उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर अपने आप में ऐतिहासिक शहर है. कानपुर की चर्चा रामायण काल से होती चली आ रही है. चाहे बिठूर में सीता रसोई हो या ब्रह्मा की खूंटी, सबका अपना ऐतिहासिक महत्व है. ऐसा ही एक तालाब चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (सीएसए) परिसर में है, जो अपनी बदहाली के आंसू रो रहा है.
कानपुर का चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय पूरे देश में कृषि से संबंधित शिक्षा के लिए एक जाना माना नाम है. दूर-दराज के स्टूडेंट्स यहां अपनी पढ़ाई करने आते हैं. सीएसए परिसर में एक ऐतिहासिक तालाब मौजूद है, जो 186 साल पुराना है और पूरी तरह से उजड़ चुका है. इसको ठीक कराने की कोशिश कई बार की गई, लेकिन योजना को मूर्त रूप नहीं मिल पाया.
किस अंग्रेज अफसर ने इस तालाब को बनवाया?
देश में 1837 के दशक में अकाल पड़ा था. उस समय अंग्रेजों का शासन था. मजिस्ट्रेट आई. सी. विल्सन के अधीक्षण में अकाल के दौरान वर्ष 1837-1838 में भूख से मर रहे गरीबों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कानपुर के नागरिकों के स्वैच्छिक योगदान के साथ इस तालाब एवं चारों तरफ सीढ़ियों का निर्माण प्रारम्भ किया गया, जिसे ब्रिटिश सरकार के 12,000 रुपए की धनराशि व्यय करके कैदियों के अनन्य परिश्रम से पूरा किया गया था.
कई बार ताबाल के जीर्णोद्वार का प्रयास किया गया
अब यह तालाब पूरी तरह से उजाड़ हो चुका है. इसका जीर्णोद्वार करने के उद्देश्य से सीएसए प्रशासन द्वारा पीपीपी मॉडल के तहत रोटरी क्लब से एक करार हुआ था, लेकिन कुछ कारणों की वजह से वो संभव नहीं हो पाया. इसके बाद यहां में एमपी थिएटर की योजना भी बनी थी, जिसके तहत तालाब के बीच में पानी रहेगा और उसके ऊपर रिवॉल्विंग स्टेज बनाया जाएगा. तालाब के चारों तरफ बैठने का इंतजाम होगा और किसी भी कार्यक्रम के लिए इसको किराए पर लिया जा सकेगा. यह योजना भी संभव नहीं हो सकी.
टीवी9 की पहल के बाद उम्मीद की किरण दिखी
इस संबंध में टीवी9 की टीम ने सीएसए के वीसी डॉ. आनंद कुमार सिंह बात की. उन्होंने बताया कि पहले प्रयास किया गया था, लेकिन कुछ दिक्कतें सामने आईं, जिसकी वजह से योजना को मूर्त रूप नहीं मिल पाया. उन्होंने बताया कि अब इस बारे में प्रशासन से बात की गई है और सीएसआर फंड से तालाब का जीर्णोद्वार कराया जाएगा. अगर सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही यह ऐतिहासिक तालाब आम जनता के सामने अपने वास्तविक स्वरूप में दिखाई पड़ेगा.
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