अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को 300 से ज्यादा इलेक्टोरल कॉलेज मिलने का अनुमान है. अनुमान इसलिए क्योंकि फिलहाल जो नतीजे आए हैं वह पॉपुलर वोट के हैं. पॉपुलर वोट यानी जनता के वोट. वहीं इलेक्टोरल कॉलेज की वोटिंग दिसंबर में होनी है और नतीजों का आधिकारिक ऐलान 6 जनवरी को किया जाएगा.
लिहाजा सवाल उठ रहे हैं कि क्या कमला हैरिस के पास अब भी मौका है कि वह इलेक्टर्स का बहुमत हासिल कर सकें? क्या अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अब भी किसी उलटफेर की संभावना है? क्या कमला हैरिस के पास एक आखिरी चांस बाकी है? लेकिन वह पॉपुलर वोट में तो काफी पीछे हैं तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है?
जब पॉपुलर वोट हारकर भी जीते थे ट्रंप!
ऐसा कई बार हो चुका है कि कोई कैंडिडेट पॉपुलर वोट हारकर भी इलेक्टोरल कॉलेज का बहुमत हासिल कर लेता है. हाल-फिलहाल में यह कारनामा डोनाल्ड ट्रंप ने ही 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में कर दिखाया था, उन्हें अपनी प्रतिद्वंदी हिलेरी क्लिंटन से करीब 30 लाख वोट कम मिले थे लेकिन वह राष्ट्रपति चुनाव जीत गए. तो क्या माना जाए कि कमला हैरिस भी यह कारनामा दोहरा सकती हैं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको इलेक्टोरल कॉलेज को बेहतर तरीके से समझना होगा.
इलेक्टोरल कॉलेज क्या हैं?
इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिका के हर राज्य के लिए निर्धारित इलेक्टर्स का समूह है. ये इलेक्टर्स अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवारों के प्रतिनिधि होते हैं, अमेरिकी जनता जब चुनाव में वोट डालती है तो वह सीधे तौर पर उम्मीदवार को नहीं बल्कि इन इलेक्टर्स के समूह को चुन रही होती है.
जनता की वोटिंग के करीब एक महीने बाद दिसंबर में इन इलेक्टर्स का समूह यानी इलेक्टोरल कॉलेज वोट डालता है और इस तरह से अमेरिका का अगला राष्ट्रपति चुन लिया जाता है.
इलेक्टर्स की संख्या किसी राज्य के सीनेट और प्रतिनिधि सभा में मौजूद सदस्यों के अनुपात में होते हैं. अमेरिका के 50 राज्यों और वॉशिंगटन डीसी के इलेक्टर्स की संख्या कुल मिलकार 538 होती है. लिहाजा राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 इलेक्टर्स का समर्थन हासिल करना होता है.
अब सवाल खड़ा होता है कि अगर इलेक्टर्स दिसंबर में वोट डालेंगे तो ट्रंप की जीत का दावा क्यों किया जा रहा है?
फिर चुनाव में ट्रंप की जीत का दावा क्यों?
दरअसल अमेरिका के दो राज्यों मेन्स और नेब्रास्का को छोड़कर सभी राज्यों में इलेक्टर्स को लेकर एक जैसा नियम है. अगर कोई उम्मीदवार किसी राज्य के पॉपुलर वोट में जीत हासिल करता है तो उस राज्य में उस उम्मीदवार की पार्टी के सभी इलेक्टर्स चुन लिए जाते हैं. इसे ‘विनर-टेक-ऑल’ मेथड कहा जाता है. लेकिन मैन और नेब्रास्का में पॉपुलर वोट के अनुपात के आधार पर इलेक्टर्स चुने जाते हैं.
उदाहरण के तौर पर नेब्रास्का में 5 इलेक्टोरल कॉलेज हैं, इनमें से 4 ट्रंप ने जीते हैं और एक कमला हैरिस के खाते में गया है. इसी तरह से मैन में 4 इलेक्टोरल कॉलेज हैं और इनमें से 3 हैरिस ने जीते हैं तो एक ट्रंप के खाते में गया है.
वहीं बाकी के राज्यों में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी को मिले वोटों के आधार पर ही ट्रंप की जीत का दावा किया जा रहा है. नतीजों के लिए निर्णायक माने जा रहे 7 में से 5 स्विंग स्टेट्स के नतीजे आ चुके हैं, इन सभी 5 स्विंग स्टेट्स में ट्रंप की जीत हुई है, इस जीत से ट्रंप को कुल 76 इलेक्टोरल कॉलेज मिलने का अनुमान है. वहीं जिन 2 स्विंग स्टेट्स के नतीजे नहीं आए हैं वहां भी ट्रंप की जीत की संभावना है यानी कुल 7 स्विंग स्टेट्स के 93 इलेक्टोरल कॉलेज ट्रंप के होंगे.
मैन और नेब्रास्का के नतीजों को अलग कर दिया जाए तो डोनाल्ड ट्रंप ने 48 राज्यों में से 27 राज्यों में जीत हासिल कर ली है और 2 राज्यों में वह आगे हैं. वहीं कमला हैरिस ने 19 राज्यों में जीत हासिल की है. इसके अलावा उन्होंने वॉशिंगटन डीसी में भी जीत हासिल की है जहां 3 इलेक्टोरल वोट हैं.
इन राज्यों में पॉपुलर वोटों की जीत के आधार पर ही अनुमान लगाया गया है कि दिसंबर में होने वाले चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को 312 और कमला हैरिस को 226 इलेक्टोरल वोट मिल सकते हैं.
इलेक्टोरल वोटिंग में हो सकता है उलटफेर?
तकनीकी तौर पर इलेक्टर्स पॉपुलर वोट के खिलाफ वोट डाल सकते हैं क्योंकि अमेरिका में इलेक्टर्स की वोटिंग को लेकर कोई संवैधानिक या संघीय कानून नहीं है. हालांकि कुछ राज्यों ने इसे लेकर नियम बना रखा है कि उनके राज्य के इलेक्टर्स को पॉपुलर वोट के नतीजों के आधार पर ही वोट करना होगा. वहीं राजनीतिक दलों ने भी अपने इलेक्टर्स के लिए इसी तरह के नियम बना रखे हैं.
नियम के खिलाफ जाकर वोट डालने वालों को ‘फेथलेस इलेक्टर्स’ कहा जाता है. पॉपुलर वोट के खिलाफ जाकर वोट करने वाले इलेक्टर्स पर कार्रवाई की जा सकती है. उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है, साथ ही साथ उन्हें वोटिंग के लिए अयोग्य ठहराकर एक सब्सटिट्यूट इलेक्टर से बदला जा सकता है.
अमेरिका की सुप्रीम अदालत ने 2020 में इलेक्टर्स की वोटिंग को लेकर राज्यों को यह अधिकार दिया था कि वह अपना कानून बना सकते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में अब तक किसी भी इलेक्टर्स के खिलाफ नियमों के खिलाफ वोटिंग करने पर कोई आपराधिक कानून नहीं चलाया गया है. हालांकि 2016 में कई इलेक्टर्स ने जब पॉपुलर वोट के खिलाफ जाकर वोट किया तो उन पर जुर्माना लगाया गया और उन्हें डिस्क्वालीफाई घोषित कर वैकल्पिक इलेक्टर्स से बदल दिया गया था.
अमेरिका के इतिहास में अब तक 99 फीसदी इलेक्टर्स ने अपनी पार्टी को दिए गए वचन के आधार पर ही इलेक्टोरल कॉलेज वोटिंग में वोट दिया है, लिहाजा इस बात की बेहद संभावना न के बराबर है कि दिसंबर में होने वाली वोटिंग में उलटफेर हो.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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