. इसके अलावा करीब 29 सीटें अन्य को मिली थीं, जिसमें 16 सीटें छोटे दलों ने जीत दर्ज की थीं जबकि 13 सीटों पर निर्दलीय विधायक चुने गए थे. इस तरह महाराष्ट्र में छोटे दलों की भूमिका काफी अहम हो गई, जिसके चलते ही इस बार करीब 150 छोटे दल चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने उतरे हैं.
महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी 149 सीट पर किस्मत आजमा रही है तो एकनाथ शिंदे की शिवसेना 81 और अजीत पवार की एनसीपी ने 59 सीटों पर ताल ठोक रखा है. कांग्रेस 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो शरद पवार की एनसीपी (एसपी) 86 सीट और उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (यूबीटी) ने 95 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.
छोटे दल करेंगे बड़ा धमाल!
महाराष्ट्र में बसपा सबसे ज्यादा सीटों पर चुनावी किस्मत आजमा रही है. बसपा ने राज्य की 237 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं तो प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी ने 200 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए हैं. राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना 125 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के 26 प्रत्याशी मैदान में हैं. बहुजन रिपब्लिकन सोशलिस्ट पार्टी 22 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. महाराष्ट्र स्वराज पार्टी ने 32 सीटों पर उम्मीदवार उतार रखे हैं.
इसी तरह पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डी) ने 44 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं. प्रहार जनशक्ति पार्टी 38 सीट और राष्ट्रीय समाज पक्ष ने 93 सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं तो आरपीआई (ए) 31 और रिपब्लिकन सेना 21 सीट पर चुनाव लड़ रही है. असुदद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) ने कुल 17 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए हैं जबकि समाजवादी पार्टी ने 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रखे हैं. उत्तर भारत विकास सेना, पीस पार्टी, टीपू सुल्तान पार्टी, नेताजी कांग्रेस सेना, निर्भय महाराष्ट्र पार्टी, नेशनल वर्ल्ड लीडर पार्टी, राष्ट्रीय उलमा काउंसिल, जय विदर्भ पार्टी और देवेगौड़ा की जेडीएस भी महाराष्ट्र में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कई छोटी पार्टियां बड़े धमाल करने के लिए उतरी हैं. इन पार्टियों का क्षेत्रीय और जातिगत स्तर पर सियासी आधार है, उसी बेस पर चुनाव भी लड़ रही हैं. इन दलों का अपने-अपने इलाकों में अच्छा-खासा प्रभाव माना जाता है. इनके चुनावी मैदान में उतरने से वोटों के बिखराव का खतरा बना हुआ है, जिसका असर महायुति और महा विकास अघाड़ी दोनों को पड़ सकता है.
मायावती-चंद्रशेखर-अंबेडकर
दलित आधार वाले तीन बड़े दल महाराष्ट्र के चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं और तीन ही दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. राज्य में 13 फीसदी दलित वोटर हैं, जिसके चलते ही मायावती की बसपा, चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी और प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुनज अघाड़ी ने कैंडिडेट उतारे हैं. बसपा और आजाद समाज पार्टी का भले ही कोई खास सियासी आधार न हो, लेकिन प्रकाश अंबेडकर का अपनी पकड़ है.
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में वंचित बहुजन अघाड़ी ने 4.57 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और कांग्रेस और एनसीपी के उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ दिया था, जिसके चलते इस बार मुकाबला रोचक हो गया है. मायावती भी एक अहम फैक्टर है और पुणे व विदर्भ के इलाके में अच्छा खासा प्रभाव रखती है.
ओवैसी किसका बिगाड़ेंगे चुनावी गेम
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन भी इस बार 17 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. ओवैसी का आधार मुस्लिम वोटबैंक है. मुस्लिमों के दम पर ओवैसी 2014 और 2019 में दो-दो सीटें जीतने में कामयाब रहे थे. इसीलिए 17 में से 13 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारकर मुस्लिम वोटों में बिखराव का खतरा पैदा कर दिया है.
मराठावाड़ा और मुबंई इलाके की मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी ने अपने प्रत्याशी उतार रखा है, जिसके चलते औरंगाबाद, मालेगांव, भिवंडी और मुंबई की मुस्लिम बहुल सीटों पर महायुति की सियासी टेंशन बढ़ा दी है. महाराष्ट्र में मुस्लिमों को महायुति का कोर वोटबैंक माना जाता है, जिसके लिए कांग्रेस ओवैसी को बीजेपी की बी-टीम बताने में जुटी है.
राज ठाकरे ने किसकी बढ़ाई टेंशन
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने 125 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रखा है. 2009 के चुनाव में राज ठाकरे ने 13 सीटें जीती थीं, जिनमें से 8 सीटें मुंबई की थीं, यह जीत पार्टी के लिए बड़ी कामयाबी थी, लेकिन इसके बाद पार्टी का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया. 2014 और 2019 में सिर्फ एक ही सीट मनसे जीत सकी थी. इस बार मनसे के उतरे 125 उम्मीदवारों में 25 प्रत्याशी सिर्फ मुंबई इलाके की सीटों पर किस्मत आजमा रहे और बाकी कोंकण और दूसरे इलाके की सीटों पर ताल ठोक रखी है.
राज ठाकरे चुनाव में जिस तरह से हिंदुत्व का एजेंडा सेट कर रहे हैं, उसके चलते सबसे बड़ा खतरा शिवसेना के दोनों गुटों के साथ-साथ बीजेपी को भी है. राज ठाकरे ने अपने बेटे को भी इस बार चुनाव में उतारा है और किंगमेकर बनने की कवायद में है.
राज शेट्टी और बच्चू कडू का रोल
महाराष्ट्र में पूर्व सांसद राजू शेट्टी के नेतृत्व वाले इस गठबंधन में स्वाभिमानी पार्टी, संभाजी छत्रपति की छत्रपति महाराष्ट्र स्वराज पार्टी और विधायक बच्चू कडू की प्रहार जनशक्ति शामिल है. राजू शेट्टी का राजनीतिक प्रभाव खास तौर पर हातकंगले, कपूर और अचलपुर में देखने को मिलता है. इन इलाकों में उनकी पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है. बटुकू प्रहार अपनी पार्टी प्रहार जनशक्ति के नेतृत्व में चुनावी मैदान में हैं, जिनके उतरने से ओबीसी और किसानों के वोटों में बंटवारे का खतरा बन गया है.
इन छोटी पार्टियों और क्षेत्रीय नेताओं की मौजूदगी से वोटों का बंटवारा तय है. इन पार्टियों और नेताओं की वजह से कुछ सीटों पर कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी और इस वजह से बड़े गठबंधनों की राह आसान नहीं होने वाली है. इसका सबसे ज्यादा असर उन सीटों पर ही पड़ेगा जो परंपरागत रूप से किसी एक गठबंधन के पक्ष में जाती हैं.
ऐसे में अगर छोटी पार्टियों से होने वाले नफा-नुकसान की बात करें तो सबसे ज्यादा चिंता महा विकास अघाड़ी को है. इन पार्टियों के उभरने से एमवीए को ओबीसी, दलित, मुस्लिम और अन्य समुदायों में अपनी पकड़ बनाए रखने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है तो हिंदू वोटों के बिखराव का खतरा महायुति के लिए बना है.
– India Samachar
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