भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 25 किलोमीटर दूर 1200 आबादी वाला एक ऐसा गांव, जहां अकाल मौत जो मरे वो कहलाता है ‘देव’. घरों के बाहर मरने वालों की प्रतिमाएं लगाई जाती हैं. चढ़ावे में सिगरेट, शराब और बकरे की बलि दी जाती है. लोगों की मान्यता है कि अकाल मृत्यु के बाद पूर्वजों की आत्मा को शांत करने के लिए उनकी प्रतिमाएं घरों के बाहर लगवाई जाती हैं, जिससे वो संतुष्ट हो जाएं और किसी को भी परेशान न करें.
मीडिया रिपोट्स के मुताबिक, अजब गांव का नाम है ‘भानपुर केकड़िया’. यहां गजब परंपरा भिलाला समुदाय के द्वारा निभाई जाती है.इन देवों के दर्शन के लिए गांव के लोग पहुंचते हैं और घर में बने पकवानों का भोग भी लगाते हैं. इस गजब परंपरा को निभाने वाला गांव पढ़े- लिखे लोगों का है. इतना ही नहीं गांव के लोग बाहरी किसी भी व्यक्ति की दखलअंदाजी को कतई नहीं सहते हैं. भानपुर केकड़िया गांव के एंट्रेंस पर ही एक बोर्ड लगा है, जिसपर लिखा है कि गलत मंशा वाले गांव के अंदर कदम न रखें. माना जाता है कि साल 1945 में भिलाला आदिवासी परिवार द्वारा भानपुर केकड़िया गांव को बसाया गया था.
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क्या है अकाल मौत से इस परंपरा का तात्पर्य ?
गांव की परंपरा का सीधा संबंध अकाल मौत वाले लोगों से हैं. मतलब कि अचानक होने वाली मौत. घरों के बाहर लगी अकाल मौत के देवों की प्रतिमा में एक दादी-पोती की मूर्ति भी शामिल है. दोनों की मौत अलग-अलग वक्त पर फांसी के फंदे पर लटकने से हुई थी. दोनों की आत्मा को शांति मिले इसलिए घरवालों ने घर के बाहर ही दोनों की प्रतिमाएं लगवाई हैं. रोजाना परिवार उनकी पूजा करता है.
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मूर्तियों को पहनाए जाते हैं वस्त्र, भोग में शराब
परंपरा के मुताबिक, गांव के लोग देवों की मूर्तियों को वस्त्र पहनाए रखते हैं. त्योहार में उनको भव्य रूप से तैयार किया जाता है. भोग में पकवान के साथ पानी का घड़ा, शराब, सिगरेट और बकरे की बलि का खास इंतेजाम किया जाता है. वस्त्र भी कोई साधारण से नहीं, महंगे और आकर्षक पहनाए जाते हैं. इतना ही नहीं, कोई भी परेशानी आती है तो परिवार के सदस्य अपने पूर्वजों की इन प्रतिमाओं के आगे जाकर प्रसाद चढ़ाते और पूजा करते हैं.
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