अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, बाबूलाव मरांडी और हेमंत सोरेन
झारखंड के चुनाव में बागियों ने एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों की नाक में दम कर रखा है. बीजेपी के बड़े नेता ऑपरेशन बागी क्लीन के जरिए नाराज नेताओं को मनाने मैदान में उतरे, लेकिन हिमंता सहित शिवराज सिंह चौहान और बीएल संतोष सरीखे नेता भी सबको समझाने में कामयाब नहीं हो सके.
यही वजह है कि नॉमिनेशन से नाम वापस करने की तारीख बीत जाने के बाद बीजेपी को तकरीबन तीस नेताओं को पार्टी के खिलाफ काम करने को लेकर पार्टी से बाहर करना पड़ा है. यही हाल इंडिया ब्लॉक का भी है 12 सीटों पर बागियों ने अपने गठबंधन के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि बागी किसको ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे ये सोचकर झारखंड की मुख्य राजनीतिक पार्टियों के हौसले पस्त हो रहे हैं.
एनडीए को बागी से कितना बड़ा खतरा ?
झारखंड जीतना एनडीए के लिए बेहद अहम है. इसलिए पार्टी ने विनेबलिटी को प्रमुख आधार बनाकर सबकुझ झोंक दिया है. बीजेपी में ही इस बात को लेकर गहरा असंतोष है कि बीजेपी के तरफ से 68 उम्मीदवार मैदान में उतारे गए हैं जिनमें 35 आयातित उम्मीदवार हैं. ज़ाहिर है ऐसे में बीजेपी के लिए सालों से काम करने वाले कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव है. इसलिए कई सीटों पर कार्यकर्ता और नेता अपनी ही पार्टी के खिलाफ मैदान में उतरकर बीजेपी के खिलाफ प्रचार करने मैदान में उतर गए हैं.
इन नाराज नेताओं में रविन्दर राय का नाम भी आ रहा था जो गिरिडिड जिले के एक विधानसभा सीट से बीजेपी के प्रत्याशी बनने की चाहत में बगावत करने की तैयारी में थे. रविन्दर राय पूर्व सांसद हैं और बीजेपी के बड़े नेताओं ने उन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर समझा बुझा लिया है, लेकिन लुईस मरांडी,केदार हाजरा सरीखे कई नेता जेएमएम से टिकट पाकर अब बीजेपी का खेल खराब करने में जुट गए हैं. ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती है.
नॉमिनेशन वापस करने का अंतिम दिन बीत जाने के बाद बीजेपी के कार्यकर्ता और उम्मीदवारों को 30 की संख्या में बाहर कर बीजेपी सीधा पैगाम देने के प्रयास में है. जमशेदपुर पूर्वी का सीट हो या फिर रांची ग्रामीण, पूर्वी सिंहभूम, लोहरदगा, खूंटी, हजारीबाग, गढ़वा, चतरा, जमशेदपुर महानगर, पलामू सहित तीस सीटे हैं जहां से बीजेपी के ही कार्यकर्ता निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतर गए थे. इन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है.
पार्टी के लिए चुनौती बने ये नेता
कई सीटों पर परिवारवाद के खिलाफ बीजेपी से ताल्लुक रखने वाले नेता ही मैदान में उतरे हैं जो कह रहे हैं कि उनकी लड़ाई पार्टी से नहीं बल्कि उस व्यक्ति से है जो परिवारवाद के नाम पर टिकट पाने में कामयाब हुई हैं. ऐसे नेताओं में नाम शिवशंकर सिंह का आ रहा है जो जमशेदपुर पुर्वी से रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास के खिलाफ मैदान में उतरकर पार्टी के लिए चुनौती बन गए हैं.
इसी तरह पोटका सीट से अर्जुन मुंडा की पत्नी मैदान में हैं लेकिन वो बीजेपी से निर्दलीय उम्मीदवार बनने वाले कैंडिडेट को मनाने में सफल रही हैं. लेकिन बीजेपी शिमोन मालतो का समझाने में विफल रही है जो अब जेएमएम के पाले में जा चुके हैं. शिमोन मालतो बरहेट से टिकट चाहते थे लेकिन नहीं मिलने पर वो अपने समर्थकों के साथ जेएमएम में शामिल हो गए हैं. परिवारवाद और वंशवाद का विरोध करने वाली पार्टी परिवारवाद और वंशवाद की चपेट में पूरी तरह फंसती दिख रही है. यही वजह है कि बीजेपी में अंसतुष्टों की संख्या दूसरे दलों से कहीं ज्यादा है.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार कहते हैं कि परिवारवाद झारखंड में हावी हर दल में है. इसलिए ये मुद्दा बीजेपी के लिए कारगर रहेगा इसकी उम्मीद दूर दूर तक नहीं दिख रही है. दरअसल बीजेपी हर हाल में झारखंड जीतकर केन्द्र सरकार की मजबूती को बरकरार रखना चाह रही है. इसलिए टिकट बांटने के पीछे विनेबलिटी को देखते हुए पार्टी ने अपने उसूलों के साथ जोरदार समझौता किया है.
बीजेपी के घटक दल आजसू में भी बगावत है चरम पर
गठबंधन के तहत आजसू को दस टिकट एनडीए में मिली हैं. लेकिन आजसू के विरोध में 16 उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं ऐसा दावा राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि सुदेश महतो की पार्टी में बगावत सबसे ज्यादा है जो घटक दल के तौर पर एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. जाहिर है साल 2019 में आजसू के साथ बीजेपी का तालमेल नहीं हो सका था. इसलिए बीजेपी अकेले चुनाव में उतरकर सरकार बनाने में नाकामयाब रही थी. इसबार आजसू गठबंधन की हिस्सा है. लेकिन पार्टी के भीतर भयानक बगावत एनडीए के लिए सिरदर्द बनता दिख रहा है.
इंडिया ब्लॉक में भी है भयानक बिखराव, कैसे सामना करेगी हेमंत सरकार ?
इंडिया ब्लॉक में सपा झारखंड में इंडिया अलायंस की हिस्सा नहीं है. गौरतलब है कि हरियाणा में दर्जन भर से ज्यादा सीटों पर सपा और आप ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया था. इसलिए कांग्रेस वहां सरकार बना पाने में असफल रही थी. झारखंड में भी सपा इंडिया से अलग चुनाव लड़ रही है. वहीं तीन सीटों पर आरजेडी,जेएमएम और सीपीआई एम के साथ फ्रेंडली फाइट हो रही है. कहा जा रहा है कि इंडिया ब्लॉक भी तकरीबन 20सीटों पर निर्दलीय और घटक दल के बगावती तेवर से परेशान है. इसलिए ऊंट किस करवट बैठेगा इसको लेकर राजनीतिक पंडित सहित सियासी पार्टियां साफ साफ दावा करने से बचने लगी है.
कांग्रेस को भी निकालने पड़े हैं अपने तीन नेता
कांग्रेस पार्टी ने तीन नेताओं को पार्टी विरोधी कार्रवाई के लिए बाहर का रास्ता दिखाया है. इनमें देवेंद्र सिंह पांकी से, मुनेश्वर उरांव लातेहार से और इसराफिल अंसारी को गोमियां से बाहर किया गया है. कांग्रेस पहले से ही चुनाव प्रचार में शिथिलता बरतती दिख रही है. वैसे में बाबू लाल मरांडी सरीखे नेताओं के खिलाफ जेएमएम और सीपीआई एमएल ने अपने अपने कैंडिडेट उतारकर इंडिया ब्लॉक के भीतर की कड़वाहट को जाहिर कर दिया है.
– India Samachar
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