मिस्र के कस्बी मजदूरों को सोने को भट्ठी में पिघलाकर ठंडा करने का जो काम मिला था, उसे आज 5000 साल हो चुके हैं. तब से लेकर अब तक इंसान करीब 1,25, 000 टन सोना धरती से निकाल चुका है. इतने सालों में गोल्ड के ऊपर लिखे गए साहित्य की बात करें तो इन किताबों का वजन तो गोल्ड के सवा लाख टन वजन को भी ओवरटेक कर देगा. करीब 5000 साल पहले बड़े पैमाने पर मिस्र में खदानों से सोना हाथ लगा था.
धरती के गर्भ से बड़े पैमाने पर सोना हासिल करने वाली ये घटना हैरतअंगेज थी. मिस्र के लोगों ने नील नदी के किनारे सोने के कणों को हासिल करना शुरू कर दिया था. इसका आर्थिक महत्व और अर्थशास्त्र भी उस समय के लोग समझ गए थे. तब कोई सिक्कों का अस्तित्व नहीं था, नोट की तो बात ही छोड़ दो और तब सारा कारोबार सोने से चलता था. इस सोने के कारण कई सारे साम्राज्य बने और कई तबाह भी हो गए. एक दौर वो भी आया कि सम्राटों की लश्करी ताकत भी इस सोने पर ही निर्भर थी.
धरती पर कहां से आया सोना
आज हम धरती पर जितना भी सोना देखते हैं, वह हमेशा से यहां नहीं था. ब्रह्मांड में कहीं पर भी गोल्ड सुपरनोवा न्यूक्लियो सिंथेसिस से बनता है. धरती पर जो गोल्ड पाया जाता है, वो अरबों साल पहले हुई उल्का वर्षा के कारण मिला है. माना जाता है कि धरती पर जितना भी गोल्ड है, वो मरे हुए तारे से आया है. वहां से धरती के भूगर्भ में चला गया. धरती आज से करीब चार अरब साल पहले धीरे-धीरे ठंडी होने लगी थी और उसके साथ धरती पर जो भी धातुएं थीं, वो ठंडी होकर धरती की बाहरी परत के आसपास स्टोर हुई.
धरती की बाहरी सतह का घनत्व प्रति घन सेंटीमीटर 2.6 ग्राम है, जिस वजह से एलुमिनियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम और कैल्शियम जैसे तत्व धरती की ऊपरी सतह पर उभर कर आए, क्योंकि यह तत्व हल्के थे. बाकी लोहा, शीशा, तांबा, मरक्यूरी और प्लेटिन जैसी भारी धातुएं अपने अणुभार के मुताबिक धरती के पाताल में चली गईं.
शायद यह धातुएं हमेशा के लिए वहां पर कैद होकर रहती, लेकिन धरती पर होने वाली प्लेट्स की चहल-पहल और ज्वालामुखी विस्फोटों ने इन धातुओं को कैद खानों से तोड़कर बाहर लाना शुरू कर दिया. धरती के लावा के रगड़े के साथ यह सभी धातुएं धरती की सतह पर ऊपर आने लगीं. धीरे-धीरे आग के ये पहाड़ भी गलने लगे और सोना नदियों और समुद्र में जाने लगा. इससे इन स्वर्ण कणों का जत्था बड़े समुद्र और बड़ी नदियों के मामले में इतना कम था कि उसे हासिल करने के लिए बहुत टाइम और बहुत मेहनत लगने वाली था.
पारे से सोना बनाने की गई कोशिश
मध्य युग में यूरोपियन देशों में गोल्ड दुर्लभ था. मिडल ईस्ट में भी रेगिस्तान था, कोई नदी या नाले नहीं थे. इसलिए अरब देशों में भी गोल्ड की अछत थी और गोल्ड की इस समस्या को हल करने के लिए वहां के कीमिया दार अपना दाव आजमाने लगे. यूरोपियन और मिडल ईस्ट के एल्केमिस्ट ने पारे को गोल्ड में बदलने की कोशिशें चालू कर दी.
ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि पारे और गोल्ड के नाभिकीय भ्रमण कक्षा में सिर्फ एक इलेक्ट्रॉन का अंतर है. जहां पर गोल्ड में इलेक्ट्रॉन का जुमला 80 होता है और पारे का 79. उस समय के एल्केमिस्ट ने सोने और पारे के बीच के इस एक इलेक्ट्रॉन वाले छोटे से अंतर को मिटा देने की सोची और इसके लिए उन्होंने काफी प्रयत्न किए, लेकिन सब के सब फेल रहे और पारे को गोल्ड में कोई परिवर्तित नहीं कर पाया.
फिर भी इन अल्केमिस्ट की मेहनत बेकार नहीं गई, भले ही वो पारे को सोना ना बना पाए हो, लेकिन पारे को गोल्ड बनाने के लिए उन्होंने जो भी प्रयोग किए उसमें पारे को नहलाने के लिए उन्होंने तीन एसिड्स का आविष्कार किया, जो सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड और हाइड्रोलिक एसिड थे. ये एसिड उद्योग जगत में गोल्ड से भी ज्यादा कीमती है, क्योंकि इन तीन एसिड्स के बिना औद्योगिक जगत बन ही नहीं पाया होता.
इक्का सभ्यता के सबकुछ होता था सोने का
यूरोपीय अल्केमिस्ट तो यूरोप की प्रजा के मनोरथ साकार नहीं कर पाए, लेकिन 16वीं शताब्दी में पोर्तुगीज और स्पैनियार्ड मध्य और उत्तर अमेरिका गए. दरअसल यूरोपियन के जाने से पहले नॉर्थ अमेरिका और साउथ अमेरिका में कुछ सभ्यताएं रहती थी, जो वहां के मूल निवासी थे. जिसका नाम इक्का सिविलाइजेशन था और उस जगह पर सिर्फ सोना ही सोना मिलता था, वहां के भूभाग की जमीनी रचना ही ऐसी थी कि ज्वालामुखी से सबसे ज्यादा सोने का भंडार वहां पर आया था.
हालांकि लोहा वहा पर नहीं था और इक्का सभ्यता के लोग यह भी नहीं जानते थे कि लोहा होता क्या है, इसलिए इक्का सभ्यता के लोग हर चीज में सोना घुसा देते थे. इक्का सभ्यता के लोगों के घर के बर्तन, चेयर, चम्मच सब कुछ सोने से बना होता था. यह लोग भी शवों के साथ सोने के आभूषण भी दफन कर देते थे, फिर भी सोना इनके पास इतना कि खुद ही नहीं रहा था, लेकिन उनके सोने के भंडारों में खुदाई के लिए पोर्तुगीज और स्पैनियार्ड वहां आ गए. इसके बाद इन लोगों ने यहां पर इतना ज्यादा जनसंहार किया कि इक्का सभ्यता का ही नाश कर दिया और सारा सोना भरकर यूरोप ले गए.
अमेरिका में कैसे मिला सोना
18वीं सदी में ही करीब 1350 टन से भी ज्यादा सोना साउथ अमेरिकन कॉन्टिनेंट से यूरोप ले जाया गया. उसके बाद 24 जनवरी साल 1848 की बात करें तो एक जेम्स मार्शल नाम के यूरोपियन को अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य की एक नदी में चमकदार सोने के कण मिले. रातों-रात हजारों लोग उस जगह पर बस गए और एक गांव का निर्माण हुआ, जो कुछ समय बाद सैन फ्रांसिस्को के नाम से जाना गया.
इसके बाद इस पीली और चमकदार धातु का भंडार अमेरिका में भी बढ़ने लगा. इसके बाद साइबेरिया में भी सोना मिला और रशिया भी स्वर्ण जड़ित हुआ. उसके बाद साउथ अफ्रीका में सोने की एक नहीं पांच-पांच खदान मिली और अफ्रीका भी स्वर्ण जड़ित हुआ, लेकिन अफ्रीका की बदनसीब यह कि वह बस मजदूर ही रह गए और वह खुद का सोना खुद ही यूज ना कर सके, क्योंकि ब्रिटेन ने कॉमनवेल्थ के नाम पर कंट्री हों में लूट मचा रखी थी. इस तरह कुछ देश सोने के कुबेर भंडार हो गए.
अमेरिका 14 कैरेट में बनाती है ज्वेलरी
अमेरिका की बात करें तो वहां पर आमतौर पर 14 कैरेट की ज्वेलरी बनती है. यूरोप में यह चलन 18 कैरेट का है. मिडल ईस्ट में 21 कैरेट का जबकि भारत में 22 कैरेट के गहने बनाए जाते हैं. हमारे देश में बिहार और उड़ीसा के लोग आमतौर पर 24 कैरेट के गहने पहनने का आग्रह रखते हैं. 24 कैरेट के गहने नर्म होते हैं और लंबे समय तक पहनने से मुड़ भी जाते हैं. विश्व में सरकारी तौर पर सबसे ज्यादा गोल्ड वाला देश अमेरिका है, जिसके पास 8000 हजार 134 टन सोना है, जबकि माना जाता है कि इंडिया के पास करीब 800 टन सोना है, जिसमें से 760 टन सोना आरबीआई के पास है.
भारत में कहां से आया इतना सोना
जनता के प्रिजर्व भंडार की बात की जाए तो दुनिया में कोई भी शायद ही भारत के आगे टिके. हालांकि सोने की खदानों के मामले में हम पहले से कंगाल हैं, ना ही हमारी नदियों में सोने के कोई कण पाए जाते हैं. भारत के व्यापारी सदियों से मसाले, कपड़ा और कलाकृतियों को विदेशों में जाकर बेचा करते थे और उस वक्त यह जरूरी चीजें आज के पेट्रोल से भी ज्यादा जरूरी हुआ करती थी. इसी व्यापार के बदले भारत में सदियों से सोना और चांदी आता रहा है और ऐसे हम गोल्ड के प्रिजर्वर बन गए. भारत की आम जनता के पास बहुत सोना है. दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों के एक आंकड़े के मुताबिक, भारत के पास आज करीब 10000 टन से ज्यादा सोना है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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